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________________ किरण १० ] अपभ्रंशका एक शृङ्गार-वीर काव्य [४०१ विद्युन्मालीदेव हुआ। शृङ्गारके समस्त साधन रहते सङ्गीत, कोमलवृत्ति और शृङ्गारके अनुकूल माधुर्यहुए भी शिवकुमारका मन उससे विरक्त रहा उस गुण-प्रधान ऐसे वर्णनोंको व्यक्त करनेकी क्षमता भावद्वन्दको कविने यहाँ समस्त सद्उपदेशोंके साथ दिखानेके लिये ऐसे वर्णन अच्छे प्रमाण हैं। कुछ व्यक्त किया है। शृङ्गारका अर्थ इस प्रसङ्गमें विषया- पंक्तियाँ इस प्रकार पढ़ी जासकती हैं:भिलाषा' करना उचित होगा। विषयाभिलाषाओंपर मंछ मंदार मयरंद णंदण वणं , वैराग्य भावनाकी विजय दिखाई गई है। इस सन्धिके कुद करवंद वयकुद चंदण घृणं । अनुसार कृतिका नाम 'शृङ्गार-वैराग्य' कृति कहना • तरल दल तरल चल चवलि कयलीसुहं, उचित होगा. 'शृङ्गारवीर' कृति नहीं। दक्ख पउमक्ख रुद्दक्ख खोणीरुहं । सन्धि चतुर्थसे जम्बूस्वामी कथा प्रारम्भ होती है। कुसुम रय पयर पिंजरिय धरणीयलं. जम्बूकुमार अत्यन्त रूपवान थे । उनको देखकर नगर तिक्ख नहु चंवु कणयल्ल खंडियफलं । की रमणियाँ. उनके रूपपर आसक्त होजाती थीं। रुक्ख रुक्खंमि कप्पयरु सियभासिरी, परकीया ऊढा नायिकाओंके विरहका कविने प्रसङ्गवश रइवराणत्त अवयएण माहवसिरी ॥४-१६॥ वर्णन किया है जिसमें ऊहात्मकता भी पर्याप्त मात्रामें उद्दीपन सामग्रीके रूपमें उद्यान और वसन्तका मिलती है । शृङ्गारवर्णनके इस प्रसङ्गकी कुछ पंक्तियाँ वर्णन कविने बड़ी सफलता पूर्वक किया है । उपवनमें इस प्रकार उद्धृत की जासकती हैं: क्रीड़ा करनेके पश्चात् सभी मिथुन सुरति खेदका काहिवि विरहाणल संपलित्त । अनुभव करते हैं और उसे दूर करनेके लिये जलक्रीड़ा अंसुजलोह कवोलरिणत्तु ।। के लिये सब सरोवरमें जाते हैं। जलक्रीड़ाके पश्चात् पल्लट्टइ हत्थु करंतु सुण्णु । सब निकलकर वस्त्रादि धारण करते हैं और निवासोंकी दंतिमु चूडुल्लउ चुराण चुराणु । ओर जाते हैं। शृंगारके समस्त उपकरणोंसे पूर्ण इस काहिनि हरियंदण रसु रमेइ । चित्रके साथ जम्बूका शौर्य कविने संग्रामशूर नामक लग्गंत अंगि छमछम छमेइ ॥४-११॥ श्रेणिक राजाके भयङ्कर पट्टहस्तीको उनके द्वारा इस कलात्मक परम्पराका निर्वाह करके कविने पराजित चित्रित करके दिखाया है। इस स समुद्रदत्त नामक उसी नगरमें रहने वाले श्रेष्ठिकी श्रृंगारका सुन्दर और बहुत कुछ पूर्ण चित्र कविने पद्मश्री, कनकश्री, विनयश्री और रूपश्री नामक चार प्रस्तुत किया है। कन्याओंका शिखनख वर्णन प्रस्तुत किया है। वर्णनके पाँचवीं सन्धिसे शृंगारमूलक वीररसका प्रारम्भ अन्तमें कवि कहता है कि किसी अन्य प्रजापतिने इन होता है। केरल राजाकी पुत्री विलासवतीको रत्रशेखर कुमारियोंका निर्माण किया है: विद्याधरसे बचानेके लिये जम्बू अकेले ही उससे युद्ध जाणमि एक्कु जे विहि घडइ सयलु विजगु सामण्णु । करने जाते हैं। उनमें वीरके स्थायीभाव 'उत्साहका जि पुणु आयउ णिम्मविउ कोवि पयावइ अण्णु ॥४-१४ अच्छा उद्रेक चित्रित किया है, पीछे श्रेणिकराजकी ___ जम्बू जैसे अतीव रूपवान् वरके अनुरूप इन सेना भी बड़े उत्साह से सजधजके साथ चलती है। अनुपम रूपवती कुमारियोंका जम्बूसे विवाह होजाता असाधारण धैर्य के साथ जम्बू रत्नंशेखरके साथ युद्ध है। बड़े कौशलसे कविने नायक-नायिकओंको समान करनेको प्रस्तुत होते हैं । युद्ध करते समय सैनिकोंके रूपसे युक्त चित्रित किया है। जीवनके ऐसे चित्रमय हृदयमें स्वामिभक्तिकी द्योतत वीरोक्तियाँ कहते हैं और 'सुन्दर अवसरक अनुकूल कविने कामल पदावलीका अनेक उदात्त भावनाओंका उदय होता है। सैनिकोंकी प्रयोग करते हुए वसन्तका वर्णन किया है। अपभ्रंशमें रमणियाँ भी सैनिकोंको युद्ध में जानेकी प्रेरणा देती हुई Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527260
Book TitleAnekant 1948 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size14 MB
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