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________________ १६४ ] देश में छप्पन देशोंका समावेश निहित था । किन्तु जबसे उसे पूर्वी र पश्चिमी दो विभागों में विभाजित कर डूगढ़पुर राज्य और बांसवाडा राज्यकी अलग अलग स्थापना की गई। उसी समय से डूंगरपुर राज्य भी बागद कहा जाने लगा है। अनेकान्त [ किरण, ५ ५-६ घर जैनियोंके है जिनकी आर्थिक स्थिति साधारण है रहन सहन भी उच्च नहीं है । शाह कचरूलाल एक साधर्मी सजन हैं, जो प्रकृतिले भद्र जान पड़ते हैं। उन्होंने ही रात्रि में हम लोगों के ठहरनेकी व्यवस्था कराई । यहां एक जैन मन्दिर अधबना पड़ा है- कहा जाता है कि कई दि० जैन सेठ इस मन्दिरका निर्माण करा रहा था । परन्तु कारणवश किसी नवाबने उसे गोली मरवा दिया जिससे यह मंदिर उस समयसे अधूरा ही पड़ा है। C डूगरपुर राज्य में जैनियो की अच्छी संख्या पाई जाती है जो दिगम्बर और श्वेताम्बर दो भागों में विभाजित है, उनमें डूंगरपुर स्टेटमें दिगम्बर सम्प्रदायके जैनियोंकी संख्या अधिक हैं जो दशा हूमड़, वीसाहूमड़, नरसिंहपुरा बीसा, तथा नागदाबीसा आदि उपजातियोंमें विभाजित है । इन जातियोंके लोग राजपूताना, वागढ़ प्रान्त और गुजरात प्रान्त में ही पाये जाते हैं । यह हूमड़ जाति किसी समय बड़ी समृद्ध और वैभवशाली रही है, यह जैन धर्मके श्रद्धा रहे हैं, इनका राज्यकार्यके संचालनमें भी हाथ रहा है। खास दूंगरपुर में दिगम्बर जैनियोंकी संख्या सी भरसे ऊपर है। एक भट्ट य गद्दी भी है और उस गद्दी पर वर्तमान भट्टारक मौजूद हैं, पर वे विद्वान नहीं है किन्तु साधारण पढ़े लिखे है । परन्तु मुझे इस समय उनका नाम स्मरण हो गया है। डूंगरपुर में 8 शिखरवन्द मन्दर हैं मन्दिरों में मूर्तियों का सग्रह अधिक है । भहारकीय मन्दिर में अनेक हस्तलिखित ग्रन्थ मौजूद हैं। जिनमें कई पत्रों पर भी अंकित हैं । डू ंगरपुर के श्रास-पास के गांवोंमें भी अनेक जैन मन्दिर हैं, जहां पहले उनमें दिगम्बर जनियोंकी आबादी थी किन्तु खेद है कि अब वहाँ एक भी घर जनियोंका नहीं है, केवल मन्दिर ही अवस्थित है । + भी सागवाडा भी डूंगरपुरराज्य में स्थित है । विक्रमकी १२वीं १६वीं और १०वीं शताब्दी में जैनधर्मका महत्वपूर्ण स्थान रहा है । सागवाडेकी भट्टारकीय गद्दी भी प्रसिद्ध रही है। इस गद्दी पर अनेक भट्टारक हो चुके हैं जिनमें कई भट्टारक बड़े भारी विद्वान और ग्रन्थकार हुए हैं। Jain Education International डूंगरपुरसे थोड़ी दूर ५-६ मील चलकर एक छोटी नदी पारकर हम लोग 'शालायाना' पहुँचे। यह एक छोटा सा गांव है और दूंगरपुर में ही शामिल है। यहां सेठ दामाजीक कारकी टंकी में छिद्र हो जानेके कारण रात भर ठहरना पढ़ा शाखाधानामें एक दिगम्बर जैन मन्दिर है, मन्दिर में एक शिलालेख भी अंकित है। इस गाँव में शालाधानासे ४ बजे सबेरे चलकर हम लोग रतनपुर होते हुए 'सांवला' जी पहुँचे । रास्ता बीहड़ और भयानक है बड़ी सावधानी से जाना होता है, जरा चूके कि जीवनकी आशा निराशामें बदल जानेकी शौंका रहती है। शालाधानामें दूंगरपुरके एक सैय्यद ड्राइवर ने हमारे ड्राइवरको रास्तेकी उस विषमताको बतला दिया था, साथ ही गाड़ीकी रफ्तार आदिके सम्बन्ध में भी स्पष्ट सूचना कर दी थी, इस कारण हमें रास्ते में कोई विशेष परेशानी नहीं उठानी पड़ी । श्यामाजी मन्दिर नहीं था धर्मशाला थी, अतः त्यागियोंको सामायिक कराकर संघ 'मुड़ासा' पहुँचा । मुडासामें हम लोग 'पटेल' बोडिंग हाऊसमें ठहरे, स्नानादिसे निवृत होकर भोजन किया। यह नगर भी नदीके किनारे बसा हुआ है । यह किसी समय अच्छा शहर रहा है आज भी यह सम्पन्न है, और व्यापारका स्थल बनने जा रहा है । यह वही स्थान है जहां पर भट्टारक जिनचन्द्र ने संवत् १५४८ में सहस्त्रों मूर्तियां शाह जीवराज पापडीवाल द्वारा प्रतिष्ठित कराई थी, उस समय मुड़ासामें किसी रावलका राज्य शासन चल रहा था, जिसका नाम अब मूर्ति लेखोंमें अस्पष्ट हो जाने से पढ़ा नहीं जाता है। खेद है कि आज वहां कोई भी दिगम्बर जैन मन्दिर नहीं है। हां श्वेताम्बर मन्दिर मौजूद है। यहां से हम लोग अहमदाबादकी की ओर चले । १०-१५ मील तक तो सड़क अच्छी मिली. बादमें सड़क अत्यन्त खराब ऊबड़ खाबड़ थी, मरम्मत की जा रही थी, रात्रिका समय होनेसे हम लोगोंको बड़ी परेशानी उठानी पड़ी। फिर भी हम लोग धैर्य धारणकर कष्टोंको परवाह न करते हुए रात्रिको १२ ॥ बजे अहमदाबादमें सलापस रोड पर सेठ प्रेमचन्द्र मोतीचन्द्र For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527319
Book TitleAnekant 1953 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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