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________________ ॐ अर्हम् विश्व तत्त्व-प्रकाशक मन का मूल्य वार्षिक ५) नीतिविरोधध्वंसी लोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् । | परमागमस्य बीजं भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ वस्तु तत्त्व-संघातक वर्ष वीर सेवामन्दिर ( समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जिला सहारनपुर किरण १२ मार्गशीर्षशुक्ल, वीरनिर्वाण - संवत् २४७५, विक्रम संवत् २००५ धर्म और वर्तमान परिस्थितियाँ (ले० - नेमिचन्द्र शास्त्री, ज्योतिषाचार्य, साहित्यरत्न ) ११वीं किरणके मूल्य में शामिल दिसम्बर १६४८ मानवता धर्म है और मानवजीवनको विकासकी ओर ले जानेवाले नियम धर्मके अङ्ग हैं। विचारके लिये मानवजीवनको प्रधान तीन क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता हैशारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक । नित्य, चैतन्य और अखण्ड आत्माके विकास एवं उसके मूल स्वरूपमें प्रतिष्ठित होनेके लिये उपर्युक्त तीनों शक्तियाँ साधन हैं । इनके विकास द्वारा ही चरम लक्ष्य आत्माकी अनुभूति होती है अथवा जो आत्माका अस्तित्व नहीं भी मानते हैं, उनके लिये भी उक्त तीनों क्षेत्रोंके विकास की नितान्त आवश्यकता है। क्योंकि मानवकी मानवता इन तीनोंके विकासका ही नाम है । अतएव धर्मका लक्ष्य भी इन तीनों शक्तियों के विकसित करनेका है। जब तक इन तीनोंमेंसे कोई भी शक्ति अविकसित रहती है, मानव अपूर्ण ही रहता है । स्पष्ट करनेके लिये यों कहा जा सकता है कि शरीर के विकास के अभाव' में मानसिक शक्तियोंका विकास नहीं और मानसिक शक्तियोंके कमजोर होनेपर आध्यात्मिक शक्तिका विकास सम्भव नहीं, अतः आजके वैज्ञानिकोंके यहाँ भी क्रिया, विचार और भावना इन तीनोंकी अविकसित अवस्थामें व्यक्तिगत जीवन निष्क्रिय जीवन होगा । व्यक्तिकी निष्क्रियता अपने तक ही सीमित नहीं रहेगी, प्रत्युत उसका व्यापी प्रभाव समाजपर पड़ेगा; जिसका फल मानव समाज के विनाश या उसकी असभ्यतामें प्रकट होगा । १ शरीर की उस शक्तिका नाम शारीरिक विकास है, जहाँ भोजन के अभाव में उसकी स्थिति रह सके । Jain Education International! मानसिक शक्तिका अर्थ ज्ञानका चरम विकास है तथा आध्यात्मिक शक्तिका अर्थ आत्मस्वरूपके www.jahnelibrary.org.
SR No.527261
Book TitleAnekant 1948 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages88
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size3 MB
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