________________
१. शान्तिनाथ स्तुति :
[श्री श्रुतसागर सूरि
२. आठ शंकाओंका समाधान[तुलक सिद्धि सागर
३. हमारी तीर्थ यात्रा के संस्मरण[ परमानन्द शास्त्री
- ४. राष्ट्र कूट कालमें जैन धर्म
[डा० अ० स. अल्तेकर
विषय-सूची
२५१
Jain Education International
२७२
नोट- दस ग्राहक बनानेवाले सहायकोंको
'अनेकान्त' एक वर्ष तक भेंट
स्वरूप भेजा जायगा ।
२७६
२८३
५. मथुराके जैन स्तूपादिकी
[यात्रा के महत्वपूर्ण उल्लेख ६. अपभ्रन्श भाषाके अप्रकाशित कुछ ग्रन्थ - [ परमानन्द जैन संस्कृत साहित्य के विकास में - [जैन विद्वानोंका सहयोग [ लक्ष्मीचन्द
८. दोहाणुपेहा
अनेकान्तकी सहायताके सात मार्ग
(१) अनेकान्तके 'संत्तक' तथा 'सहायक' बनना और बनाना ।
( २ ) स्वयं अनेकान्तके ग्राहक बनना तथा दूसरोंको बनाना ।
श्री- जिज्ञासा
उन श्रियोंको जानने की इच्छा है जो खुल्लकों-ऐलकों तथा मुनियोंके साथ लगी रहती हैं और जिनका सूचन तुल्लक-एलकोंके नामके साथ 'श्री १०५' और मुनियोंके नामके साथ 'श्री १०८' लिखकर किया जाता है। ये दोनों वर्गकी श्रियाँ यदि भिन्न भिन्न हैं तो उन सबके अलग-अलग नाम मालूम होनेकी जरूरत है और यदि मुनियों को १०८ श्रियों में १०५ वे ही हैं जो तुलकों ऐलकोंके साथ रहती हैं तो १०५ श्रियोंके नामके साथ केवल उन तीन श्रियोंके नाम और दे देनेकी जरूरत होगी जो तुल्लक-ऐलकों की अपेक्षा मुनियों में अधिक पाई जाती है। साथ ही यह भी जानने की इच्छा है कि श्रियोंका वह विधान कौन से श्रागम अथवा श्रार्य ग्रन्थ में पाया जाता है, कबसे उनकी संख्या- सूचनका यह व्यवहार चालू हुआ है और उसको चालू करनेके लिये क्या जरूरत उपस्थित हुई है। अतः मुनिमहाराजों, तुलकों और दूसरे विद्वानोंसे भी विनम्र निवेदन है कि वे इस विषय में समुचित प्रकाश डालकर मेरी जिज्ञासाको तृप्त करनेकी कृपा करें। इस कृपाके लिये मैं उनका बहुत आभारी रहूँगा । - जुगलकिशोर मुख्तार
मेरा
२८८
(३) विवाह - शादी आदि दानके अवसरों पर अनेकान्तको अच्छी सहायता भेजना तथा भिजवाना । (४) अपनी ओर से दूसरोंको अनेकान्त भेंट-स्वरूर अथवा फ्री भिजवाना; जैसे विद्या संस्थाओं लायब्र ेरियों, सभा-सोसाइटियों और जैन- श्रजैन विद्वानोंको ।
२६३
(५) विद्यार्थियों आदिको अनेकान्त अर्ध मूल्य में देनेके लिये २५), २०) श्रादिकी सहायता भेजना। २५ की सहायतामें १० को अनेकान्त अर्धमूल्यमें भेजा जा सकेगा ।
दिलाना ।
( ६ ) अनेकान्तके ग्राहकोंको अच्छे ग्रन्थ उपहारमें देना तथा ( ७ ) लोकहितकी साधना में सहायक अच्छे सुन्दर लेख प्रकाशनार्थं जुटाना ।
लिखकर भेजना तथा चित्रादि सामग्रीको
२६१
३०२
እ
For Personal & Private Use Only
सहायतादि भेजने तथा पत्रव्यवहारका पताः
मैनेजर 'अनेकान्त' वीरसेवामन्दिर, १, दरियागंज, देहली।
.
www.jainelibrary.org