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________________ २०८] अनेकान्त टिप्पणीमें दिया है वह ठीक नहीं है। हमने ऐसे भेजे जानेके कारण सम्प्रति हमारे पास नहीं हैं मोदक शब्दोंके अर्थ भेद न होने से इस विस्तृत तालिकामें पण्डितजी प्रकट करें। नहीं लिया है। इस लेखके संकेतः- (संशोधन तालिकामें) अशुद्धियां 'च' और 'व' को तथा 'प' और 'य' का ठीकसे नहीं पढ़ने के कारण हो गई हैं. जिनमें बुज्जाह . ऐसे चिन्ह वाले सन्शोधन गाथाओंके पद टिपचयणं. रस्थाययंगणे, द्विवणं श्रादि है और उनका शुद्धरूप ण में भी देखिए क, ख से मतलब गाथाके पूर्वाधं और चज्जाई वपणं, रत्थारापंगणे किंचण अादि होता है जो उत्तरार्धमे हैं। तालिकामें दे दिया गया है। उपसंहार __ ग्रन्थकारको व्यसन और निवृत्ति शब्दोंके प्राकृतरूप समाजमें अन्थोंका शुद्ध प्रचार हो इस हेतु यह वसण और णियत्तो इष्ट थे नकि विसण, णिबुत्ती। इतने संशोधात्मक लेख लिखा गया है, किसी दुरभिसंधिवश पर भी कुछ स्थल हमें अब भी अस्पष्ट जंचते हैं और नहीं । यदि स्वाध्याची जन इस लेखका समुचित उपयोग वे स्थल निर्देश पूर्वक नीचे दिये जाते हैं करके लाभ उठायेंगे और हमारा उत्साह बढ़ावेंगे तो १३७ क पज्जत्तयो दंडत्ति,"११२ क ठिइज्ज'", 'भविष्य में ऐसे ही लेख फिर प्रस्तुत किये जायेंगे। ३०१ की सारी गाथा | ३४३ ख प्रयतो वि..'४३२ ख भारतीय ज्ञानपीठ काशीक चाहिये कि वह वसुनन्दि टगरेहि तथा सुरवणज॥४३३ क मेहिय"४३६ ख श्रावकाचार' की अशुद्धियोंकी ओर ध्यान दे और उनका भदंचन" सशोधन ग्रन्थमें लगा कर पाठकोंके लिए सुविधा प्रदान __ इनके स्पष्ट पाठ पहले हमारे संग्रहमें थे जो पं. करे, तथा भविष्यमें इस ओर और भी अधिक सावधानी परमानन्द जीके पास उनके उपयोगके लिए बहुत पहले रखनेका यत्न करेगी। अनेक यात्राओंका सुगम अवसर गुजरनेको गुजर जाती हैं उमरे शादमानीमें, मगर यह कम मिला करते हैं, मौके जिदगानीमें ॥ . आल इण्डिया चन्द्रकीर्ति जैन यात्रा संघ देहली ( गवर्नमेन्ट आफ इण्डियासे रजिस्टर्ड : सुविधा पूर्वक, कम खर्चमें, कम समय । अारामसे धार्मिक साधनों के साथ प्रथम श्री सम्मेदशिखरजीकी ओरभूमण, तीर्थयात्रा, अवकाश पुण्य संचय. इस चतुमुखी ध्येयको लेकर ही अन्य वर्षों की भांति इस वर्ष भी अनेक स्नेही बन्धुगणोंके अतीव प्राग्रहसे मंगशिर मासमें नवम्बर सन् १९५३ के आखिरी सप्ताहमें जानेका निश्चय किया है। बुन्देलखण्ड तथा उत्तर पूर्वीय जैन तीर्थक्षेत्रोंकी यात्रा जिसमें मुख्तया पूज्य वर्णी जीके दर्शन व उपदेश ल भ, चम्पापुर, पावापुर, कुण्डलपुर, श्री सम्मेद शिखरजी आ.द उस प्रान्तके सभी प्रमुख तीर्थ क्षेत्र व कानपुर, लखनऊ, बनारस, इलाहाबाद आदि विशाल शहरोंका सुन्दर प्रायोजन है। समय लगभग १। माह होगा। विशेष विवरण व जानकारीको निम्न पते पर लिखें-प्रस्थान २७ दिसम्बर सन् १९५३ सीट खर्च-११५) सीट बुक ७ दिसम्बर तक। हेड आफिस-पाल इण्डिया चन्द्रकीति जैन यात्रा संघ, ( रजिस्टर्ड ) २२६३ धरमपुरा, देहली। नोट-हमारा दूसरा संघ गिरनार बाहुबली आदि विशाल यात्राओंको समय २ मासके लिए इस वर्ष भी जनवरी सन् १९५४ के सप्ताह में जाना निश्चित है। इस वर्ष यात्री संख्या बहुत थोड़ी ले जाना है। अतः सीटें शीघ्र ही रिजर्व करा लेवें । प्रोग्रामको लिखें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527320
Book TitleAnekant 1953 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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