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________________ २७८ ] जैन मन्दिरोंका पुनः निर्माण कराया था और अपने दानोंसे ३६००० गंगवाडिको कोपयुके समान प्रसिद्ध किया था। उक्त गंगराजकी रायमें सप्त नरक निम्न थे - झूठ बोलना, युद्ध में भय दिखाना, परदारारत रहना, शरणाथियोंको आश्रय न देना, अधीनस्थोंको अपरितृप्त रखना, जिन्हें पास में रखना आवश्यक है उन्हें छोड़ देना और अपने स्वामीसे विद्रोह करना । उक्त सेनापति गङ्गराज और नागलदेवी से 'बोध'' नामका एक पुत्र उत्पन्न हुआ। उसके कुलगुरु गौतमगणघरकी परम्परा में प्रख्यात मलधारीदेवके शिष्य शुभचन्ददेव थे जो बोपदेवके गुरु थे, और बोष्पदेव के पूज्य गुरु गंगमाचार्य प्रभाचन्द्र सेद्धान्तिक थे। बोष्पदेवने दोर या द्वार समुद्र के मध्य में अपने पिताकी पवित्र स्मृति में उक्त पाश्वनाथ वस्तिका निर्माण कराया था । उसमें भगवान पार्श्वनाथकी मूर्तिकी प्रतिष्ठा नयकीर्ति सिद्धान्त चक्रवर्तीके द्वारा शक सं० १०२२ ( वि० सं० ११३४ ) में सोमवार के दिन सम्पन्न कराई गई थी, जो मूळ संघ कुन्दकुन्दान्वय देशीयगण पुस्तकगच्छुके विद्वान थे । श्रागे शिलालेख बतलाया गया है कि हनसोगे ग्रामके समीप वर्ती इस द्रोह परजिनालयकी प्रतिष्ठाके बाद जब पुरोहित चढ़ाए हुए भोजनको बंकापुर विष्णुवर्द्धनके पास ले गए तब विष्णुवर्द्धनने मसण नामक श्राक्रमण करने वाले राजाको परास्त कर मार दिया और उसकी राज्यश्री जब्त कर ली। उसी समय उसकी रामी जमी महादेवीके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो गुणोंमें दशरथ और नहुषके समान था राजाने पुरोहितोंका स्वागत कर प्रणाम किया और यह समझ कर कि भगवानकी पार्श्वनाथ प्रतिष्ठा से युद्धविजय और पुत्रोत्पत्ति एवं सुख-समृद्धि के उपलक्ष में विष्णुबर्द्धनने देवताका नाम 'विजय पार्श्वनाथ' और पुत्रका नाम 'विजयनरसिंहदेय रक्खा और अपने पुत्र की सुखसमृद्धि एवं शान्तिकी अभिवृद्धि के लिये 'आसन्दिनाद के जायगा मन्दिरके लिये दान दिया, इसके सिवाय, और भी बहुतसे दान दिये तक शिलालेख के निम्न पथ में 'विजयपार्श्वनाथ' की स्तुतिकी गई है वह पद्य इस प्रकार है:श्रीमन्द्रमणिमौलिमरीचिमाला, मालाचिंता भुवनप्रयधने । कामान्तकाय जित - जन्मजरान्तकाय भक्त्या नमो विजय पारवजिनेश्वराय ॥ । Jain Education International अनेकान्त [ किरण इस पद्य में बतलाया गया है कि इन्द्रके मस्तक पर लगे हुए मणियों जटिल मुकुटोंकी माला पंकिसे पूजित भुवनत्रयके लिये धर्मनेत्र, कामदेवका अन्त करने वाले जन्म जरा और मरणको जीतने वाले उन विजय पार्श्वनाथ जिनेन्द्र के लिये नमस्कार हो । यह मन्दिर जितना सुन्दर बना हुआ है खेद है कि आजकल इस मन्दिर में बिल्कुल सफाई नहीं है, उसमे हजारों चमगादड़े लटकी हुई हैं जिनकी दुर्गन्धि दर्शक काजी ऊब जाता है, और वह उससे बाहर निकलने के जल्दी प्रयत्न करता है। मैसूर सरकारका कर्त्तव्य है कि यह उस मन्दिरकी सफाई करानेका वरन करे। जब सरकार पुरातन धर्मस्थानोंको अपना रक्षक मानती हैं, ऐसी हालत में उसके संचयीदिका पूरा दायित्व सरकार पर ही निर्भर हो जाता है। आशा है मैसूर सरकार इस सम्बन्ध में पूरा विचार करेगी। २ आदिनाथवस्ति - दूसरा मन्दिर भगवान आदिनाथका है जिसे सन् 11 में हेगड़े मस्लिमोयाने बनवाया था । ३ शान्तिनाथवस्तितीसरा मन्दिर भगवान शांतिनाथका है। इस मन्दिर में शान्तिनाथकी १४ फुट ऊंचीखड्गासममूर्ति विराजमान है। यह मन्दिर सन् १२०४ का बना हुआ है। इस मन्दिर में एक जैन मुनिका अपने शिष्यको धर्मोपदेश देनेका बड़ा ही सुन्दर दृश्य अति ई मूर्ति दोनों ओर मस्तकाभिषेक करनेके लिये सीढ़ी बनी हुई हैं। और मन्दिरके सामने वाले मानस्तम्भ में श्रीगोम्मटेश्वर की मूर्ति विराजमान है। 1 हलेविडमें सबसे अच्छा दर्शनीय मन्दिर होयसलेश्वर का है। कहा जाता है कि इस कलात्मक मन्दिरके निर्माणकार्य ६ वर्षका समय लगा है। फिर भी वह अधूरा ही है उसका शिखर अभी तक भी पूरा नहीं बन सका है पर यह मन्दिर जिस रूप में अभी विद्यमान है वह अपनी ललित कलामें दूसरा सानी नहीं रखता। इसकी शिक्षप कक्षा अपूर्व एवं बेजोड़ है जिस चतुर शिल्पीने इसका निर्माण किया उसने केवल अपनी कलाकृतिका प्रदर्शन ही नहीं किया; प्रत्युत इन कलात्मक चीजोंके निर्माण द्वारा अपनी आन्तरिक प्रतिभाका सजीव चित्रण भी श्रभिव्यंजित किया है। इस मन्दिरकी बाह्य दीवालों पर हाथी, सिंह, और विभिन्न प्रकारके पक्षी, देवी देवता और४०० फुटकी - For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527323
Book TitleAnekant 1954 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1954
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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