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________________ ४०२] अनेकान्त [वर्ष ६ दिखती हैं। भयङ्कर युद्ध होता है और परिणामस्वरूप यद्यपि सब लोग उन्हें ऐसा न करनेको समझाते हैं। वीभत्स चित्रणकी भी ओर संक्षेपमें कविने ध्यान विवाहके प्रसङ्गमें कविने वैराग्यकी स्थितिको छोड़कर दिया है। विद्याधर विद्या-बलसे माया-युद्ध करता है। सुन्दर विवाहका वर्णन प्रस्तुत किया है, विवाहके कभी झंझावात चलने लगती है, कभी प्रलयजल 'दाइजे', तथा भोजनके सरल वर्णन किए हैं, जम्बू बरसने लगता है। अद्भुत रस यहाँ वीरको सहायता नववधुओंके साथ वासगृहमें जाते हैं। इस प्रसङ्गमें करता दिखता है। विद्याधरने राजा मृगाङ्कको बाँध कविने महिलाओंके हाव-भावों (चेष्टाओं)का अच्छा लिया, जम्बूने युद्ध करते हुए राजाको छुड़ा लिया और चित्रण किया है। जम्बूका मन इन सब व्यापारोंमें पराजित करके उसे भगा दिया । जम्बूकी विजयपर में नहीं रमता, उसकी पत्नियाँ अनेक कथाएँ कहती हैं नारद आनन्दसे नाचने लगते हैं, सर्वत्र आनन्द होने किन्तु वह दृढ़ रहता है। विद्युञ्चर भी जम्बूके हृदयमें लगता है। विद्याधर गगनगति प्रकट होकर मृगाङ्क. संसारके प्रति आसक्ति उत्पन्न कराने में असफल राजसे जम्बूकुमारका परिचय देता है । वीररसके इस होता है। कथाकी समाप्ति वैराग्यमें होती है । संसारके विस्तृत प्रसंगके पश्चात् ही कवि शृङ्गारकी भूमिका मायामोहसे विरक्त होकर जम्बू. उनकी पत्नियाँ, प्रारम्भ कर देता है। - विद्युञ्चर सभी तपस्या करते हैं और सद्गति प्राप्त ___ मृगाङ्क राजा जम्बूको केरल नगरी दिखाते हैं। करते हैं। कृतिमें कविने वीररस. शृङ्गार और शान्ति नगरकी रमणियाँ जम्बूको देखकर कहने लगती हैं रसके सफल चित्र प्रस्तुत किए हैं। कि विलासवती धन्य है जिसके हाथमें श्रेणिकराजका चरित्र चित्रणमें भी कवि पूर्ण सफल हुआ है। समस्त राज-वैभव रहेगा। जम्बू और बिलासवतीका पूर्वजन्मोंसे ही जम्बूकी प्रवृत्ति कर्त्तव्यमें दृढ़ और परिणय होता है । जम्बू मगध पहुँचते हैं और यहींसे धार्मिक है, जम्बू अत्यन्त साहसी. वीर हैं, उनकी शृङ्गार और वैराग्य (संसारमें अनुरक्ति-प्रवृत्ति तथा चारित्रिक दृढ़ताको बड़े ही सफल ढङ्गसे कविने निवृत्ति) का प्रसङ्ग प्रारम्भ होता है। आठवीं सन्धिसे व्यक्त किया है-तरुणियोंके पास रहते हुए भी वह यह प्रसङ्ग प्रारम्भ होता है । मुनिसे अपने पूर्व भवोंकी उनमें विरक्तिभाव रखता हैकथा सुनकर जम्बूके हृदयमें वैराग्य-भावनाका उदय पासडिओवि तरुणी गियरु , होता है। दीक्षा देनेके पूर्व गणधर जम्यूसे माता-पिता मएणइ इवहि पुजिउव्व कयरु ॥३-६॥ की आज्ञा लेनेको कहते हैं: अनेक प्रकारकी उक्तियोंका उसपर कोई प्रभाव इय सोऊण मलहरो वोलइ वयणं गणहरो। नहीं पड़तातावञ्चसु सुहणिहेलणं, पुच्छसु पिय माया जणं ॥८-१॥ गउ अद्धरत्त वोलतहो तो, वि कुमारुण भवे रमइ ॥६-११ जम्बूकी माता पुत्रकी वैराग्य-भावनाको देखकर साहसकी परीक्षाके दो प्रसङ्ग मिलते हैं-उन्मक्त मूर्छित होजाती है। कुमारकी वैराग्य-भावनासे सभी हाथीको वह परास्त कर देता है (संधि ४) और अकेला . कुटुम्बी दुखी दिखते हैं किन्तु जम्बूका मन दृढ़ था:- ही विद्याधर रत्नशेखर और उसकी सेनापर विजय पिउ मायरिबंधवजेणहिं दुक्खिय , कर लेता है। उसका व्यक्तित्व प्रभावशाली है इसी मणहिं बुज्झाविउ कहव न बुज्झइ । लिए विद्युच्चर भी उसका अनुसरण करता है। इन सञ्चउ अज्जु जे तव चरणु वइ- सब गुणोंके साथ समें महज्जनोचित शिष्टाचाराके रायमणु लिंटउ कुमारु किमरुज्झइ ॥-८॥ भी दर्शन होते हैं । माताकी आज्ञाका वह पालन जम्बूकी निवरपूर्ण मनस्थितिको देखकर भी करता है। विद्यञ्चरका परिचय उसकी माता अपने पद्मश्री आदि चार कन्यायें उनसे परिणय करती हैं। भाईके रूपमें कराती है-वह देखते ही खड़ा होजाता Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527260
Book TitleAnekant 1948 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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