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________________ मानवजातिके पतनका मूल कारण-संस्कृतिका मिथ्यादर्शन (प्रो० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य, भारतीयज्ञानपीठ काशी) संस्कृतिके स्वरूपका मिथ्यादर्शन ही मानवजातिके पतनका मुख्य कारण है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। यह अपने आस-पासके मनुष्यों को प्रभावित करता है। बच्चा जब उत्पन्न होता है तो बहुत कम संस्कारोंको लेकर आता है। उत्पत्तिकी बात जाने दीजिये। यह आत्मा जब एक देहको छोड़कर दूसरा शरीर धारण करनेके लिये किसी स्त्रीके गर्भ में पहुंचता है तो बहुत कम संस्कारोंको लेकर जाता है। पूर्व पर्यायकी यावत् शक्तियाँ उसी पर्यायके साथ समाप्त हो जाती हैं कुछ सूक्ष्म संस्कार ही जन्मान्तर तक जाते हैं। उस समय उसका आत्मा सूक्ष्मकार्मण शरीरके साथ रहता है । वह जिस स्त्रीके गर्भमें पहुंचता है वहाँ प्राप्त वीर्यकण और रजःकणसे बने हुए कललपिण्डमें विकसित होने लगता है। जैसे संस्कार उस रजकण और वीयकरणमें होंगे उनके अनुसार तथा माताके आहार-विहार विचारोंके अनुकुल वह बढ़ने लगता है । वह तो कोमल मोमके समान है जैसा साँचा मिल जायगा वैसा ढल जावेगा। अतः उसका ६६ प्रतिशत विकास उन माता-पिताके संस्कारों के अनुसार होता है । यदि उनमें कोई शारीरिक या मानसिक बीमारी है तो वह बच्चेमें अवश्य आजायेगी। जन्म लेनेके बाद वह माँ बापके शब्दोंको सुनता है उनकी क्रियाओंको देखता है। आसपासके लोगोंके व्यवहारके संस्कार उसपर क्रमशः पड़ते जाते हैं। और वह संस्कारोंका पिण्ड बन जाता है । एक ब्राह्मणसे उत्पन्न बालकको जन्मते ही यदि मुसलमानके यहाँ पालनेको रख दिया जाय तो उसमें वैसे ही खान-पान, बोलचाल, आचार-विचारके संस्कार पड़ जायेंगे। वही उल्टे हाथ धोना, अब्बाजान बोलना, सलामदुआ करना, मांस खाना उसी मग्गेसे पानी पीना, उसीसे टट्टी जाना आदि । यदि वह किसी भेड़ियेकी माँदमें चला जाता है तो वह चौपायोंकी तरह चलने लगता है । कपड़ा पहिनना भी उसे नहीं सुहाता, नाखूनसे दूसरोंको नोचता है। शरीरके आकारके सिवाय सारी बातें भेड़ियों जैसी हो जाती हैं। यदि किसी चाण्डालका बालक ब्राह्मणके यहाँ पले तो उसमें बहत कुछ संस्कार ब्राह्मणोंके आजायेंगे । हाँ, नौ माह तक चाण्डालीके शरीरसे जो उसमें संस्कार पड़े हैं वे कभी कभी उद्बुद्ध होकर उसके चाण्डालत्वका परिचय करा देते हैं । तात्पर्य यह कि मानवजातिकी नूतन पीढ़ीके लिये बहुत कुछ माँ बाप उत्तरदायी हैं। उनकी बुरी आदतें, खोटे विचार उस नवीन पीढ़ीमें अपना घर बना लेते हैं। आज जगत्में सब चिल्ला रहे हैं संस्कृतिकी रक्षा करो संस्कृति डूबी संस्कृति डूबी उसे बचाओ। इस संस्कृतिके नामपर उसके अजायबघरमें अनेक प्रकारकी बेहूदगी भरी हुई है । कल्पित ऊँचनीच भाव, अमुक प्रकारके आचार-विचार, रहनसहन, बोलनाचालना, उठनाबैठना आदि सभी शामिल हैं। इस तरह जब चारों ओरसे संस्कृति रक्षाकी आवाज़ आरही है और यह उचित भी है तो सबसे पहिले सस्कृतिकी परीक्षा होना जरूरी है। कहीं संस्कृतिके नामपर मानवजातिके विनाशके साधनका पोषण तो नहीं किया जा रहा । ब्रिटेनमें अंग्रेज जाति यह प्रचार करती रही कि-गोरी जातिको ईश्वरने काली जातिपर शासन करनेके लिये ही भूतलपर भेजा है और इसी कुसंस्कृतिका प्रचार कर वे भारतीयोंपर शासन करते रहे। यह तो हम लोगोंने उनके ईश्वरको बाध्य किया कि वह उनसे कह दे कि अब शासन करना छोड़ दो और उसने For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.527261
Book TitleAnekant 1948 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size3 MB
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