________________
१६४]
अनेकान्त
[किरण ६
संघ जाते थे। अन्वेषण करने पर गजपन्थ यात्राके अन्य- श्रद्धेय पं. नाथूरामजी 'प्रमी' मालिक हिन्दी ग्रन्न भी समुल्लेख प्राप्त हो सकते हैं। परन्तु विचारना तो यह रत्नाकर हीराबाग बम्बईसे भी मिले । उनसे चर्चा करके है कि वर्तमान गजपन्थ ही क्या परातन गजपन्थ है या बड़ी प्रसन्नता हुई। मुख्तार साहब कुछ अस्वस्थसे चल श्रद्धय पं. नाथूरामजी प्रेमीके लिखे अनुसार वि० सं० रहे थे, वे प्रेमीजीके यहाँ ही ठहरे । वहाँ उन्हें सर्व १६३६ में नागौरके भट्टारक क्षेमेन्द्रकीर्ति द्वारा मसरूल प्रकारकी सुविधा प्राप्त हुई। पूर्ण आराम मिलनेसे तकि. गाँवके पाटीलसे जमीन लेकर नूतन संस्कारित गजपन्थ है। यत ठीक हो गई। हम सब लोगोंने हैजेके टीके यहाँ ही हो सकता है कि गजपन्थ विशाल पहाड़ न रहा हो, पर वह लगवा लिये। क्योंकि श्रवण बेल्गोल में हैजेके टीकेके इसी स्थान पर था, यह अन्वेषणकी वस्तु है। इन सब उल्ले- विना प्रवेश निषिद्ध था। खोसे गजपन्थकी प्राचीनता और नासिकनगरके बाहिर उसकी बम्बईसे हम लोग ता. २६ की शामको ४ बजे अवस्थिति निश्चित थी। पर वह यही वर्तमान स्थान है।
पूनाके लिये रवाना हुए । बम्बईसे पूना जानेका मार्ग इस सम्बन्धमें कुछ नहीं कहा जा सकता। इस सम्बन्धमे बड़ा ही सुहावना प्रतीत होता है। पहाइकी चढ़ाई और अन्य प्रमाणोंके अन्वेषण करनेकी आवश्यकता है ।
पहाड़को काटकर बनाई हुई गुफाएँ देख कर चित्तमें गजपन्थकी वर्तमान पहाड़ी पर जो गुफाएं और मूतियाँ थीं
बड़ी प्रसन्नता हुई। यह प्रदेश इतना सुन्दर और मनउनका नूतन संस्कार कर देनेके कारण वहाँकी प्राचीनताका ।
मोहक है कि उसके देखनेके लिये चित्तमें बड़ी उत्कंठा स्पष्ट भान नहीं होता। वहाँकी प्राचीनताको कायम रखते
बनी रहती है। हम लोग रातको १ बजे पूना पहुँचे हुए जीर्णोद्धार होना चाहिये था। पहाब पर मूर्तिका दर्शन
और स्टेशनके पासकी धर्मशालामें ठहरे । यद्यपि
र भीदमें करना बड़ा कठिन होता है। और पहाड़ पर भी
पार पहाड़ पर भा पूनामें अनेक स्थल देखनेकी अभिलाषा थी । खासकर
. सावधानीसे चढ़ना होता है क्योंकि कितनी ही सीढ़ियाँ
"भण्डाकर रिसर्चइन्स्टिट्य ट" तो देखना ही था, अधिक ऊँचाईको लिये हुये बनाई गई हैं। हम लोगोंने
परन्तु समय की कमीके कारण उसका भी अवलोकन सानन्द यात्रा की।
नहीं कर सके। गजपन्थसे नासिक होते हुए पहाड़ी प्रदेशकी वह
पूनासे हम लोग रात्रिके ४ बजे कोल्हापुरके लिये मनोरम छटा देखते हुए हम लोग रात्रिको बजे ता० २२
रवाना हुए। और सतारा होते हए हम लोग रात्रि में फर्वरीको बम्बई पहुँचे और सेठ सुखानन्दजीकी धर्म कुभोज (बाहुबली) पहुँचे। शालामें चोथी मंजिल पर ठहरे।
कुम्भोज बड़ा ही रमणीक स्थान है। यहाँ अच्छी बम्बई एक अच्छा बन्दरगाह है और शहर देखने धर्मशाला बनी हुई है। साथ ही पासमें एक गुरुकुल है। योग्य है । बम्बईकी आबादी घनी है । सम्भवतः बम्बईकी गुरुकुल में स्वयं एक सुन्दर मन्दिर और भव्य रथ मौजूद आबादी इस समय पच्चीस तीस लाखके करीब होगी। है। बाहुबलीकी सुन्दर मूर्ति विराजमान है दर्शन पूजन बम्बई व्यापारका प्रसिद्ध केन्द्र है। यहाँसे ही प्राय. सब कर दर्शकका चित्त पाल्हादित हुए बिना नहीं रहता। वस्तुएँ भारतके प्रदेशों तथा अन्य देशोंमें भेजी जाती हैं। ऊपर पहाड़ पर भी अनेक मन्दिर हैं जिनमें पार्श्वनाथ हम लोगोंने बम्बई शहरके मन्दिरोंके दर्शन किये चौपाटीमें और महावीरकी मूर्तियाँ विराजमान हैं और सामने एक बने हुए सेठ माणिकचन्द्रजी और संघपति सेठ पूनमचन्द बड़ा भारी मानस्तम्भ है । बाहुबली स्वामीकी मूर्ति बड़ी घासीलालजीके चैत्यालयके दर्शन किये। ये दोनों ही ही सुन्दर और चित्ताकर्षक है । दर्शन करके हृदयमें जो चैत्यालय सुन्दर हैं। भूलेश्वरके चन्द्रप्रभु चैत्यालयके श्रानन्द प्राप्त हुश्रा वह वचनातीत है। दर्शन पूजनादिसे दर्शन किये । रात्रि में वहाँ मेरा और बाबूलालजी जमादारका निपट कर मुनि श्रीसमन्तभद्रजीके दर्शन किये, उन्होंने भाषण हुश्रा । एक टैक्सी किरायेकी लेकर बन्दरगाह भी अभी कुछ समय हुए मुनि अवस्था धारण की थी। देखा । समयाभावके कारण अन्य जो स्थान देखना चाहते उन्होंने कहा कि मेरा यह नियम था कि ६० वर्षकी थे, वे नहीं देख पाये।
अवस्था हो जाने पर मुनिमुद्रा धारण करूंगा। मुनि
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org