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________________ किरण ३] सम्पादकीय गये। दूसरे रोज घरपर तशरीफ लाये और फर्माया- बतौर इनाम मिलेगा। "गोयलीयजी, आप मेरे बड़े शुभचिन्तक हैं, यह मैं मैंने समझा वार भरपूर बैठा और चौधरी साहब जानता हूं। आपने मेरा दिल दुखानेको नहीं बल्कि अब सीधे खड़े नहीं रह सकते । मगर नहीं, उन्होंने नेकनीयतीसे ही मुझे यह सलाह दी है। आपकी वार भी बड़ी खूबीसे काटा और मुझे पटखना भी बात टालनेकी हिम्मत न होनेकी वजहसे, मैं उस ऐसा दिया कि चोट भी न लगे और हमलावरकी वक्त स्वीकारता देकर चला गया। मगर फिर घर तारीफ करनेको जी भी चाहे। जाकर सोचा तो, बात मनमें बैठी नहीं। एक साल फर्माया-गोयलीयजी, आपका फर्माना वजा रह गया जैसे भी होगा निकल जायगा। इस बुढ़ापे. है, मगर बेअदबी मुश्राफ, यह होनहार लड़कोंको में क्यों जरासी बातपर खानदानको दाग़ लगाया ? वजीफेके तौरपर मिलता है तो गरीब-अमीर सब भला लड़का ही अपने मनमें क्या सोचेगा, भई लड़कोंको बिना माँगे क्यों नहीं मिलता, सिर्फ गरीब गोयलीयजी मैं छात्रवृत्ति लेकर अपने बच्चेका दिल लड़कोंको ही क्यों मिलता है।" छोटा हरगिज़ नहीं करूँगा।" ___ मेरे पास इसका जवाब नहीं था, क्योंकि मैं __ चौधरी साहब इतना स्वाभिमानका उत्तर देगें, जानता था कि असहाय विद्यार्थी भी उच्चसे उच्च अगर मुझे यह आगाह भी होता तो मैं यह जिक्र शिक्षा प्राप्त कर सकें, आर्थिक अभावके कारण उनका तक न छेड़ता। मगर अब तो तीर कमानसे निकल विकास न रुक जाय, इसी सद्भावनासे प्रेरित होकर चुका था, निशानेपर न लगे तो तीरन्दाजकी खूबी श्रीमान साह साहबने छात्रवृत्ति जारी की हैं। क्या ? मैं तनिक अधिकारपूर्वक बोला-चौधरी चौधरी साहब आज संसारमें नहीं है, मगर साहब, आपका साहबजादा फस्टक्लास फट आया है, । उनकी वजहदारी याद आती रहती है। जो ऐसे होनहारको तो वजीफा लेनेका पूरा हक है । इसमें सङ्कोच और एहसानकी क्या बात है ? यह तो उसे १८ फरवरी १९४८ सम्पादकीय १ मगरमच्छके आंसू गोलियां चलवाते रहे । स्वराज्य-सैनिकोंको गिरफ्तार ___ महात्माजीके निधनसे सारा भारत शोकमग्न हो कराते रहे, अदालतोंमें झूठी गवाहियाँ देकर सजा गया है। भारतीयों को ही नहीं विदेशियोंके हृदयको दिलाते रहे । खद्दर पहनना तो दरकिनार विलायती भी काफी आघात पहुँचा है। उनके धार्मिक और कपडा पहनते रहे-बेचते रहे। पतितोद्धार तो कजा राजनैतिक सिद्धान्तोंसे मतभेद रखने वाले भी व्यथित अपने सजातियोंको भी मन्दिर-प्रवेशसे रोकते रहे। हुए हैं । महात्माजीका व्यक्तित्व ही ऐसा था कि हिन्दू-मुस्लिम राज्यकी क्या चली अपने समाजको विरोधी भी उनके लोकोत्तर गुणोंके कायल थे। कुरुक्षेत्रका मैदान बनाये रहे-आज महात्माजीके __ ऐसे लोग भी जो जीवनभर महात्माजीके प्रति श्रद्धाञ्जलि अर्पण कर रहे हैं, तार भेज रहे हैं, सिद्धान्तोंका विरोध करते रहे, उनके चलाये स्वराज्य- शोक-सभाओंमें भाषण देरहे हैं, लेख लिख रहे हैं, संग्राममें विपक्षीकी ओरसे लड़ते रहे। निहत्थोंपर जिन्हें स्वयं लिखना नहीं आता, वे दूसरोंसे लिखवा For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.527253
Book TitleAnekant 1948 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size3 MB
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