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________________ किरण ५] सम्मति-विद्या-विनोद १९९ गया था ! एक वृद्ध पुरुष श्मशानभूमिमें मुझे यह होरही थीं। जन्मसे कुछ दिन बाद तुम्हारा नाम कह कर सान्त्वना दे रहे थे कि 'जाओ धान रहो 'विद्यावती' रक्खा गया था; परन्तु श्राम बोल-चालमें क्यारी, अबके नहीं तो फिरके बारी'। फिर तुम्हारी तुम्हें 'विद्या' इस लघु नामसे ही पुकारा जाता था। माताके दुख-दर्द और शोककी तो बात ही क्या है ? तुम्हारी अवस्था अभी कुल सवा तीन महीनेकी उसने तो शोकसे विकल और वेदनासे विह्वल होकर ही थी जब अचानक एक वज्रपात हुआ, तुम्हारे तुम्हारे नये-नये वस्त्र भी बक्सोंमेंसे निकालकर फेंक ऊपर विपत्तिका पहाड़ टूट पड़ा ! दुर्दैवने तुम्हारे दिये थे! वे भी तुम्हारे बिना अब उसकी आँखोंमें सिरपरसे तुम्हारी माताको उठा लिया !! वह देवबन्द चुभने लगे थे । परन्तु मैंने तुम्हारी पुस्तकों आदिके के उसी मकांनमें एक सप्ताह निमोनियाकी बीमारीसे उस बस्तेको जो काली किरमिचके बैगरूपमें था और बीमार रहकर १६ मार्च सन् १९१८ को इस असार जिसे तुम लेकर पाठशाला जाया करती थी तुम्हारी संसारसे कूच कर गई !!! और इस तरह विधिके स्मृतिके रूपमें वर्षों तक ज्योंका त्यों कायम रक्खा है। कठोर हाथों-द्वारा तुम अपने उस स्वाभाविक भोजन अब भी वह कुछ जीर्ण-शीर्ण अवस्थानमें मौजूद है- -अमृतपानसे वश्चित करदी गई जिसे प्रकृतिने असे बाद उसमेंसे एक दो लिपि-कापी तथा पुस्तक तुम्हारे लिये तुम्हारी माताके स्तनोंमें रक्खा था ! दूसरोंको दीगई हैं और सलेटको तो मैं स्वयं अपने साथ ही मातृ-प्रेमसे भी सदाके लिये विहीन होगई !! मौन वाले दिन काममें लेने लगा हूँ। इस दुर्घटनासे इधर तो मैं अपने २५ वर्षके तपे नामकरणके बाद जब तुम्हारे जन्मकी तिथि तपाये विश्वस्त साथीके वियोगसे पीडित ! और उधर और तारीखादिको एक नोटबुकमें नोट किया गया उसकी धरोहर-रूपमें तुम्हारे जीवनकी चिन्तासे था तब उसके नीचे मैंने लिखा था 'शुभम् । मरणके आकुल !! अन्तको तुम्हारे जीवनकी चिन्ता मेरे लिये बाद जब उसी स्थानपर तुम्हारी मृत्युकी तिथी आदि सर्वोपरि हो उठी । पासके कुछ सज्जनोंने परामर्शलिखी जाने लगी तब मुझे यह सूझ नहीं पड़ा कि उस रूपमें कहा कि तुम्हारी पालना गायकं दूध, बकरीके दैविक घटनाके नीचे क्या विशेषण लगाऊँ ! 'शुभम्' दूध अथवा डब्बेके दूथसे होसकती है; परन्तु मेरे तो मैं उसे किसी तरह कह नहीं सकता था; क्योंकि आत्माने उसे स्वीकार नहीं किया । एक मित्र बोलेवैसा कहना मेरे विचारोंके सर्वथा प्रतिकूल था। और लड़कीको पहाड़पर किसी धायको दिला दिया 'अशुभम्' विशेषण लगानेको एकदम मन जरूर जायगा, इससे खर्च भी कम पड़ेगा और तुम बहुतहोता था परन्तु उसके लगानेमें मुझे इसलिये संकोच सी चिन्ताओंसे मुक्त रहोगे। घरपर धाय रखनेसे तो हुआ था कि मैं भावीकं विधानको उस समय कुछ बड़ा खर्च उठाना पड़ेगा और चिन्ताओंसे भी बराबर समझ नहीं रहा था--वह मेरे लिए एक पहेली बन घिरे रहोगे ।' मैंने कहा-'पहाड़ोंपर धाय द्वारा बच्चों गया था। इसीसे उसके नीचे कोई भी विशेषण देने की पालना पूर्ण तत्परताके साथ नहीं होती। धायको में मैं असमर्थ रहा था। अपने घर तथा खेत-क्यारके काम भी करने होते हैं, बेटी विद्यावती, वह बच्चेको यों ही छोड़कर अथवा टोकरे या मूढे तुम्हारा जन्म ता०७ दिसम्बर सन् १९१७ को आदिके नीचे बन्द करके उनमें लगती है और बच्चा सरसावामें मेरे छोटे भाई बा० रामप्रसाद सबओवर रोता विलखता पड़ा रहता है। धाय अपने घरपर सियरकी उस पूर्वमुखी हवेलीके सूरजमुखी निचले जैसा-तैसा भोजन करती है, अपने बच्चेको भी मकानमें हुआ था जो अपनी पुरानी हवेलीके सामने पालती है और इसलिये दूसरेके बच्चेको समयपर अभी नई तैयार कीगई थी और जिसमें भाई रामप्रसाद यथेष्ठ भोजन भी नहीं मिल पाता और उसे व्यर्थक ' के ज्येष्ठ पुत्र चि० ऋषभचन्दके विवाहकी तैयारियाँ अनेक कष्ट उठाने पड़ते हैं। इसके सिवाय, यह मी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527255
Book TitleAnekant 1948 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages50
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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