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फिरण ६-७ ]
डालनेवाली पूणित जातिकी साम्प्रदायिकता तथा व्यक्तिगत arrant भावनाकी गंध आती प्रतीत होती है । हमारी समझमें तो यह उनका एक भ्रम ही है, इससे ऐसी कोई बात फलित नहीं होती । प्रथम तो, इन प्रयत्नों और इनके बलको देखते हुए इनकी सफलता और महत्व भी बहुत कुछ सन्दिग्ध ही है, और यदि इनमें कुछ सफलता मिलती भी है और उसका मैमी दुध बमोचित लाभ भी उठा पाते हैं तो उससे सम्पूर्ण राष्ट्र अथवा राष्ट्रीय महासभा के हितों और उद्देश्योंका विरोधी होनेकी तो कोई संभावना ही नहीं है। हाँ, उनके स्वाभिमान एवं आत्मविश्वास में अवश्य ही वृद्धि होजायगी और वे भी अपने आपको नयनिर्मित सर्वतंत्र स्वतन्त्र प्रजातन्त्रात्मक भारतीय राष्ट्रके स्वतंत्र सम्मानित नागरिक एवं अङ्ग अनुभव करेंगे ।
विविध विषय
कुछ
सचे साधु और सामान्य भिक्षुक प्रान्तीय सरकारों द्वारा पास किये गये भिक्षावृत्तिनिरोधक कानूनों के संबंध में एक जैन डेपुटेशनसे भेंट करते हुए, विधानपरिषदके सदस्य श्रीयुत रघुनाथ वि० धुलेकर एम० एल० ए० ने आश्वासन दिया कि जैनसाधु कथवा सनातनी सन्यासी कोई भी सामान्य भिक्षुक नहीं है। मुझे यह विश्व स है कि प्रान्तीय सरकारें ऐसे साधुओं और सम्यासियोंको जो हिन्दू समाजका एक आवश्यक भांग है, बाधा पहुंचाने वाला कानून न तो बनावेंगी और न बना सकती हैं। इन साधुओं की परम्परा कई सहस्र वर्षसे चली आती है, जिनके अनुसार हिन्दू परिवारोंसे भिन्ना मांगना भिक्षावृत्ति नहीं, वरन् धार्मिक अधिकार एवं कर्तव्य है। मैं आपको विश्वास दिला सकता हूँ कि कांग्रेस सरकार हिन्दू संस्कृतिको सामान रूपसे तथा जैन संस्कृतिको विशेष रूपसे नष्ट करनेवाली नहीं है, यह इन कानूनोंको लागू करनेमें इस बातकी हयश्य व्यवस्था करेगी कि साधारण भिखमंगों तथा सच्चे साधुओं एवं सन्यासियों में विभेद किया जा सके। आप प्रान्तीय असेम्बली तथा विधान परिषद में इस विषय में मेरे समर्थनका विश्वास रक्खें ।'
सरदार पटेलका उद्बोधन —गत २६ दिसम्बरको अहमदाबा में एक जैन विद्यालयका उद्घाटन करते हुए सरदार बलभभाई पटेलने कहा था कि जैनकी परीक्षा
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का आधार मनुष्यका आचरण है । जैन या जितेन्द्रियकी अपनी सफलता संबंध विचार करते समय सोचना चाहिये कि उसने संयमधर्मका कितना पालन किया ? यह भ्रात्मानुभवकी चीज़ है; वाह्याडंबर तो बहुत दीखता है, तिलक छापे करना, मन्दिरोंमें जाना जात्रायें करना कादि सब धर्म की मर्यादा कहलाती हैं, ये सब धर्मको समझने के लिये हैं, लेकिन श्रात्मानुभव या संयमको छोड़कर यदि केवल वाह्य आपको ही जो धर्म मानता है वह केवल नामाका ही जैन है, वह सच्चा जैन नहीं कहला सकता । 'अहिंसा परमोधर्मः' यह तो जैनोंका सर्वोपरि सिद्धान्त है। इसका जिसे अच्छी तरह ज्ञान हो वह भी दुकानपर कार्य करते समय आवाज़ सुने कि 'हुल्लड़ हुआ गुण्डे श्रारहे हैं' और सुनते ही माला फेंक फांक कर भागने लगे, उसे जैन नहीं कह सकते। उसने तो अपने पास के परिग्रहको सस्परूप समझा और भय की वजहसे भागा, इसको ही भीरुता कहते हैं। किसी भी धर्म में कायरता नहीं हो सकती है, जैन धर्ममें सो हरगिज़ नहीं। जैसी कोई भी हिंसा भले ही न करे, परन्तु उसमें स्वयंको होमदेने की शक्ति तो होनी चाहिये । इसके बिना सिद्धान्तको क्या कीमत ? जैनमें तपश्चर्या और श्रात्मशुद्विकी वह शक्ती होनी चाहिये कि जिसे देखकर गुरा डेके हाथमेंसे हथियार नीचे गिरजाय । आज तो महात्माजी. अहिंसा धर्मका सेवन कर रहे हैं और हिचके समय साय पदार्थका पाठ रख रहे हैं। अपनी दृष्टि दूषित हो जीभको झूठ खनेकी भारत हो, हृदय मलिन विकारोंसे परिपूर्ण हो, तो बाह्य श्राचरण भाररूप हो जायगा, बाह्य शुद्धिके साथ साथ अन्तरङ्गः शुद्धि भी करनी चाहिये ।'
नेताजी दिवस
२३ जनवरीको भारतवर्ष में सर्वत्र तथा सम्हन आदि विदेशों में भी नेताजी श्री सुभाषचन्द्र बोसका ५१ वाँ जन्मदिवस सोत्साह मनाया गया। स्वयं गांधीजीने भी नेताजीके प्रति अपनी श्रद्धांजली अर्पितकी । किन्तु अभीतक यह प्रश्न एक चिकट पहेली ही बना हुआ है कि सुभाष बाबू जीवित हैं अथवा नहीं?
स्वतन्त्रता दिवस-२६ जनवरीको समस्त भारतमें स्वाधीनता दिवस मनाया गया जो सन् १३३० से निरन्तर प्रतिवर्ष भारतीयोंको अपनी स्वतन्त्रता प्राप्तिके ध्येयकी याद
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