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________________ किरण ३] आत्मा, चेतना या जीवन [८३ धातुओं या रसायनोंके गुणोंके मिश्रित फलस्वरूप अपने भी उनके अपने गुणही उनमें अलग अलग रहेंगे। अथवा विशेष होते हैं:-पर पुनः जब किसी प्रक्रिया या प्रक्रियाओं ६-७ धातुभोंके किसी सम्मिश्रित वस्तुसे दो दो तीन तीन द्वारा इन विभिन्न मूल धातुओंको अलग अलग कर दिया धातुनोंकी सम्मिश्रित वस्तुएं अलग अलग निकलें तब भी जाता है तो उनके अपने गुण हर धातुके अलग अलग उन अलग अलग हुए छोटे सम्मिश्रणोंमेंभी वे ही गुण उन धातुओंमें पूर्णतः पाए जाते हैं या स्वभावतः ही रहते पाये जायंगे जो उनके बनाने वाली धातुओंको यदि अलगहैं। अब दूसरा उदाहरण लीजिए-गंधकका तेजाब से उन्हीं अनुपातोंमें अलग मिलाकर वैसाही कोई सम्मि(Sulphuric acid, HD So 4) इसमें हाइड्रोजन, श्रण कभी बनाया जाता। इत्यादि । सारांश यह कि गंधक और आक्सिजनका संमिश्रण (Compounding) किसी भी वस्तुका गुण, शुद्ध दशामें सर्वदा वही रहता है। रहता है, इसके भी अपने विशेष गुण होते हैं पर इसको जो उसका गुण है; मिश्रणकी दशामेंभी मिश्रित वस्तुका बनाने वाली मूल धातुएँ या रसायनें अलग अलग कर दी गुण सर्वदा वही रहता है जो उस मिश्रणका होता है; जानेपर पुनः अपने मूल गुणोंके साथही पाई जाती हैं जब भी मिश्रणसे वह वस्तु पुनः मूलरूपमें निकलती है तो न जरा कम न जरा अधिक, सब कुछ ज्योंका त्यों। गंधक वह अपने मूलगुणोंके साथही होती है और एक मिश्रण और आक्सिजन दोनों ही । उपरोक्त) दोनों सम्मिश्रणों निकलकर दूसरा मिश्रण बनाने पर अथवा विभिन्न (Compounds ) में शामिल थे। दोनों सम्मिश्रणोंके मिश्रणोंके संघटन या विघटनोंकी संख्या चाहे कितनी भी गुण अलग अलग विभिन्न थे। पर जब गंधक और क्यों न हो मूल वस्तुओं या धातुओंके मूलगुण सर्वदा प्राक्सिजन पुनः सम्मिश्रणोंमें से निकल गए या अलग ज्योंके स्यों उनमें सम्मिलित रहते हैं और विभिन्न कर लिए गए तो उनमें गंधक और पाक्सिजनके अपने मिश्रणोंके गुण भी सर्वदा वे ही गण होते हैं जो विशेष अपने गुण ही रहे। एक तीसरा उदाहरण लीजिए:- धातुओं, वस्तुओं या रसायनोंके विशेष परिमाणोंमें मिलाए जल (H20)। इसमें हाइड्रोजन और पाक्सिजनका जाने पर कभी भी हों या होते हैं। ये स्वयं सिद्ध प्रकृति मिलाप होता है। जलके गुण हम बहुत कुछ देखते, पाते या सृष्टि (Nature or Creation) के स्वाभाविक या जानते हैं। जल एक तरल या द्रव ( Liquid) (Fundamental) नियम हैं। ये शास्वत, सत्य पदार्थ है, जबकि इसके बनाने वाले दोनों अंश (Cons- और 'ध्रुव हैं। इनमें विश्वास न करना या कुछ दूसरी tituents) गैस या वायुरूपी पदार्थ हैं । सबके गुण तरहकी बातें सोचना समझना भ्रम, अज्ञान, ग़लती अलग २ निश्चित हैं। शुद्ध अबस्थामें इनके अपने गुणामें या ज्ञानको कमीके कारण ही हो सकता है। आधुनिक जरा भी फर्क कभी भी कहीं भी किसी प्रकार भी नहीं विज्ञानने इन तथ्यों या सत्योंका प्रतिपादन ध्रुव या पड़ सकता। इतनाही नहीं सम्मिश्रण होने के पहले, निश्चित और सर्वथा संशय रहित रूपसे कर दिया सम्मिश्रणकालमें एवं सम्मिश्रण विघटित होने पर हर है-इसमें कोई शंका या पाशंका या अविश्वासकी जगह मूलधातुके गुण सर्वदा ज्योंके त्यों उन धातुओंके कणोंमें ही नहीं रह गई है । वस्तुका अपना गुण या अपने गुण रहते हैं उनसे अलग नहीं होते न कमवेश होते हैं। हां, हजारों लाखों वर्षों में भी नहीं बदलते सर्वदा-शास्वत रूपसम्मिश्रणकी अवस्थामें उन्हीं गुणोंके पापसमें संयुक्त रूप से वस्तु और गुण एकमेक रहते हैं । खनिज पदार्थोंको से संघबद्ध हो जाने के कारण सम्मिश्रित वस्तुके गुण का ही लीजिए लोहे वाले पत्थर ( Iron pyrites ) और निर्माण अपने माप गुणोंके सम्मिश्रण या संघबद्धताके आलुमीनियम वाले पत्थर (बौक्साइट Bauxite)न फलस्वरूप ( As a resultant) हो जाता है। पर जाने सृष्टिके प्रारम्भमें जब पृथ्वी जमकर ठोस पदार्थके पुनः संघबद्धता टूटने या विघटन होने अथवा मिश्रित रूपमें पृथ्वी हुई तबसे कब बने थे पर अब भी उनके गुण धातुओंके अलग अलग हो जानेपर वे मूलगुण भी पुनः ज्यों के त्यों हैं। सभी धातुओं और पदार्थों के साथ यही ज्योंके त्योंही अलग अलग हो जाते हैं या पाए जाते हैं। बात है । गन्धक या प्राक्सिजन या हाइड्रोजन या तांबासम्मिश्रित या संघबद्ध वस्तुके प्रांशिक विघटन स्वरूप के सम्मिश्रणके दो उदाहरण ऊपर दिये गये हैं । गन्धक कोई एक या दो मूलधातुएँ ही अलग अलग निकलें तब इत्यादिके जो गुण आजसे हजारों वर्ष पहले थे वे ही Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527317
Book TitleAnekant 1953 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1953
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size10 MB
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