________________
ॐ अहम्
वस्ततत्त्व-सघातक
विश्व तत्त्व-प्रकाशक
वाषिक मूल्य ५)
MOTI
एक किरणका
NIA नीतिविरोधध्वंसीलोकव्यवहारवर्तकः सम्यक् ।।
| परमागमस्य बीज भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः॥
।
वर्ष ९ किरण ६
वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम ), सरसावा, जिला सहारनपुर ज्येष्ठ शुक्ल, वीरनिर्वाण-संवत २४७४, विक्रम संवत् २००५
जून १९४८
बुढ़ापा बालपनै बाल रह्यो पीछे गृहभार बह्यो, लोकलाज-काज बांध्यो पापनको ढेर है। अपनो अकाज कीनों लोकनमें जस लीनों, परभौ विसार दीनों विषै वश जेर है॥ ऐसे ही गई विहाय अलप-सी रही आय, नर-परजाय यह आँधेकी बटेर है । आये सेत भैया ! अब काल है अवैया, अहो ! जानी रे सयाने तेरे अजौं हूँ अँधेर है ॥११॥
बालपनै न सँभार सक्यो कछु, जानत नाहिं हिताऽहित ही को ।. यौवन वैस वसी वनिता उर, कै नित राग रह्यो लछमीको । यों पन दोइ विगोइ दये नर, डारत क्यों नरकै निज-जीको ।
आये हैं सेत अजौं शठ ! चेत, “गई सुगई अब राख रहीको" ॥२॥ सार नर देह सब कारजको जोग येह, यह तो विख्यात बात वेदनमें बँचै है । तामें तरुनाई धर्म-सेवनको समै भाई, सेये तब विषै जैसे माखी मधु रचै है ।। मोह-महामद-भोये धन-रामा-हित रोज रोये, यों ही दिन खोये खाय कोदों जिम मचे है । अरे सुन बौरे ! अब आये सीस धौरे, अजौं सावधान हो रे नर नरकसों बचै है॥३॥
-कवि भूधरदास
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org