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उद्योगको प्राप्त करनेकी चेष्टामें हों, कल उसका कोई महत्त्व ही न रह जाय । यदि आप भविष्य के खयालसे देखेंतो वर्तमानके कितने ही संघर्ष व्यर्थ जान पड़ने लगेंगे या उनका स्वरूप बदल जायेगा और तब आप
अपनेको पुराने विचारोंकी गुलामी से मुक्त पाने लगेंगे जहां
लायाजा
मेरा ताल्लुक है, मैं देशकी बड़ी योजनाऔर किसी भी चीजसे ज्यादा महत्व देता हूं, मेरा विचार है कि देशमें इन्हींसे नयी सम्पत्ति प्राप्त होगी । जब कभी मैं भारतका कोई मानचित्र देखता हूं तो हिमालय पर्वत - श्रेणीपर मेरी दृष्टि पड़ती है और मैं उस अनन्तशक्तिकी बात सोचता हूं जो उस श्रेणीमें बेकार छिपी पड़ी है, जिसे काम में सकता है और जिसका यदि तेजी से विकास किया जासके तो जो सम्पूर्ण भारत को ही बदल सकती है यह शक्तिका आश्चर्य जनक और सम्भवत: संसार में सबसे महान् स्रोत है । इसी लिये मैं महान नदी घाटी योजनाओं, बांधों, विशाल जलकुण्डों तथा जलविद्युत - केन्द्रोंको अधिक महत्व देता हूँ । ये सब आपको आगे ले जायेंगे। पर शक्ति उत्पन्न करनेसे पहले हमें उसका नियंत्रण और उपयोग भी तो जानना चाहिये ।
अनेकान्त
मुझे आशा है कि इस सम्मेलनमें कमसे कम यह ठोस परिणाम तो अवश्य निकलेगा कि हम लोग मैत्रीपूर्ण ढंग से काम आरम्भ करके एक अवधिके लिये ओद्योगिक शान्ति बनाये रखनेका फैसला कर लेगें और एक ऐसा ढंग निकाल लेंगे, जिससे प्रत्येक व्यक्ति के प्रति न्याय का व्यवहार होसके। इस बीचमें हम शान्तिपूर्वक बैठकर व्यापक नीतियोंके सम्बन्ध में सोच विचार कर सकेंगे ।
४ जनवरी १६४८ को वर्मा कितने ही वर्षोंकी ब्रिटिश पराधीनताके जुएसे उन्मुक्त होकर सर्वतंत्र स्वतंत्र होगया । यह स्मरणीय रहे कि वर्माको यह स्वतंत्रता भारतकी तरह बिना रक्तपात किये ही प्राप्त होगई है । भारतद्वारा उसकी इस स्वतंत्रताका पूर्व स्वागत किया गया और भारतवर्षकी राजधानी देहलीमें विभिन्न स्थानोंपर इस स्वाधीनता दिवसके उपलक्ष में अनेक समारोहों का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भारतवर्षके गवर्नरजनरल लार्ड माउण्ट बेटन, भारतके प्रधानमंत्री पं० जवाहरलाल नेहरू, उप-प्रधानमंत्री सरदार पटेल, राष्ट्रपति डा० राजेन्द्रप्रसाद तथा मंत्रिमंडलके अन्य सदस्यों- जैसे सरदार बलदेवसिंह, डा० श्यामाप्रसाद मुखर्जी, डा० बी० आर० अम्बेदकर, राजकुमारी अमृतकौर, श्रीजगजीवनराम, डा० जानमथाई, श्री एन० गोपाल स्वामी अय्यंगर, डा० रीफ, बर्मास्थित हाई कमिश्नर, प्रोफेसर राधाकृष्णन, सर सी० बी० रमन, sro कालीदास नाग, और प्रोफेसर बी० एम० बरुआ ने सन्देश एवं भाषण दिये पण्डित नेहरू ने बर्माकी स्वतंत्रता को एशिया विशेष कर भारत के लिये बड़े महत्त्वकी घटना बतलाते हुए कहा- 'भारत व बर्माका परस्पर इतना घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है कि यदि एक देशमें कुछ होता है तो दूसरे पर उसका प्रभाव अवश्य पड़ता है । मुझे इसमें कुछ भी सन्देह नहीं हैं कि भविष्य में हमारा सम्बन्ध और भी अधिक घनिष्ठ होगा । यह सिर्फ हमारी एक जैसी भावनाका हो
३ सरकारी कागजातोंमे 'श्री' या 'श्रीमान' नहीं, बल्कि विश्व और एशियाकी घटनाओं का भी शब्दों का प्रयोग
तकाजा है। शीघ्र ही वह समय आने वाला है जब अन्य देशोंके साथ मिलकर हम सहयोगकी एक व्यवस्थाका निर्माण कर सकेंगे' ।
उप-प्रधानमंत्री सरदार पटेल ने अपने सन्देश में कहा - 'हम जानते हैं और अनुभव करते हैं कि
[ वर्षे ६
४ - हमारा पड़ोसी देश वर्मा स्वतंत्र और भारतद्वारा अपूर्व स्वागत -
पंजाबको सरकारने आदेश जारी किये हैं कि अब से आगे समस्त सरकारी कागजात और फाइलों में 'मिस्टर' और 'एसक्कायर' इन अंग्रेजी शब्दों के स्थान में 'श्री' या 'श्रीमान्' शब्दों का प्रयोग किया जाय ।
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