SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४२ अनेकान्त [ वर्ष ९ भी सुपात्र-दान देकर जन्म सुफल करनेका अवसर कभी सुननेको मिलता, किन्तु रोजाना मस्जिदमें, मिलेगा ? सभा - सोसायटियोंमें और व्यावहारिक जीवनमें न जाने हमारी इस निस्पृहताको किस बदनजर मजहबी दीवानों और तास्सुबी लोगोंके जबानके की नज़र लेगी है कि एक-एक करके सब छीजते चटखारे रोज़ सुननेको मिलते। जारहे हैं। जो बचे हैं वे भी हमारी नालायकियोंसे इधर काँग्रेसी-व्याख्यान भूले भटके किसीने तङ्ग आकर चलते बनें, कुछ भरोसा नहीं, वे तो अब सुना भी तो अभी वह पूरी तरह उसको समझ भी हमारे लिये वन्दनीय और दर्शनीय हैं, जितने दिन भी नहीं पाया है कि मुहल्ले में होने वाले रोजाना लीगी उनका साया बना रहे हमारा सौभाग्य है। लेक्चरोंने सब गुड़ गोबर कर दिया । उसपर यह पर, जो कहते हैं- "ज्योतिसे ज्योति जलती आये दिन हलाल और झटका, गौ और सूअर, आई है, वह कभी बुझती नहीं।" उनसे हम पूछते अजाँन और बाजा, ताजिये और सड़कके पेड़, हिन्दी हैं कि हमारी इस दीपमालाको क्या हुआ ? जो दीप और उर्दूके झगड़े नित नया गुल खिलाते रहे। नवीन क्यों नहीं जलता ! यह पंक्तिकी काँग्रेसी इत्तहाद और अहिंसाका बराबर उपदेश देते पंक्ति क्यों प्रकाशहीन होती जारही है ? रहे; परन्तु यह आये दिन झगड़े क्यों होते हैं, न ___ हमारी इस आकुलताका क्या कोई अनुभवी इसका कभी हल निकाला न कोई उपाय सोचा न सज्जन निराकुल उपाय बतानेकी दया करेंगे? उन उपद्रवी स्थलोंपर पहुंचकर सही परिस्थितिका जैन-एकता निरीक्षण किया । जब घर फुक जाते, बहन-बेटी __ जैन-एकताका नारा नया नहीं, बहुत पुराना है। बेइज्जत होजातीं, सर्वस्व लुट जाता और प्रतिष्ठित परन्तु जिस प्रकार हिन्दु-मुस्लिम राज्यका नारा व्यक्ति पिट जाते तब उन्हींको यह कहकर कि "आपस जितनी-जितनी ऊँची आवाज और तेजीसे बुलन्द । में लड़ना ठीक नहीं", लानत मलामत देते। लुटेरे किया, उतनी ही शीघ्रता और परिमाणमें अविश्वास और शोहदे खिलखिलाते और ये काँग्रेसकी भेड़ें और आशङ्काकी खाई चौड़ी होती चली गई। उसी गर्दनें झुकाकर रह जातीं। तरह जैन समाजके तीनों सम्प्रदायके सङ्गठनका चंकि ये भेड़ें काँग्रेसका मरते दम तक साथ वक्षारोपण जितनी बार किया गया है, घातक फल ही निभानेकी प्रतिज्ञा कर बैठी थीं. इसलिये मार खाकर देता रहा है। तीनों सम्प्रदाय एक होने तो दूर, एक भी मिमयाती तो नहीं थीं, पर पिटना क्यों ठीक है, एक सम्प्रदायमें अनेक शाखाएँ उपशाखाएँ बढ़ती यह उनकी समझमें नहीं आ पाता था और वह भेड़ियों जारही हैं। से मेल-मिलाप करते हुए शङ्कित ही रहती थीं । यदि हिन्दु-मुस्लिम इत्तहादमें जो काँग्रेस सदैव भूल उन भेड़ियोंको भी काँग्रेसने भेड़ बनाया होता तो करती रही है, उसीका अन्ध-अनुकरण हमारे यहाँ बिना प्रयासके ही इत्तहाद होगया होता। होता रहा है । काँग्रेसने इत्तहादका नारा तो बुलन्द काँग्रेसने कभी मुसलमानोंके सामाजिक और किया पर अपनेसे भिन्न सम्प्रदायके हृदयमें घर नहीं धार्मिक जीवनमें आनेका प्रयत्न नहीं किया ! परिणाम बनाया। काँग्रेसी मञ्चसे व्याख्यान देते रहे, अपील इसका यह हुआ कि हर मुसलमान काँग्रेसी नेताको निकालते रहे । परन्तु उनके साम्प्रदायिक गढ़ोंमें न केवल हिन्दु समझता रहा । अपनी क़ौमका नेता वह कभी गये, न उनकी रीति-रिवाजका अध्ययन किया, उन्हींको समझता रहा जो उनकी रोजाना जिन्दगीमें न इत्तहादके मार्गकी कठिनाइयोंको समझा, न उनका दिलचस्पी लेते रहे । और दुर्भाग्यसे काँग्रेसने भी हल हुआ । परिणाम इसका यह निकला कि मुस्लिम उन्हीं मजहबी दीवानोंको उनका नेता तस्लीम कर जनताको काँग्रेसी नेताका व्याख्यान तो शाजोनादिर लिया जो मुसलमानोंको रोजाना काँग्रेसके विरुद्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527256
Book TitleAnekant 1948 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy