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________________ किरण १ ) शका समाधान ५-शंका-मनुष्यगतिमें आठ वर्षकी अवस्थामें । अर्थात् 'वे साधु शरीरमें निर्मम हुए जहां सूर्य भी सम्यक्त्व उत्पन्न हो जाता है, ऐसा कहा जाता है, अस्त हो जाता है वहां ठहर जाते हैं कुछ भी अपेक्षा इसमें क्या कोई पागम प्रमाण है ? नहीं करते। और वे किसीसे बन्धे हुए नहीं, स्वतन्त्र ५-समाधान-हां, उसमें आगम प्रमाण है। हैं, बिजलीके समान दृष्टनष्ट हैं, इसलिये अपरिग्रह हैं। तस्वार्थवार्तिकमें अकलङ्गदेवने लिखा है कि 'पर्या ७-शंका--लोग कहते हैं कि दिगम्बरजैन मुनि तक मनुष्य ही सम्यक्त्वको उत्पन्न करते हैं, अपर्याप्तक वर्षावास चतुर्मास) के अतिरिक्त एक जगह एक दिन मनुष्य नहीं और पर्याप्तक मनुष्य आठ वर्ष की अवस्था रात या ज्यादासे ज्यादा पांच दिन-रात तक ठहर से ऊपर उसको उत्पन्न करते हैं, इससे कममें नहीं। सकते हैं। पीछे वे वहांसे दूसरी जगहको जरूर यथा विहार कर जाते हैं। इसे वे सिद्धान्त और शास्त्रोंका 'मनुष्या उत्पादयन्तः पर्याप्त का उत्पादयन्ति नापर्या- कथन बतलाते हैं। फिर आचार्य शांतिसागरजी प्तकाः । पर्याप्तकाश्चाऽष्टवस्थितरुपयुत्पादयन्ति नाध- महाराज अपने संघ सहित वर्षभर शोलापुर शहर में स्तात् । -पृ०७१। क्यों ठहरे ? क्या कोई ऐसा अपवाद है ? . ६- शंका-दिगम्बर मुनि जब विहार कर रहे ७- समाधान--लोगोंका कहना ठीक है। दिगहों और रास्ते में सूर्य अस्त हो जाय तथा आस-पास म्बर जन मुनि म्बर जैन मुनि गांव में एक रात और शहरमें पांच रात कोई गांव या शहर भी न हो तो क्या विहार बंद तक ठहरते हैं। ऐसा सिद्धान्त है और उसे शाखोंमें करके वे वहीं ठहर जायेंगे अथवा क्या करेंगे ? बतलाया गया है। मूलाचारमें और जटासिंहनन्दिके वरांगचरितमें यही कहा है। यथा६-समाधान-जहां सूर्य अस्त होजायगा वहीं ठहर जायेंगे उससे आगे नहीं जायेंगे। भले ही वहां गामेयरादिवासी णयरे पंचाहवासिणोधीरा । गांव या शहर न हो। क्योंकि मुनिराज ईर्यासमिति सवणा फासुविहारी विवित्तएगंतवासी य ॥ के पालक होते हैं और सूर्यास्त होनेपर ईर्यासमितिका -मूला० ७८५ पालन बन नहीं सकता और इसीलिये सूर्य जहां उदय ग्रामैकरात्रं नगरे चं पञ्च समूपुरव्यग्रमनःप्रचाराः होता है वहांसे वे तव नगर या गांवके लिये विहार न किंचिदप्यप्रतिबाधमाना विहारकाले समिता करते हैं, जैसा आचार्य जटासिंहनन्दिने वरांङ्गचरितमें कहा है: विजिहः॥ -वरांग० ३०-४५ यस्मिंस्तु देशेऽस्तमुपैति सूर्य परन्तु गांव या शहरमें वर्षों रहना मुनियोंकेलिये न उत्सर्ग बतलाया और न अपवाद । स्तत्रैव संवासमुखा बभूवः।। भगवती आराधनामें मुनियों के एक जगह कितने यत्रोदयं प्राप सहस्ररश्मि-- काल तक ठहरने और बादमें न ठहरनेके सम्बन्धमें र्यातास्ततोऽ था पुरि वाऽप्रसंगाः॥ विस्तृत विचार किया गया है। लेकिन वहां भी एक जगह वर्षों ठहरना मुनियों के लिये विहित नहीं बतइसी बातको मुनियोंके आचार-प्रतिपादक प्रधान लाया। नौवें और दशवें स्थितिकल्पोंकी विवेचना प्रन्थ मूलाचारमें (७८४) निम्न रूपसे बतलाया है ' करते हुए विजयोदया और मूलाराधना दोनों टीकाओं __में सिर्फ इतना ही प्रतिपादन किया है कि नौवें कल्पमें ते शिम्ममा सरीरे जत्थत्थमिदा वसांत आणएदा। मनि एक एक ऋतमें एक एक मास एक जगह ठहरते सवणा अप्पडिवद्धा विज्जू तह दिट्टणट्ठा या ॥ हैं। यदि ज्यादा दिन ठहरें तो 'उद्गमादि दोषोंका Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527251
Book TitleAnekant 1948 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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