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भनेकान्त
वर्ष ९]
सुना जाता है कि पहाड़ोंपर बच्चे बदले जाते हैं और तुम अपनी अबोध-दशासे इतने अर्सेतक धायके लोभके वश दूसरोंको बेचकर मृत घोषित भी किये पास रही, उसकी गोदी चढ़ी, उसका दूध पिया, जाते हैं । परन्तु इन सबसे अधिक बड़ी समस्या जो उसके पास खेली-सोई और वह माताकी तरह मेरे सामने है वह संस्कारोंकी है। और सब कुछ दूसरी भी तुम्हारी सब सेवाएँ करती रही; फिर भी ठीक होते हुए भी वहाँके अन्यथा संस्कारोंको कौन तुमने एक बार भी उसे 'माँ' कहकर नहीं दियारोक सकेगा ? मैं नहीं चाहता कि मेरी लड़की मेरे दूसरोंके यह कहनेपर भी कि 'यह तो तेरी मां है' दोषसे अन्यथा संस्कारोंमें रहकर उन्हें ग्रहण करे।' तुम गर्दन हिला देती थी और पुकारनेके अवसरपर
और इसलिये अन्तको यही निश्चित हुआ कि घरपर उसे 'ए-ए !' कहकर ही पुकारती थी। यह सब विवेक धाय रखकर ही तुम्हारा पालन-पोषण कराया जाय। तुम्हारे अन्दर कहाँसे जागृत हुआ था वह किसीकी तदनुसार ही धायके लिये तार-पत्रादिक दौड़ाये गये। भी कुछ समझमें नहीं आता था और सबको तुम्हारी _ भाई रामप्रसादजी आदिके प्रयत्नसे एककी ऐसी स्वाभाविक प्रवृत्तिपर आश्चर्य होता था। जगह दो धाय आगराकी तरफसे आगई, जिनमेंसे दो-ढाई वर्षकी छोटी अवस्थामें ही तुम्हारी बड़े रामकौर धायको तुहारे लिये नियुक्त किया गया, जो आदमियों जैसी समझकी बातें, सबके साथ 'जी'की प्रौढावस्थाको होनेके साथ-साथ श्यामवर्ण भी थी- बोली, दयापरिणति, तुम्हारा सन्तोष, तुम्हारा धैर्य उस समय मैंने कहीं यह पढ़ रक्खा था कि श्यामा और तुम्हारी अनेक दिव्य चेष्टाएँ किसीको भी अपनी गायके दूधकी तरह बच्चोंके लिये श्यामवर्णा धायका भार आकृष्ट किये बिना नहीं रहती थीं। तुम साधादूध ज्यादा गुणकारी होता है । अतः तुम्हारे हितकी रण बच्चोंकी तरह कभी व्यर्थकी जिद करती या दृष्टिसे अनुकूल योजना हो जानेपर मुझे प्रसन्नता रोती-राती हुई नहीं देखी गई । अन्तकी भारी हुई। धायक न आने तक गाय-बकरीका दूध पीकर बीमारीकी हालतमें भी कभी तुम्हारे कूल्हने या तुमने जो कष्ट उठाया, तुम्हारी जानके जो लाले कराहने तककी आवाज़ नहीं सुनी गई: बल्कि जब तक पड़े और उसके कारण दादीजी तथा बहनगुण- तुम बोलती रही और तुमसे पूछा गया कि 'तेरा जी मालाको जो कष्ट उठाना पड़ा उसे मैं ही जानता हूँ। कैमा है' तो तुमने बड़े धैर्य और गाम्भीर्यसे यही धायके आजानेपर तुम्हें साता मिलते ही सबको उत्तर दिया कि 'चोखा है। वितर्क करनेपर भी इसी माता मिली।
आशयका उत्तर पाकर आश्चर्य होता था ! स्वस्थातम धायके साथ अधिकतर नानौता दादीजीके वस्था में जब कभी कोई तम्हारी बातको ठीक नहीं पास, सरसावा मेरे पास और तीतरों अपने नाना समझता था या समझने में कुछ गलती करता था तो मुन्शी होशयारसिंहजीके यहाँ रही हो । जब तुम कुछ तुम बराबर उसे पुनः पुनः कहकर या कुछ अते-पते टुकड़ा-टेरा लेने लगी, अपने पैरों चलने लगी, बोलने की बातें बतलाकर समझानेकी चेष्टा किया करती थी बतलाने लगी और गायका दूध भी तुम्हें पचने लगा और जबतक वह यथार्थ बातको समझ लेनेका तब तुम्हारी धाय रामकौरको विदा कर दिया गया इजहार नहीं कर देता था तबतक बराबर तुम 'न और वह अपना वेतन तथा इनाम आदि लेकर शब्दके द्वारा उसकी गलत बातोंका निषेध करती ३० जून सन् १९१९ को चली गई । उसके चले जाने रहती थी। परन्तु ज्यों ही उसके मुंहसे ठीक बात पर तुम्हारे पालन-पोषण और रक्षाका सब भार निकलती थी तो तुम 'हाँ' शब्दको कुछ ऐसे लहजेमें पूज्य दादीजी, बहन (बुआ) गुणमाला और चि० लम्वा खींचकर कहती थी, जिससे ऐसा मालूम होता जयवन्तीने अपने ऊपर लिया और सबने बड़ी था कि तुम्हें उस व्यक्तिकी समझपर अब पूरा तत्परता एवं प्रेमके साथ तुम्हारी सेवा की है। सन्तोष हुआ है।
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