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किरण ६-७ ]
पिका-सभाकी दर्शक जरीमें बैठा हुआ मूक प्रशंसाके साथ पं० मालवीयकी प्रभावशाली पड़ता सुन रहा था। वह अपने युग के राजनैतिक महापुरुष थे।'
डा० राजेन्द्रप्रसाद – 'उनका नाम भावी सन्ततिको यह याद दिलाते रहने के लिये सदैव अमर रहेगा कि एक व्यक्ति अपनी एवं सतत् लगन द्वारा कितना कुछ कर सकता है।'
डा० भगवानदास - 'भारतका एक सूर्य अस्त होगया । as युवावस्था ही हिन्दी और अंगरेजीमें समानरूप से दक्ष लेखक एवं यत्रा थे और अपने इन्हीं गुणोंके कारण असे ६० वर्ष पूर्व कांग्रेसके पिता द्वारा प्रशंसित किये गये थे।'
श्री कृष्ण सिंह 'वे एक ऋषि थे और अपने अत्यन्त धार्मिक, निर्धन एवं त्यागपूर्ण जीवनके कारण वे अपने करोड़ों देशवासियों के स्ने; भाजन बन गये ।'
श्रीयुत श्रीप्रकाश — 'पं० मनमोहन मालवीय की मृत्युके साथ साथ हमारे राष्ट्रीय रामसे 14 वीं शताब्दीका अन्तिम राष्ट्रनिर्माता श्रदृश्य होगया । वह एक अपूर्व व्यक्ति थे और उनके जीवनसे हमें, घंटे बड़े सभीको, अनेक शिक्षा है मिलती हैं । उनकी जिह्वासे कभी कोई कटुशब्द नहीं निकला और उहोंने कभी किसीकी निन्दा नहीं की एकरसता एवं सतत् लगन उनके महान गुण थे । अपने दीर्घ एवं घटनापूर्ण जीवनमें उन्होंने न अपना परिधान ही कभी बदला और न अपने विचार ही ।'
विधानपरिषदका उद्देश्यउद्देश्य भारतीय विधान परिप के प्रारंभिक अधिवेशन में जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रस्ताव स्वीकृत हुआ वह पं० नेहरूजी द्वारा उपस्थित किया गया था और उसमें उक्त परिषदका उद्देश्य भारतवर्षके लिये एक सर्वतन्त्र स्वतंत्र प्रजातन्त्रात्मक विधान निर्माण करना निश्चित
साम्प्रदायिक दंगे राजनैतिक अधिकारीकी प्रासिके मिस कतिपय स्वार्थी एवं अविवेकी दलोंके इशारेपर देश के विभिन्न भागों में अन्तःसाम्प्रदायिक विद्वेष तथा सज्जन्य दंगे फ़साद, रक्तपात व रोमाञ्चकारी श्रमानुषी अपराधोंकी एक बादली गई, फलस्वरूप शान्तिप्रिय जनसाधारणकी इज्ज़त आबरू, जन धन सब प्ररक्षित और आक्रान्त हुए । और
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विविध विषय
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यह सब उस समय हुधा जब कि लगभग आधी शताब्दीके निरन्तर त्याग तपस्या कष्टसहन तथा विविध आन्दोलनों के फलस्वरूप देश स्वतन्त्रताके द्वारपर श्रा खड़ा हुआ था, और दूसरी ओर सप्तवर्षीय महाभयङ्कर विश्वयुद्ध समाप्त हो
चुका था।
इन दंगों के शिकार पीडित ग्रस्त, धन जन गृह हीन मानयों की सहायतार्थ अनेक संस्थाएँ एवं सेवाभावी सजन प्रयत्नशील हुए । पूर्वी बंगाल में जहाँ यह विनाशकारी विभीषिका खूब खुलकर खेली थी महात्मा गांधी स्वयं पहुंचे और गांव गांव पैदल दौरा करके शान्ति र सजायन का संचार कर रहे हैं। कितने ही देनी महानुभावोंने भी इस कार्य में सक्रिय सहयोग दिया; विशेषकर कलकत्तेके बा० छोटेलालजी, जो वीरसेवामन्दिरकी प्रबन्धसमिति सभापति भी हैं, स्वयं उन स्थानों में गये, महात्माजी से भी मिले, और प्रशंसनीय सेवाकार्य किया। आपकी ओरसे विभिन्न
पत्रोंमें जैनसमाज से सहायतार्थ अपीलें भी निकली हैं, उनके उत्तरमें समाज ने अभीतक जो सहायता दी है यद्यपि वह पर्याप्त नहीं है, तथापि उसमें 1० बी० साहू शान्तिप्रसादजीका नाम खासतौर से उल्लेखनीय है जिन्होंने इस हेतु पचास हज़ार रुपये प्रदान किये हैं। स्वयं बा० छोटेलालजीने भी इस कार्य में हजारों रुपये व्यय किये हैं । 'वीर' शादि पत्रोंने भी कुछ अन्य एकत्रित करके उनके पास भेजा है। दानी और उदार जैनसमाज अपना समुचित योग देनेसे गुँड न मोड़ेगी । सहायता भेजनेका पता - बा० छं टेलाल जैन, १०४ - चितरंजन एवेन्यु कलकत्ता, है ।
हम आशा करते हैं कि लोकहितके इस कार्य में
अणु बम सन् ४५ में जापान के हिरोशामा तथा नागासाकी स्थानों के स्फोटसे को बिनाशकारी दुष्परिणाम हुए यह सर्वविदित हैं, तथापि आजके ष्ट्रीय जगतके प्रमुख राष्ट्रोंनें इस बम सम्बन्धी मोह एवं उसके बनाने और संग्रह करने का प्रयत्न कम हुआ नहीं दीख पड़ता । परिणामस्वरूप उसका मुकाबला करनेकी समस्या मानवहितैषी विचारकोंके लिये चिन्ताका विषय बनी हुई है। प्रख्यात दया प्रचारक एवं सामाजिक कार्यकर्त्री अंग्रेज महिला मिस मरयल लिस्टरने अक्तूबर में ईसाइयों के एक अन्तराष्ट्री सम्मेलनमें भाषण देते हुए कहा था कि- 'अणुशत्रिका
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