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________________ २४ अनेकान्त कमिटीके, महावीर जैन विद्यालयकी मैनेजिंग कमेटी के, श्रीमांगरोल जैनसभाको मैनेजिंग कमेटीके भी आप सदस्य थे । हमारे साथ आपका वर्षोंसे घनिष्ठ सम्बन्ध था। फुरसत मिलने पर आप हमारे पत्रोंका विस्तृत उत्तर देते, आपके कतिपय पत्र. तो दस दस पन्द्रह पन्द्रह पेज लम्बे हैं । आप कई वर्षोंसे बीकानेर नेका विचार कर रहे थे । एकबार आपका आना निश्चित होगया था और आपकी प्रेरणा से हमने श्रीचिन्तामणिजीके भण्डार की प्राचीन प्रतिमाएँ भी प्रयत्न कर निकलवायीं इधर देसाई महोदय बम्बईसे बीकानेर के लिये रवाना होकर राजकोट भी आगये पर सालीके ब्याह पर रुक जाना पड़ा। इसप्रकार कईबार विचार करते करते सन १६४० में हमारे यहां पधारे और १५-२० दिन हमारे यहां ठहर के अविश्रांत परिश्रम कर हमारे संग्रहकी समस्त भाषाकृतियें ( रास, चौपाई आदि) एवं बीकानेर के अन्य समस्त संग्रहालयोंके रास चौपाई आदिके विवरण तैयार किये। जिनका उपयोग जैन गुर्जर कवियो भा० ३ में किया । इस ग्रन्थकी तैयारी में अत्यधिक मानसिक परिश्रम आदिके कारण सन् १६४४ में आपका मस्तिष्क शून्यवत् होगया और अन्त में २-१२-४५ के रविवार के प्रातः काल राजकोट में स्वर्ग सिधारे । आपने श्रीमद् यशोविजयजीकी समस्त लघुकृतियों का संग्रह किया था। उसे प्रकाशन करने के लिये किसी मुनिराजने देसाईं महोदय से सारी कृतियें लेकर उन्हींसे संकलन सम्पादन कराके प्रकाशित कीं पर सम्पादकका नाम देसाई महोदय का न रखकर प्रस्तावना में उल्लेखमात्र कर दिया देसाई महोदय के प्रति यह अन्यायही हुआ । यद्यपि स्वर्गीय देसाई महोदयको नामका लोभ तनिक भी नहीं था किन्तु नैतिकताके नाते ऐसा कार्य किसीभी मुनि कहलानेवाले तो क्या पर गृहस्थको भी उचित नहीं है | देसाई महोदय यह चाहते तो इस विषय में हस्तक्षेप कर सकते पर उन्हें नामकी परवाह नहीं, Jain Education International वर्ष ६ कामका ख्याल था और इसी दृष्टिसे उन्होंने कभी शब्दोच्चारण भी इस विषय में नहीं किया । हमारा कर्त्तव्य - आपने बारामासोंका परिश्रमपूर्वक विशाल संग्रह किया जिसे अपने मित्र मंजूलाल मजुमदार को दिया, वह अब तक अप्रकाशित है जिसे अवश्य प्रकाशित कराना चाहिये । देसाईजी बड़े परिश्रमी और अध्यवसायी थे जहां कहीं इतिहास, भाषा या साहित्य सम्बन्धी कोई महत्त्वपूर्ण कोई कृति मिलती स्वयं नकल कर लेते या संग्रह कर लेते थे । इस तरह आपके पास बड़ाही महत्त्वपूर्ण विशाल संग्रह होगया था । इस संग्रहकी सुरक्षाके हेतु हमने चैनपत्रादि में लेख एवं पत्रद्वारा कान्फ्रेंस आदिका ध्यान आकृष्ट किया पर अद्यावधि कार्य कुछभी हुआ प्रतीत नहीं होता । अब एक बार हम पुन: जैन० श्वे० कान्फ्रेंसका ध्यान निम्नोक्त बातोंकी तरफ आकृष्ट करते हैं आशा है, कान्फ्रेंस, उनके मित्र, सहयोगीवर्गे सक्रिय योगदानपूर्वक स्वर्गीय देसाई महोदय के प्रति फर्ज़ अदा करेंगे। श्वे० कान्फ्रेंस एवं चैनसमाजके कतिपय आवश्यक कर्त्तव्य इस प्रकार हैं। 1 १ - देसाईजी के संग्रहको सुरक्षित कर कान्फ्रेंस, उसे सुसम्पादित करवाके प्रकाशन आदि द्वारा सर्व सुलभ करे | २- उनके जीवनचरित्र व पत्रादि सामग्री जिनके पास हो संग्रहकर प्रकाशित करें । ३- उनकी स्मृति में एक स्मारक ग्रन्थ, विद्वानोंके लेख, संस्मरणादि एकत्र कर प्रकाशित करें । ४- उनकी स्मृति में एक ग्रन्थमाला चालू करें जो इतिहास, साहित्य, पुरातत्त्व और जैन स्थापत्यादि विषयों पर उत्तमोत्तम ग्रन्थ प्रकाशित करे । ५- आपके " जैन गुर्जर साहित्य के इतिहास " सामग्रीको इकठ्ठा कर एवं अधिकारी विद्वान. ' सम्पादित कराके प्रकाशन करना परमावश्यक है। की For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527251
Book TitleAnekant 1948 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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