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________________ किरण ६ ] ॥११॥ दव्वट्टियस्स सब्वं सया श्रणुवयण्णमविण दव्यं - पज्जव विजयं दव्व-विजुत्ता य पज्जवा रास्थि । उपाय- द्वि-भंगा होदि दवियलक्खणं एयं ॥ १२ ॥ एए पुण संगहश्र पडिक्कमलक्खणं दुवेहं पि । तम्हा मिच्छदिट्ठी पत्तेयं दो वि मूलणया ॥१३॥ इन गाथाओं में बतलाया है कि – 'पर्यायार्थिकनयकी दृष्टि में द्रव्यार्थिकनयका वक्तव्य ( सामान्य ) नियमसे अवस्तु है । इसी तरह द्रव्यार्थिकनकी दृष्टिमें पर्यार्थिक नयका वक्तव्य विशेष अवस्तु है । पर्यायार्थिक नयकी दृष्टि में सब पदार्थ नियमसे उत्पन्न होते हैं और नाशको प्राप्त होते हैं। द्रव्यार्थिकनकी दृष्टि में न कोई पदार्थ कभी उत्पन्न होता है और न नाशको प्राप्त होता है । द्रव्य पर्यायके (उत्पादव्ययके) बिना और पर्याय द्रव्यके ( धौम्यके ) बिना नहीं होते; क्योंकि उत्पाद व्यय और धौग्यमें तीनों द्रव्य-सत्का अद्वितीय लक्षण हैं ; ये (उत्पादादि ) तीनों एक दूसरेके साथ मिल कर ही रहते हैं, अलग अलग रूपमें – एक दूसरेकी अपेक्षा न रखते हुए - मिथ्वादृष्टि हैं। अर्थात् दोनों नयों में से जब कोई भी नय एक दूसरेकी अपेक्षा न रखता हुआ अपने ही विषयको सत् रूप प्रतिपादन करनेका आग्रह करता है तब वह अपने द्वारा ग्राह्य वस्तुके एक अंश में पूर्णताका माननेवाला होनेसे मिथ्या है और जब वह अपने प्रतिपक्षीनय की अपेक्षा रखता हुआ प्रवर्तता हैउसके विषयका निरसन न करता हुआ तटस्थ रूपसे अपने विषय (वक्तव्य ) का प्रतिपादन करता है - तब वह अपने द्वारा ग्राह्य वस्तुके एक अंशको अंशरूपमें ही (पूर्णरूपमें नहीं) माननेके कारण सम्यक् व्यपदेशको प्राप्त होता है —— सम्यग्दृष्टि कहलाता है ।" समयसारकी १५वीं गाथा और श्रीकानजी स्वामी ऐसी हालत में जिनशासनका सर्वथा 'नियत' विशेषण नहीं बनता। चौथा 'अविशेष' विशेषण भी उसके साथ संगत नहीं बैठता; क्योंकि जिनशासन अनेक विषयोंके प्ररूपणादि सम्बन्धी भारी विशेषताओंको लिये हुए है, इतना ही नहीं बल्कि अनेकान्तात्मक स्याद्वाद उसकी सर्वोपरि विशेषता है जो अन्य शासनोंमें नहीं पाई जाती । इसीसे स्वामी समन्तभद्रने स्वयंभूस्तोत्रमें लिखा है कि 'स्याच्छब्दस्तावके न्याये नाऽन्येषामात्मविद्विषाम् (१०२) अर्थात् 'स्यात्' शब्दका प्रयोग आपके ही न्यायमें है, दूसरों के न्याय में नहीं, जो कि अपने वाद (कथन) के पूर्व उसे न अपनानेके कारण अपने शत्रु आप बने हुए हैं। साथ Jain Education International [ २०६ ही यह भी प्रतिपादन किया है कि जिनेन्द्रका 'स्वात्' शब्द पुरस्सर कथनको लिये हुये जो स्याद्वाद है - अनेका तात्मक प्रवचन ( शासन ) है - वह दृष्ट (प्रत्यक्ष ) और इष्ट (आगमादिक) का अविरोधक होनेसे श्रमवद्य ( निर्दोष) है, जबकि दूसरा 'स्यात्' शब्दपूर्वक कथनसे रहित जो सर्वथा एकान्तवाद है वह निर्दोष प्रवचन ( शासन) नहीं है, क्योंकि दृष्ट और इष्ट दोनोंके बोधको लिये हुये है (१३८ ) अकलंकदेवने तो स्याद्वादको जिनशासनका अमोघलक्षण बतलाया है जैसाकि उनके निम्न सुप्रसिद्ध वाक्यसे प्रकट है श्रीमत्परमगम्भीर स्याद्वादाऽमोघलांछनम् । त्रीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥ स्वामी समन्तभद्वने अपने 'युक्त्यनुशासन' में श्रोवीरजिनके शासनको एकाधिपतित्वरूप लक्ष्मीका स्वामी होनेकी शक्तिले सम्पन्न बतलाते हुए, जिन विशेषोंकी विशिष्ट से अद्वितीय प्रतिपादित किया है वे निम्न कारिकासे भले प्रकार जाने जाते हैं दया दम-त्याग समाधिनिष्ठं नय-प्रमाण प्रकृताऽऽञ्ज सार्थं । अधृष्यमन्यैरखिलैः प्रवादेर्जिन ! त्वदीयं मतमद्वितीयम् ॥ इसमें बताया है कि वीर जिनका शासन दया, दम, त्याग और समाधिकी निष्ठा तत्परताको लिये हुए हैं, नयों तथा प्रमाणोंके द्वारा वस्तुतश्वको बिल्कुल स्पष्ट (सुनिश्चित ) करने वाला है और अनेकान्तवादसे भिन्न दूसरे सभी प्रवादों (प्रकल्पित एकान्तवादों) से अबाध्य है, (यही सब उसकी विशेषता है) और इसीलिये वह अद्वितीय है सर्वाधिनायक होनेकी क्षमता रखता है । और श्रीसिद्ध सेनाचार्यने जिन प्रवचन ( शासन) के लिए 'मिथ्यादर्शन समूहमय' 'श्रमृतसार' जैसे जिन विशेक्षणोका प्रयोग सन्मतिसूत्रकी अन्तिम गाथामें किया है उनका उल्लेख ऊपर आ चुका है, यहाँ उक्त सूत्रकी पहली गाथाको और उष्टत किया जाता है [जसमें जिनशासन के दूसरे कई महत्वके विशेषणोंका उल्लेख है- . सिद्ध ं सिद्धत्थाणं ठाणमणोदमसुहं उवगयाणं । कुसमय-विसासणं सासणं जिणाणं भवजिणाणं ॥ इसमें भावको जीतने वाले जिनों- श्रईन्तोंके - शासनको चार विशेषणोंसे विशिष्ट बतलाया है - १ सिद्ध अकल्पित एवं प्रतिष्ठित २ सिद्धार्थोंका स्थान ( प्रमाणसिद्ध पदार्थोंका - विपादक) ३ शरणागतोंके लिये अनुपम सुखस्वरूप मोच For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527320
Book TitleAnekant 1953 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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