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________________ किरण ५ ] हिन्दी जैन-सा हत्य में शुभाषित ग्रन्थोंका भी परिचय मिलता है. कविवर भूधरदः स विरचित जैनशतक, बुधजन कृत, बुधजन सतसई और छत्रपति विरचित, मदनमाहनपंचशती आदि महत्वपूर्ण काव्य-ग्रन्थ 1 हिन्दी - जैन- साहित्यकी विशेषता जैन साहित्यकी महत्ता वर्णित करते हुए श्री पूरनचंद नाहर और श्रीकृष्णचन्द्र घोष अपनी कृति 'On Epitome of Jainism' में इस प्रकार लिखते हैं। "It is beyond doubt that the Jain writers hold a prominent position in the literary activity of the country. Besides the Jain Sidhanta and its commentaries there are a great num केशरियाजी से सबेरे दश बजे चलकर हम लोग ४ बजे करीब डूंगरपुर आये। इस नगरका पुरातन नाम 'गिरिपुर' ग्रन्थों में उल्लिम्बित मिलता हैं । उस समय गिरिपुर दिगम्बर समाजके विद्वानोंकी ग्रंथ रचना स्थान रहा है जिसके दो उदाहरण नीचे दिये जाते हैं। यद्यपि इनके अतिरिक्त तलाश करने पर अनेक उदाहरण मिल सकते हैं। माथुरसंघीय भट्टारक उदयचन्द्रके प्रशिष्य और भ० बालचन्द्रके शिष्य विनयचन्द्रने, जिनका समय विक्रम की १२ वीं शताब्दी है, अपना अपभ्रंशभाषाका 'चूनड़ी' नामका प्रन्थ जो ३३ पद्योंकी संख्या के लिये हुए हैं, गिरि• पुरके अजय नरेशके राजविहार में बैठकर बनाया है। X हमारी तीर्थयात्रा संस्मरण ( गत किरण तीनसे भागे ) विक्रमकी १६ वीं और १७ वीं शताब्दी के पूर्वाध के विद्वान भट्टारक शुभचन्द्र ने अपना 'चन्दनाचरित्र' वाश्वर देशके 'गिरिपुर' नामके नगर में बनाकर समाप्त किया है जैसा कि 'चन्दना चरित्र' के निम्न पद्यसे स्पष्ट है: X बियि गिरिपुरु जग विक्खायड सम्मा खरडणं भरियल आयड हिबिसंतें मुखिवरेण अजय परिवो राय-विहारहिं । Jain Education International ber of other works both in prakrit and Sanskrit, on philosophy, Logic, Astronomy, Grammar, Rhetone, Lives of Saints etc. Both in prose and poetry .... Inshort the Jain literature c mprising as it does all the branches of ancient Indin literature holds no unsignificant a niche in the gallary of that literature, aud as it truly said by Prof. Her to. ‘With respect to its narrative part, it holds a prominent position not only in the Indian literature but in the literature of mankind." -Pp. 694-95. १६३ arrat वावरे देशे वाग्वरैर्विदिते क्षितौ । चन्दनाचरितं चक्रे शुभचन्द्रो गिरौपुरे ॥२०० इन समुल्लेखोंसे गिरिपुरकी महत्ताका स्पष्ट श्राभास मिलता है । परन्तु इस गिरिपुर नगरका 'डू ंगरपुर' नाम कब पड़ा, यह कुछ ज्ञात नहीं होता, संभव है किसी 'डूंगर' नामके व्यक्ति के कारण इस नगरका नाम डूंगरपुर लोकमें विश्र तिको प्राप्त हुआ हो अथवा डूंगर या डूंगर' शब्द पर्वतके अर्थ में प्रयुक्त होता है । अतः सम्भव है कि पहाड़ी प्रदेश होनेके कारण उसका नाम डूंगरपुर पड़ा हो । डूंगरपुर राज्यका प्राचीन नाम बागड़' है, जो गुजराती भाषा के 'त्रगढ़। ' शब्दसे बहुत कुछ सादृश्य रखता है आज कल 'गभी इसे 'वागड़िया' कह देते हैं । 'वागढ़' शब्दका संस्कृत रूपान्तर भी वाग्वर, वागट और वैयागढ़ अनेक लिखालेखों प्रशस्तियों और मूर्तिलेखोंमें अंकित मिलता है । इससे स्पष्ट है कि डूंगरपुरका सम्बन्ध वागडले रहा हैवागढ देश में डूंगरपुर, बांसवाडा और उदयपुरके कुछ दक्षिणी भागका समावेश किया जाता था अर्थात् वागढ * देखो, डूंगरपुरका इतिहास पृ० २ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527319
Book TitleAnekant 1953 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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