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________________ १६२ ] अनेकान्त [किरण ६ - नगर' था, पीछे किसी समय बडवानी हश्रा होगा। वहीं ३-संवत् १३८० वर्षे माघसुदि ७ सनी श्रीनांदरंगाराकी बावडीके लेखसे ऐसाही मालुम होता है। परन्तु संघे बलात्कारगणे सरस्वतीगच्छे मूलसंघे कुन्दकुन्दा यह कल्पना ठीक नहीं हैं। बडवानी यह नाम कमसे कम चार्यान्वये भट्टारक श्रीशुभकीर्तिदेवतशिष्य सीति छह-सातसौ वर्षसे कम पुराना प्रतीत नहीं होता, क्योंकि " ___एक मूर्ति पर वि० सं० १२१२ का भी लेख अंकित वक्रमकी १५ वीं शताब्दीके भट्टारक उदयकीर्तिने अपनी है उसमें शिल्पकारका नाम कुमारसिंह दिया हुआ है। निर्वाणभक्तिमें इसका उल्लेख किया है, और निर्वाण सम्वत् १५१६ में काष्ठासंघ माथुरगच्छ पुष्करगणके काण्डकी वह गाथा भी उक्त भक्ति से पुरानी जान पड़ती भट्टारक श्रीकमलकीर्तिके शिष्य मंडलाचार्य रत्नकीर्तिने है। भक्तिका वह उल्लेख वाक्य इस प्रकार है: मन्दिरका जीर्णोद्धार किया, और बड़े चैत्यालयके पार्श्वमें 'वडवाणीरावणतण उपुत्त हवंदमि इन्दांज मुांण पवित्तु दश जिनवसतिकाओंकी अारोपणा की। तथा इन्द्रजीतकी चूलगिरिके शिखरस्थित मन्दिरोंका जीर्णोद्धार विक्रम- प्रतिमाकी प्रतिष्ठा भी श्रीसंघके लिये की गई। इस तरह की १३ वी १४ वीं और १६ वीं शताब्दीमें किया गया यह चूलगिरिक्षेत्रका पुरातन इतिवृत्त १० वीं शताब्दीके है। जिनमें दो. शिलालेख वि० सं० १२२३ के हैं और आस पास तक जा सकता है। पर यदि वहाँकी पुरातन एक मूर्ति लेख संवत् १३८० का है। शेष लेख समयकी ___ मामग्रीका संचय कर समस्त शिलालेख और मूर्तिलेखोंका कमीसे नोट करनेसे रह गए । दूसरे लेखसे मुनि रामचन्द्र- संकलन कर प्रकाशन कार्य किया जाय। तब उसके की गुरुपरम्पराका उल्लेख मिल जाता है जो लोकनन्दी- इतिहासका ठीक पता चल सकता है। . मुनिके प्रशिष्य और देवनन्दीमुनिके शिष्य थे। मुनि बडवानीसे उसी दिन रात्रिको १० बजे चलकर हम रामचन्द्र के शिष्य शुभकीतिका भी उल्लेख अन्यत्र पाया लोग १२ बजेके करीब ऊन (पावागिरि) पहुँचे। जाता है। वे लेख पूर्व और दक्षिण दिशाके निम्न यह क्षेत्र कुछ समय पहले प्रकाशमें आया है। इसे ऊन प्रकार हैं: छथवा 'पावागिरि' कहा जाता है। इस क्षेत्रके 'पावागिरि' होनेका कोई पुरातन उल्लेख मेरे देखने में नहीं आया। , 'यस्य स्वकुब्जतुषारकुन्द विशदाकीर्तिगुणानां निधिः श्रीमान भूपतिवृन्दवन्दितपदः श्रीरामचन्द्रो मनिः। यहाँ एक पुराना जैन मन्दिर ११वी १२वीं शताब्दीका बना हुआ है, जो इस समयं खण्डित है, परन्तु उसमें विश्वक्ष्माभृद्ःखवैशेखर शिखा सञ्चारिणी हारिणी, एक दो पुरानी मूर्तियाँ भी पड़ी हुई हैं । जिनकी तरफ इस उठ्यों शत्रु जितो जिनस्य भवनव्याजेन विस्फूति ।। क्षेत्र कमेटीका कोई ध्यान नहीं है। यहाँ दो तीन नूतन रामचन्द्रमुनेः कीर्ति सङ्कीर्ण भुवनं किल । मन्दिरोंका निर्माण अवश्य हुअा है, जिनमें ३ मूर्तियां अनेकलोक सङ्घर्षाद् गता सवितुरन्तिकं ॥ परानी हैं। वे तीनों मूतियाँ एक ही तरहके पाषाणकी सम्बत् १२२३ वर्षे भाद्रपदवदि १४ शुक्रबार । बनी हुई हैं। उनमेंसे दोनों ओरकी मूर्तियोंके लेख मैंने ओनमो वीतरागाय ॥ उतार लिये थे, परन्तु तीसरी मूर्तिका अभिलेख कुछ आसीद्यःकलिकालकल्मषकरिध्वंसैककंठीरवो, अंधेरा होनेसे स्पष्ट नहीं पढ़ा जाता था इस कारण उतावनेक्ष्मापतिमौलिचुम्बितपदः यो लोकनन्दो मुनिः। रनेसे रह गया था। वे दोनों मूर्तियाँ संभवनाथ और कुथनाथकी हैं उनके मूर्ति लेख निम्नप्रकार हैं:शिष्यस्तस्य स सर्वसङ्घतिलक श्रीदेवनन्दो मुनिः। "सम्बन् १२५८ श्रीबलात्कारगणपण्डित श्रीदेशधर्मज्ञानतपोनिधिर्यतिगुणग्रामः सुवाचां निधिः ।।१।। नन्दी गुरुवर्यवरान्वये साधु धणपण्डित तरिशष्य साधुसो. वंशे तस्मिन् विपुलतपसां सम्मतः सत्वनिष्ठो। लेण तस्य भार्या हर्षिणी तयोः सुत साधुगासूल सांतेण वृत्तिपापां विमलमनसा त्यज्यविद्याविवेकः। प्रणमति मित्यम्" रम्यां हये सुरपतिजित: कारितं येन विद्या। २ श्री सम्वत् १२६३ वर्षे ज्येष्ठमासे १३ गुरी साधु ति भुवने रामचन्द्रः स एषः॥२॥ पंडित रुणुयेनितं सुतसीलहारेण प्रणमति नित्यम्" संवत् १२२३ वर्ष। तीसरी मूर्ति अजितनाथकी है। शेषां कीर्तिीति और Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527320
Book TitleAnekant 1953 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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