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________________ किरण १ स्व० मोहनलाल दलीचन्द . २३ था और उसके नोटिसभी तैयार होगये थे पर उनके आपने श्रीमद् यशोविजयजीका जीवनचरित्र एवं एकाएक अस्वस्थ हो जानेसे वह कार्य सम्पन्न न हो नयकर्णिका ग्रन्थ संकलित किये । सिंघी जैन ग्रन्थमाला सका। अगर यह प्रस्तावना प्रकाशित होजाती तो से प्रकाशित सिद्धिचन्द्रगणि कृत भानुचन्द्रचरित्रको जैनसाहित्यके सम्बन्धमें बहुत कुछ जानकारी प्राप्त हो भी इग्रेजीकी विस्तृत प्रस्तावनायुक्त सम्पादित किया। सकती थी। गुजरातीमें (१) जैनसाहित्य अने श्रीमन्तो नु कर्त्तव्य स्वर्गीय देसाई महोदयने अपनी सारी शक्ति (२) जिनदेवदर्शन (३) सामायिक सूत्र-रहस्य लगाकर जिस महान ग्रन्थको लिखा वह है- 'जैन (४) जैनकाव्यप्रवेश (५) समकितना ६७ बोल नी साहित्यनो संक्षिप्त इतिहास ।' इस ग्रन्थकी पृष्ठसंख्या समाय (अर्थसहित) (६) जैनऐतिहासिक रासमाला १२५० और ६० चित्र हैं। इसमें भगवान महावीर (भा०१) (७) नयकर्णिका (5) उपदेशरत्नकोश से लेकर अबतकके साहित्यका इतिहास. छोटीमोटी (E) स्वामी विवेकानन्दना पत्रो (१०) श्रीसुजप्तवेलि(?) समस्त रचनाओंका उल्लेख एवं जैनाचार्यों, श्रावकों, इत्यादि पुस्तकें लिखीं एवं सम्पादन की। आदिको सभी धार्मिक, सामाजिक आदि प्रवृत्तियोंका इनके अतिरिक्त हमारी पुस्तक युग-प्रधान श्री संक्षेपमें किन्तु बड़ाही सारगर्मित एवं सुरुचिपूर्ण जिनचन्द्रसूरिकी आपने विस्तृत प्रस्तावना लिखी। लेखन बड़ी ही प्रमाणिकताके साथ किया गया है। श्रात्मानन्द-शताब्दी स्मारक ग्रन्थका आपने विद्वत्तायह ग्रन्थ विद्वान लेखकके महान धैर्य विद्वत्ता और पूर्वक सम्पादन किया। सामयिक पत्रों में समय लेखनकौशलका परिचायक है। इसके संकलनमें समय पर आपके शोधपूर्ण लेख आते रहते थे। लगा २० वर्षका श्रम सफल होगया। आज यह कविवर समयसुन्दर पर आपने विस्तृत खोज की प्रन्थ विद्वानों के लिये पथप्रदर्शक है। इसका हिन्दीभाषा. और सुन्दर निबन्ध लिखकर गुजराती साहित्य भाषी जनतामें प्रचार करने के लिये हिन्दीमें अनुवाद परिषदके यें अधिवेशनमें सुनाया, वह लेख होना परमावश्यक है। जैनसाहित्यसंशोधक एवं आनन्दकाव्यमहोदधिके देसाईजी ने स्वयं अकेले ग्रन्थों के लेखन एवं ७वें मौक्तिकमें भी चार प्रत्येक बुद्ध रासके साथ प्रकाशनमें आदिसे अन्ततक परिश्रम किया। उन्होंने छपा है । इसी प्रकार कवि ऋषभदासका विस्तृत निजी खर्चसे साहित्यिक यात्रायें की, ज्ञानभंडार देखे, परिचय वें मौक्तिकमें प्रकाशित हुआ है। हमारी पुस्तकें संग्रहीत की । लेखन, प्रफ अवलोकन, अनु- साहित्य प्रवृत्तिमें प्रधानत: (खासकर) महाकवि क्रमणिका-निर्माणादि समस्त कार्य बिना किसीकी समयसुन्दरजीकी कृतियां ही प्रेरणादात्री हुई और साहाय्यसे करना और अपने वकालत पेशेमें भी श्रीयुत देसाईके इस विद्वत्तापूर्ण लेखने हमें मार्ग संलग्न रहना उनकी जैनसाहित्य के प्रति महान प्रीति दिखाया। बम्बईकी पर्युषणपर्व-व्याख्यानमालामें एवं एक लग्नशील कितना काम कर सकता है भी आप बड़ी दिलचस्पीसे भाग लेते और जनताको इसका ज्वलंत उदाहरण है। वास्तव में देसाईजीकी अपने विद्वत्तापूर्ण व्याख्यानों द्वारा लाभान्वित सेवासे कान्फ्रेन्सका गौरव बढ़ा, यह स्वीकार करने में करते रहे हैं। संकोच नहीं होना चाहिये। सभा सोसाइटियोंसे आपको विशेष. प्रेम था। देसाईजीको अविश्रान्त लेखनी जैनसाहित्योद्धार- नागरी प्रचारिणी सभाके आप सदस्य थे ही। जैनधर्म प्रकाशनार्थ जीवन भर चली, जिसके फलस्वरूप प्रसारकसभा, श्रात्मानन्दसभा (भावनगर) और उपयुक्त ग्रन्थों एवं पत्रों के सम्पादकके अलावा 'सनातन जैनएज्युकेशनलबो. बम्बईके आप आजीवनजैनक भी' दो वर्षतक उपसम्पादक रहे। इंग्रेजीमें सभासद थे। जैन श्वे० कौन्फ्रेन्सकी स्टेंण्डिग Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527251
Book TitleAnekant 1948 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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