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________________ ३६ अनेकान्त श्रावकका मुख्य कर्तव्य है । आगमका अध्यन करना महोपकारी है । यदि आगमके ज्ञाता न हों तो आपकी सभाओं और मन्दिरोंकी शोभा कैसे होसकेगी । उन पत्थर के खम्भोंसे मन्दिरकी शोभा नहीं है, ज्ञानवानोंसे मन्दिरकी शोभा है। लोग कहते हैं कि इन विद्यालयोंमें हमारा लाखों रुपया व्यर्थ चला गया, कुछ भी लाभ नहीं हुए । पर मैं कहता हूँ कि तुम्हारे (सागर) विद्यालय से ये तीन विद्वान् (पं० दयाचन्दजी, पन्नालालजी, माणिकचन्दजी) तैयार होगये तो तुम्हारा लाखोंका खर्च सफल होगया । तुम्हीं सोचो ज्ञानके बिना क्या शोभा ? देवकी पूजाका अभिप्राय यह नहीं कि उन्हींको हमेशा पूजते रहो । अरे ! वह तो तुम्हारा रूप है । वैसा तुम्हें बनना है । उपादान तो तुम्हीं हो। प्रयत्न तो तुम्हींको करना है । श्रीजिनेन्द्रदेव निमित्त मात्र हैं। आपका बच्चा पढ़ गया, पंडितजीने पढ़ा दिया । क्षयोपशम बच्चेकी आत्मा में था । प्रयत्न उसने किया, पर उसका श्रेय पंडितजीको दिया जाता है, यह निमित्तकी प्रधानतासे कथन है । निमित्तकी प्रधानता से ही देवको कल्याणकारी माना जाता है, उपादानकी अपेक्षासे नहीं । यथार्थ में आपकी आत्मा ही देव है वही पूज्य है । एक किस्सा है। आप लोगोंने कई बार सुना है। फिर भी कहता हूँ : तो एक आदमी था । उसकी स्त्री थी । स्त्री बड़ी चतुर थी। जब उसका पति परदेश जाने लगा उसे डर लगा कि यह वहाँ धर्मभ्रष्ट न हो जाय । जाते समय उसने उसे एक गोलवटैया दी और कहा कि इनकी पूजा किये बिना खाना नहीं खाना और जब पूजा करो तब इनके सामने प्रतिज्ञा किया करो कि 'मैं पाप नहीं करूँगा ।' पुरुष था भोला-भाला, उसने की बात मान ली। वह एक दिन पूजा करके कहीं गया कि इतनेमें चूहाने वटैयापरके चावल खा लिये और उसे लड़का दिया । उसने समझा कि इस वटैयासे बड़ा तो यह चूहा है इसे ही पूजना चहिये । वह चूहाको पूजने लगा । एक दिन बिलाव - Jain Education International [वर्ष १० के सामने चूहा डरकर रह गया । उसने समझा यही बलवान् है इसे पूजना चाहिये । एक दिन कुत्ता आया । उसके सामने बिलाव डर गया। अब वह कुत्ते पूजने लगा । परदेशसे कुत्तेको साथ ले आया । . एक दिन कुत्ता चौकामें चला गया। स्त्रीने उसके शिरमें वेलन जमा दिया । वह कई-कई करता हुआ भागा । पुरुषने सोचा यह स्त्री कुत्तेसे बड़ी है इसे ही पूजना चाहिये | अब वह उसे पूजने लगा। एक दिन स्त्रीने दालमें नमक अधिक डाल दिया जिससे उस पुरुषने उसके शिर में एक चांटा मार दिया । वह रोने लगी । पुरुषने समझा अरे इससे बलवान् तो मैं ही हूँ । मुझे स्वयं अपने आपकी पूजा करना चाहिये । सो भैया ! कल्याण तभी होगा जब आप अपनी पूजा करने लगेंगे, लेकिन जब तक वह दशा प्राप्त नहीं हुई है तब तक देव आदिको पूजना ही है । 1 कुदेव, कुगुरु और कुधर्मकी सेवा करना सो धर्म है । जो स्वयं रागी -द्वेषी है, विषय-वासनाओंमें आसक्त है उसकी आराधनासे कल्याण होगा, यह संभव नहीं । जहाँ धर्मके नामपर मैं-मैं करते हुए निबल जन्तुओं के गलेपर छुरी चला दी जाय वह क्या धर्म है ? ऐसे धर्मसे क्या किसीका कल्याण हो सकता है ? कल्याण तो उस धर्मसे होगा जिसमें प्राणिमात्रका भला चाहा जाता है। एक पंडित थे मन्मथ भट्टाचार्य । बोले जैनधर्मने भारतवर्षको वर बाद कर दिया । इनकी अहिंसाने दुनिया को कायर बना दिया। दूसरा एक समझदार वहीं था । उसने उत्तर दिया । जेनधर्मने भारतको वरवाद नहीं किया, जैनधर्म कायरता नहीं सिखाता । वह इतना वीरतापूर्ण धर्म है कि उसे यदि कोई घानीमें भी पेल देवे तब भी उफ नहीं करे। भारतवर्षको नष्ट किया है हमारी विषयासक्तिने, हमारे प्रमादने, हमारी फूटने । संसार भरी दशा बड़ी विचित्र है । कलका करोड़पति आज भीख मांगता फिरता है । संसारकी दशा एक पानीके बबूलेके समान है । संसारी जीव मोह For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527268
Book TitleAnekant 1949 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1949
Total Pages44
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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