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अनेकान्त
मुकाबला करने के लिये हम सबको उस नैतिक एवं श्रात्मिक शक्तिको मुक्र तथा प्रकट करना होगा जो हमारे भीतर दबी पक्षी है। आत्माकी यह शक्रि पौड्गसिक की श कहीं अधिक और बलवती है। हमें अपनी आत्माओं को पोन्मुख प्रयत्नशील रखना चाहिये। विश्व घमंड और हडताकी अपेक्षा सत्यं शिवं सुन्दरम्से ही श्रोत प्रीत है।' जैनाधिकार संरक्षण बहुत सयमसे समान हितैषी जैन- विचारकों और नेताओंको भी अम्ब अस्पसंख्यक जातियोंकी भाँति यह चिन्ता बनी रही है कि कहीं विविध राजनैतिक हलचलों परिवर्तनोंडे फलस्वरूप पथवा स्वतन्त्र भारत के नवनिर्मित विधानमें, जिसकी सफलताके हिरा उन्होंने सदैव पयारात्रि पूर्ण सहयोग एवं बलिदान दिया है, उनकी संस्कृति और न्याय अधिकारीकी उपेक्षा न की जाय उनके साथ अन्याय न किया जाय। कईबार विभिन्न व्यक्तियों तथा 'कतिपय संस्थाओं द्वारा इस प्रकारकी आवाजें उठाई गई किन्तु वे सब कारखाने में तीकी आवाज़ होकर ही रहगई। मा समाप्त होगया, अधिकांश प्रान्तों सार्वजनिक महाकु राष्ट्रीय सरकारें स्थापित होगई, केबिनेट मिशन श्राया और चलागया, उसके अनुसार केन्द्रमें भी श्रन्तःकालीन राष्ट्रीय सर कारने कार्यभार संभाल लिया और स्वतंत्रभारतका विधान बनाने के लिये विधाननिर्मात्री लोक परिषदका भी निर्वाचन एवं कार्य प्रारंभ होगया किन्तु जैन नेता कानोंमें तेल डाले पदे सोते ही रहे, और स्वभावतः जैनियों का कहीं ध्यान भी नहीं रक्खा गया में लगभग एक मास हुआ, देहली में अ० भा० दि० के जैन परिषद प्रधान मन्त्री बा० राजेन्द्रकुमारीके संयोजकचमें विभिन्न छैन नेताओंकी एक मीटिंग हुई और उसमें इस विषयका एक प्रस्ताव पास किया गया कि 'केबिनेट मिशन' के १६ मई के बयान पैरा २० के अनुसार निर्मित होनेवाली 'नागरिक अधिकारों, अल्पसंख्यक जातियों तथा आदिवासी एवं बहिष्कृत क्षेत्रों संबंधी सलाहकार समिति' में तो कमसे कम जैनियोंका प्रतिनिधित्व स्वीकार कर लिया जाय इस प्रस्तावकी नकलें राष्ट्रपति आचार्य कृपलानी, विधान परिषद के अध्यक्ष डा० राजेन्द्रप्रसाद, अन्तःकालीन सरकारके उपाध्यक्ष पं० जवाहरलाल नेहरू तथा गृहमंत्री सरदार पचनभाई पटेल के पास भेजी गई। इस प्रस्ताव में यह भी स्पष्ट कह दिया गया था कि जैन
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समाजका भविष्य सामान्यतः अखिल भारतीय जनताके राजनैतिक उत्कर्ष के साथ घनिष्ठत्या संबंधित है।
उस मीटिंग में यह भी मिश्रय हुआ था कि इस कना को सफलीभूत दमानेके लिये उपयु धारों अधिकारी राष्ट्रीय नेतासे डेपुटेशन के रूपमें सम्पात् मिला फाय । फलतः श्रभी तक वह जैन डेपुटेशन डा० राजेन्द्रप्रसादजी से भेंट कर चुका है और उन्होंने उसके साथ कुल विषयपर बड़े ही सौहार्द एवं सौजन्यपूर्वक चर्चा की बताई जाती है तथा अन्त में यह श्राश्वासन भी दिलाया बताया जाता है कि वे प्रकरण प्रस्तुत होनेपर इस बात का अवश्य ध्यान रखेंगे ।
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किन्तु यत २४ फगवरीको विधानसभा अधिवेशन पं० गोविन्दवल्लभ पन्त द्वारा प्रस्तुत उन सल्लाहकार समितिनिर्माण विषयक को प्रस्ताव सर्वसम्मतिले पास हुआ है. उस में उस समिति के सदस्योंकी संख्या यद्यपि ७२ निश्चित की गई है तथापि फिलहाल विधानसभा द्वारा केवल ५० सदस्य चुने जाने निश्चित हुए हैं, जो इस प्रकार हैंबंगाल, पंजाब, उप सीमान्त विलोचिस्तान और सिन्के ७ हिन्दू ; संयुक्त प्रान्त, विहार, मध्यशन्त, मद्रास, बबई, श्रासाम और उड़ीसा के मुसलमान ७; परिगणित जातियोंके सिक्ख ६ भारतीय ईसाई ४ पारसी में ऍग्लो इंडियन ३ कबायली व बहिष्कृत प्रवेश १३- इस वाक्लिक में प्रत्यक्ष ही का नाम नहीं है जो कि पारसियों और ऍम्बो इण्डियनोंकी अपेक्षा संख्या में कहीं अधिक हैं और हिन्दू मुसलमान, सिक्ख, पारसी, ईसाई श्रादिकी श्रपेक्षा कहीं अधिक प्राचीन, स्वतन्त्र एवं विशिष्ट धर्म और संस्कृतिसे संबंधित है। ता० २५ जनवरीके 'वीर' की सूचनानुसार । विधानपरिषदके कांग्रेसी सदस्योंने उम्र सलाहकार समिति के लिये अपने प्रतिनिधि चुन लिये हैं जिनमें एक प्रो० के. टी. शाह भी हैं जो जैन है। किन्तु जहाँ तक हम समझते हैं प्रो० शाह जैनप्रतिनिधिके रूपमें नहीं चुने गये वे यहाँ एक कांग्रेसी प्रतिनिधिकी हैसियत है। अतः उनके नि धनद्वारा नोंके इस दिशा में किये गये प्रयत्नोंकी सफलता मानकर सन्तोष कर लेना एक भूल है ।
जैनियोंके अपने सांस्कृतिक एवं धार्मिक स्वत्वाधिकारोंके संरचय के हित किये गये इन नगण्य प्रयत्नोंमेंसे भी कतिपय अतिशय उग्रगामी जैन सज्जनोंको ही बरामत और १४ पू.ट
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