SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ६] सम्पादकीय २४३ भड़का रहे थे । परिणाम सबके सामने है। गत ३-४ वर्षों में इस निर्जीव बुतको विवाहादि इसी तरह जैनों में एकताकी बात उठती रही है। अवसरोंपर मिटीके गणेशकी जगह पजवाकर देवत्व तीनों सम्प्रदायोंकी प्रतिनिधि सभाओंने अनेक बार लानेका प्रयत्न किया है । परिणाम स्वरूप व्यावरमें जैन-एकताके प्रस्ताव पास किये हैं । परन्तु इनके इसका स्वतन्त्र अधिवेशन भी हमने अपनी होशमें कार्य ऐसे रहे हैं कि इतर पक्षको विश्वास बढ़नेके पहलीबार होते सुना है। बजाय आशङ्का ही हुई है। अभिनन्दनीय हैं वे लोग जो सचमुच जैनएकता जैन महामण्डल जिसका निर्माण तीनों सम्प्रदाय के लिये प्रयत्नशील हैं । हम भी २३ वर्षोंसे इस साध की एकताके लिये किया गया था। वह पुद्गल शरीर को अपने सीनेमें छिपाये बैठे हैं। परन्तु प्रश्न तो यह है बनकर रह गया । इंजेक्शनोंके जोरसे भी उसमें कि बिल्लीके गलेमें घण्टी कौन बाँधे । व्यक्तिगत प्राण प्रतिष्ठा न हो पाई । हम हैरान हैं कि इस निर्जीव प्रभावसे अधिवेशन करा भी लिया १०-५ को किसी शरीरको अबतक कैसे ढोते रहे, जब कि उसके कार्य- तरह एकत्र भी कर लिया, या जैन-एकता कार्यालय कर्ता स्वयं जैन-एकतासे दूर भागते रहे । जीवनभर भी बना लिया । २-४ अच्छे स्वासे वेतन-भोजी क्लर्क अपना-अपना सम्प्रदाय उनका कार्यक्षेत्र बना रहा, भी मिल गये, पर इन सब कार्योंसे एकता कैसे तीर्थक्षेत्रोंके मुक़दमोंमें एक सम्प्रदायके विरुद्ध दूसरे होसकेगी ? की पैरवी करते रहे । और एकताका निर्जीव पुतला आये दिन जो यह तीर्थोपर उपद्रव होते रहते भी उठाते रहे। हैं । यह क्यों होते हैं और क्योंकर रोके जा सकते ___ महामण्डलकी ओरसे जैन-एकताका आन्दोलन हैं ? एक दूसरेके विरुद्ध पत्रों और ट्रेक्टों द्वारा विषलगभग आर्यसमाजकी तरह रहा है । आर्यसमाजके वमन होता रहता है । वह कैसे रोका जाय ? दिगम्बर उत्सवोंमें दिनको तो हिन्दु-सङ्गठन पर प्रभावशाली कार्यकर्ता श्वेताम्बरोंमें और श्वेताम्बर कार्यकर्ता व्याख्यान-भजन होते और रात्रिको जैन, सनातनी, दिगम्बरोंमें निःस्वार्थ भावनासे किस प्रकार कार्य सिक्ख आदिको शास्त्रार्थके लिये ललकारा जाता। करें और कौन-कौन करें ? जब तक यह अमली कार्यउनके उनके धार्मिक विश्वासोंका मखौल उड़ाया जाता क्रम नहीं बनता है। और वे लोग जिनकी अपने और महापुरुषोंको असभ्य शब्द कहे जाते । दिनमें यहाँ भी आवाजका कोई मूल्य नहीं है उनके प्रयत्नसे वे कभी हिन्दु सङ्गठनपर व्याख्यान देनेसे न चूके जैन-एकता तो नहीं हो सकेगी । हाँ वह भी हमारे और रातको शास्त्रार्थ करनेसे कभी बाज न आये। अनगिनत नेताओंकी श्रेणीमें खड़े होकर भोली परिणाम इसका यह हुआ कि आर्यसमाजका हिन्दु- जनताको लानतमलामत देनेका अधिकार पा सकेंगे। सङ्गठन आन्दोलन बाजीगरके तमाशेसे भी कम आकर्षक होगया है। १४-५-१९४८ -गोयलीय Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527256
Book TitleAnekant 1948 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy