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________________ न्याय की उपयोगिता एक पत्र और उसका उत्तर वर्णीभवन सागरके विद्यार्थी धन्यकुमार जैनने उससे जी कतराता था। पर अब यह अरुचि नहीं एक जिज्ञासापूर्ण पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने 'न्याय है। बल्कि अनुभव करता हूं कि न्यायशास्त्रका पढ़नेसे क्या लाभ है ?' इस प्रश्न पर प्रकाश डालने अध्ययन योग्य विद्वत्ता प्राप्त करनेके लिये बहुत की प्रेरणा की है। अत: उनके पूरे पत्र और अपने आवश्यक है उसके बिना बुद्धि प्रायः तर्कशील और उत्तरको नीचे दिया जाता है। . पैनी नहीं होती। अत: न्यायशास्त्रके अध्ययनसे "वर्तमान में छात्रोंको न्यायसे अरुचि सौ होती बड़ा लाभ है। प्रत्येक योग्य छात्र उससे अधिक जा रही है। यद्यपि बहुतसे छात्र जैन विद्यालयों में विद्वत्ता और साहित्य-सेवा का लाभ उठा सकता है शिक्षा प्राप्त करनेके कारण बाध्य होकर पढ़ते हैं। और साहित्यिक, दार्शनिक तथा सामान्य विद्वत्संसार परन्तु बहप्तसे छात्र केवल किसी प्रकार उत्तीर्ण होने में अपनी ख्यातिके साथ साथ अपना अमर स्थान का प्रयत्न करते हैं। मैं भी एक न्यायके छोटेसे बना सकता है। प्रसिद्ध दार्शनिक और साहित्यिक अन्धका पढ़नेवाला छात्र हैं। मुझे न्याय पढ़ते हुये विद्वान् राधाकृष्णन और राहुल सांकृत्यायन अपनी डेढ़ वर्षे होचुका। परन्तु मैं अभीतक न्यायकी उप दार्शनिक विद्वत्ता और रचनाओंके कारण ही आज योगिता नहीं समझ पाया। अत: कृपया मेरे "न्याय विश्वविख्यात हैं। अपनी समाजके पं० सुखलाल पढ़नेसे क्या लाभ है ?" इस प्रश्नपर प्रकाश डालें। जी, पं० महेन्द्रकुमार जी आदि विद्वान उक्त जगतमें ताकि मुझ ऐसे अल्पज्ञ छात्र न्याय पढ़नेसे लाभोंको ऐसे ही ख्याति प्राप्त विद्वान् कहे जा सकते हैं। समझकर उसे पढ़ने में मन लगावें। जबतक किसी मतलब यह है कि न्याय-विद्या बुद्धिको तीक्ष्ण करने विषयकी उपयोगिता समझमें नहीं आती तबतक के लिये बड़ी उपयोगी और लाभदायक श्रेष्ठ विद्या है उसके विषयमें कुछ भी प्रयास करना व्यर्थ सा होता और इस लिये उसका अभ्यास नितांत आवश्यक है। ____ यद्यपि हम यह नहीं कहते कि शिक्षासंस्थाओं में हमारा खयाल है कि वि० धन्यकुमारका यह पत्र पढ़ने वाले हरेक छात्रको जबरन् न्याय पढ़नेके लिये अपने वर्गके विचारोंका प्रकाशक है, जो कुछ विचार मजबूर किया ही जाय । जिनकी रुचि हो, अथवा न्यायके पढ़ने के बारे में उनने प्रकट किये हैं वही उचित आकर्षण ढंगसे न्याय पढ़नेकी उपयोगिता प्रायः अन्य न्याय पढ़नेवाले जैन-छात्रोंके भी होंगे। एवं लाभ बतला कर जिनकी रुचि बनाई जा सकती मैं भी जब न्याय पढ़ता था तो मुझे भी प्रारम्भमें हो उन्हें ही न्याय पढ़ाना उचित है। यह मानी हुई न्याय पढ़नेसे अरुचि रहा करती थी। क्षत्रचूड़ामणि बात है कि सभी छात्र नैयायिक, वैयाकरण, कवि, और चन्द्रप्रभचरित के पढ़ने में और उनके लगानेमें ऐतिहासिक, सैद्धान्तिक, पुरातत्त्वविद् आदि नहीं जितनी स्वाभाविक रुचि होती थी उतनी परीक्षामुख बन सकते। उन्हें अपनी अपनी रुचिके अनुसार और न्यायदीपिकाके पढ़ने में नहीं। जब न्याय- ही बनने देना चाहिये। बनारस विद्यालयमें एक दीपिकाकी पंक्तियोंको रटकर सुनाना पड़ता था तब छात्र थे। वे न्यायाध्यापक जीके पास पढ़ते वक्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527251
Book TitleAnekant 1948 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1948
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size12 MB
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