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________________ २२ अनेकान्त वप ६ समाज और साहित्यसेवा में अधिकसे अधिक समय सह महत्त्वपूर्ण परिचय दिया है। इस भागमें कुल का भोग देता है। स्वर्गीय देसाई सच्चे लगनशील २८७ जैनकवि और ५४१ पद्यकृतियोंका परिचय और निरन्तर ठोस कार्यकर्ता थे । हाईकोर्टकी छुट्टियों में है, तदनन्तर गद्यग्रन्थोंकी सूची, कवि व कृतियोंको तो आप अधिकतर प्रवासमें आकर जैनहस्तलिखित अकारादिको सूचीक साथ १०१० पृष्ठाम अकारादिकी सूचीके साथ १०१० पृष्ठों में ग्रन्थ समाप्त प्रतियोंका अवलोकनकर विवरण लिखतेही पर अन्य हुआ है, जिसमें प्रारम्भमें ३२० पृष्ठको प्रस्तावना समय भी दिनरात उनका कार्य चालू रहता था। जराती भाषानो संक्षिप्त इतिहास' शीर्षकसे आफिसमें भी अपने पोथीपत्रे साथ रखते और जब भाषा साहित्यका इतिहास लिखा है जो विद्वानों के फुरसत मिली सरस्वती उपासनामें जुट जाते। घर लिये बड़े ही कामकी वस्तु है। इसके ५ वर्ष बाद पर भी जब सब लोग सोये रहते, देसाई महोदय द्वितीयभाग प्रकाशित हुआ, जिसमें १८वीं शताब्दीके रातमें दो दो बजे तक अपनी साहित्य-साधनामें १७६ कवियोंकी ४०१ कृतियोंका परिचय, गद्य-कृतियें संलग्न रहते थे। आलस्य-प्रमादको पासभी नहीं जैनकथाकोश, खरतर तथा अंचल गच्छकी फटकने देते थे, जहां कहींभी साहित्यिक कार्य होता पट्टावलिये, राजावली आदि परिशिष्टोंयुक्त ८४५ स्वयं तत्काल जा पहुंचते थे। आपने अपनी पृष्ठों में दिये हैं। तीसरा भाग दो खंडोमें है, जिनके साहित्य-साधनाकी सबसे अधिक सेवा श्रीजैन कुल २३४० पृष्ठ हैं। इसमें ५२० कवियोंके ११११ श्वेताम्बर कान्फ्रेन्सको दी। जैनश्वे० कौ० हेरल्डके कृतियोंका एवं १४५ ग्रन्थकारोंकी ५६६ गद्यकृतियोंका ७ वर्ष तक आप संपादक रहे। "जैनयुग" मासिक तथा २५४ अज्ञातकर्तृक गद्यकृतियोंका परिचय, १२८ का ५ वर्ष तक सम्पादन किया, जो अन्वेषण और पृष्ठकी कवि, कृति, स्थल एवं राजाओंआदिको अनुसाहित्यिक जैनपत्रों में अपना खास स्थान रखता था। क्रमणिका, २७२ पृष्ठोंमें देशियोंकी महत्त्वपूर्ण विस्तृत जैनसाहित्यसंशोधकके बाद उच्चकोटिके पत्रों में सूची सत्पश्चात् जनतर कवि एवं कृतियोंका परिचय, जैनयुगका ही नम्बर लिया जासकता था, यदि वह कतिपय गच्छोंकी परम्परा-पट्टावली श्रादिके पश्चात बन्द न होता तो अबतक न जाने कितना महत्त्वपूर्ण देसाई महोदय के ग्रन्थोंपर विद्वानोंके अभिप्राय जैनसाहित्य प्रकाशमें श्राजाता। प्रकाशित हैं। आपने इस ग्रन्थकी महत्त्वपूर्ण ५०० देसाई महोदयको जैनसाहित्यके प्रति प्रगाढ प्रेस पृष्ठकी प्रस्तावना+ लिखनेका विचार हमें सूचित किया और अनन्यभक्ति थी। गुजराती भाषा के लिये श्राप +इस प्रस्तावना के सम्बन्धमें हमें निम्नोक्त सूचनायें ने बहत कळ किया एवं जैन भाषासाहित्य के प्राचीन अपने पत्रोंमें दी थीं :ग्रन्थोंको गुर्जरभाषा-भाषी जनतामें प्रकाशमें लाने के १- ता० १२-१२-४७ के पत्र "प्रस्तावना ५०० पृथ् हेतु आपने हजारों पृष्ठों में "जैनगुर्जरकवियो" के नी लखवानी बाकी छे ते लखवानी छे ते माटे छटक तीन भाग प्रकाशित कर सैकड़ों जैन कवियोंको छूटक लखायु छे ते भेगु करवानु छ।" उच्चासन प्राप्त कराया एवं हजारों कृतियोंको विद्वत् २- ता० २७-१-४३ के पत्रमें "प्रस्तावना लिखी जारही समाजके सन्मुख रखकर गुर्जर-गिरा, जैनसाहित्य है पृ० ५०० करीब मुद्रांकित होगा।" जैन गुर्जर साहित्यका और जैनशासनकी अमूल्य सेवा की। जैनगर इतिहास" यह मेरी प्रस्तावनाका शीर्षक है, उसमें लवलीन कवियोंका प्रथमभाग सं०१६१२ में प्रकाशित हा, हूं समुद्रमंथन चल रहा है। क्या डालू क्या नहीं! जिसमें १३वीं शताब्दीसे १७वीं शताब्दीके अपभ्रंश, वाग्देवी सहाय करे और आप जैसेकु सहाय देनेकी प्रेरणा हिन्दी, गुजराती, राजस्थानी भाषाके दि० श्वे० करे। अापका साहित्य-लेख परिश्रमके लिये हृदयपूर्वक जैनेतर कवि और उनकी रचनाओंका आदि अन्त- धन्यवाद देकर - लि. मा० सेवक मोहनलालका नमना।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527251
Book TitleAnekant 1948 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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