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________________ अनेकान्त [महात्मा भगवानदीनजी] र्शन, न्याय, व्याकरण, छन्द, अलङ्कार उनके हाथोंमें एकान्त ही के हथियार होते हैं । पर वे आदि विद्याओंके सिद्धान्त गढ़े नहीं हथियार अनेकान्तके खोलमें होते हैं इसलिये जब मापी जाते-खोजे जाते हैं, इकट्ठे किये भरी सभामें वे खोलसे बाहर आते हैं तो समझदार . जाते हैं। इकटे होनेपर विद्वान उन्हें तमाशा देखने वाले हँस पड़ते हैं। अनेकान्तका और अलग-अलग करते हैं और उनके नाम रख देते हैं। भी सीधा नाम 'झगड़ा-फैसल' हो सकता है। अब नाम प्रायः अटपटे होते हैं। विद्वानों तकको उनके जहाँ 'झगड़ा-फैसल' मौजूद हो वहाँ झगड़ा कैसा ? समझने में मुश्किल होती है औरोंका तो कहना अनेकान्ती (यानी तरह-तरहसे कहने समझाने वाला) ही क्या ? लड़े-झगड़ेगा क्यों ? वह तो दूसरेकी बातको समझने __ इस सवालका जवाब कि अनेकान्त कबसे है ? की कोशिश करेगा, शङ्का करेगा, कम बोलेगा, सामने यही हो सकता है कि जबसे जगत तबसे अनेकान्त । वालेको ज्यादा बोलने देगा और जब समझ जावेगा अगर जगतको किसीने बनाया है तो वह अनेकान्ती तो मुसका देगा, शायद हँस भी दे और शायद रहा होगा । और अगर जगत अनादि है तो सामनेवालेको गले लगाकर यह भी बोल उठे 'श्राहा. अनेकान्त भी अनादि है। इस द्वन्द्वयुक्त जगतमें आपका यह मतलब है, ठीक ! ठीक !' और इस उपजने-विनशनेवाली दुनियामें अनेकान्तके कोई हकीम नुसखेमें अगर "वर्गे रेहाँ" लिख दे बिना एक क्षण भी काम नहीं चल सकता । तरह- तो आप जरूर कुछ पैसे अत्तारके यहाँ ठगा आयेंगे। तरहकी दुनियामें मेल बनाये रखने के लिये अनेकान्त यों आप वगैरेहाँ (तुलसीके पत्ते) घरकी तुलसीसे अत्यन्त आवश्यक है। तोड़कर रोज ही चबा लेते हैं। अनेकान्तसे रोज . अनेकान्त तर्कका एक सिद्धान्त है । तर्क इकटी काम लेनेवाले आपमेंसे कुछ अनेकान्तको न समझते की हई विद्या है। अनेकान्तको बोलचालमें 'तरह-तरह होगे इसलिये उसे थोड़ासा साफ कर देना से कहना' कह सकते हैं। हम जब मिल-जुलकर प्रेम सेठ हीरालाल जब यह कह रहे हैं कि आज प्यारसे रहते हैं तब अनेकान्तमें ही बातचीत करते दो अक्टूबर दोपहरके ठीक बारह बजे मेरा लड़का हैं । हँसी-मजाकमें कभी-कभी एकान्त भी चल पड़ता रामू बड़ा भी है और छोटा भी तब वे अनेकान्तकी है। पर टिक नहीं पाता। लड़ाई-झगड़ोंमें एकान्तसे भाषा बोल रहे हैं। पर कोई एकदम यह कह बैठे ही काम लिया जाता है फिर भी वे लड़ाई-झगड़े चाहे 'बिल्कुल गलत' तो ऐसा कहनेवाला या तो मूर्ख है, घरेलू हों, देशके या धर्मके । अनेकान्तको काममें तो जल्दबाज है नहीं तो एकान्ती तो है ही। और कोई सब सब धर्मवाले लाते हैं पर अलग विद्याका रूप यह पूछ बैठे 'कैसे ?' तो वह. मला आदमी है, इसे हिन्दुस्तानके एक धर्म विशेषने ही दे रखा है। समझदार भी है पर बुद्धिपर जोर नहीं देना चाहता, और वही इसकी दुहाई जगह-बजगह देता रहता है। अनेकान्तसे उसे प्यार भी है। बात बिल्कुल सीधी है . दो अनेकान्ती लड़-झगड़ नहीं सकते । पर रामू असलमें उस दिन दस बरसका हुआ वह अपने लड़ना-झगड़ना मनुष्यका स्वभाव बना हुआ है और सात बरसके छोटे भाई श्यामूसे बड़ा और तेरह अनेकान्तका हथियार लेकर ही लड़ते हैं तो असलमें बरसके बड़े भाई धर्मूसे छोटा है। सेठ हीरालाल यह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527254
Book TitleAnekant 1948 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages46
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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