________________
[ वर्ष =
दिया गया है जो कि विजयानन्द मध्यमराजाके पुत्र थे, सेन्द्रक नामक निर्मल कुलरूप आकाशके उदित दीप्त - दिवाकर थे और राष्ट्रकूट वंशमें उत्पन्न हुए श्री देढ महाराजके द्वारा अभिमत (माने हुए राजा ) थे । और यह दान उन गुप्तायिक राजाओं के ८४५ वर्ष बीतनेपर दिया गया है जो कि इस अवसर्पिणी कालके २४ वें तीर्थकर सन्मति श्रीवर्द्धमानकी वृद्धिंगत तः सन्ततिमें हुए हैं— अथात् भगवान् वर्द्धमान (महावार) के तीर्थानुयायी थे । उन्ही वर्द्धमान तीर्थंकर के शासनकी आदिमें एक श्लोकद्वारा मंगलाचरणरूप से वृद्धि-कामना की गई है - लिखा है कि 'जिन्होंने रिपुत्रों - कर्मशत्रुवोंका नाश किया है उन बर्द्धमान गरण-समुद्रके वद्धमानरूप चन्द्रमाका दैदीप्यमान शासन (तीर्थों) वृद्धिको प्राप्त होवे, जो कि मोह के शासन स्वरूप है— मोहपर कंट्रोल रखने अथव विजय प्राप्त करनेकी एकनिष्ठको लिये हुए और दानपत्रके अन्तमें यह घोषणा की गई है कि 'जो इस दानका अपहरण करता है वह पंच महापातकों से युक्त होता है— हिंसादि पांच घोरपापों का भागी होता है।' दानपत्रमें कुल १६ पंक्तियाँ हैं और इस लिये उसे पंक्तिक्रमसे ही आज अनेकान्त पाठकों के सामने रक्खा जाता है:
1
:
२८६
श्रकान्त
| वर्द्धतां वर्द्धमानेन्दोर्वर्द्धमानगणोदधेः शासनं नाशित2 रिपोर्भासुरं मोहनाशनम् ।। इहास्यामवसर्पिण्यान्तीर्थ3. कराणां चतुर्विंशतितमस्य सन्मतेः श्रीवर्द्धमानस्य वर्द्धमा4. नायां तीर्थसन्ततावागुप्तायिकानां राज्ञामष्टासु वर्षशते5 षु पंचचत्वारिंशदग्रेषु गतेषु राष्ट्रकूटान्वयजातश्रीदे6 अ (स्य ?) महाराजस्याभिमतः श्रीसेन्द्र कामलकुलाम्बरोदितदी7 प्रदिवाकरो विजयानन्दमयमराजात्मजः श्रीमानिन्द्रणन्दाधि8 राजः स्ववंश्यानामात्मनश्च धर्मवृद्धये कमाएडीविषये
9 पर्वतप्रत्यासन्तजलारग्रामे जम्बुखण्डगणस्यायज्ञान10 दर्शनतपसम्पन्नाय आर्य्यणन्द्याचार्याय भगवदह|| प्रतिमानवरतपूजार्थं शिक्षकग्लानवृद्धानां च तपस्विनां वै12 यावृत्त्यार्थं ग्रामस्योत्तरतः पूर्विणग्रामविरेयसीमकं द13 क्षिण मुञ्जलमार्गपर्यन्तं अपरतः एन्दाविरुत्स
14 हितवल्नीकं तस्मादुत्तरतः पुष्करणी ततश्च यावत्पूर्व्वविरेय15 कं राजमानेन पंचाशन्निवर्तनप्रमाणक्षेत्रन्द
16 सवानेतद्यो हरति स पंचमहापातकसंयुक्तो भवति [1]
इस शासनपत्रमें उल्लेखित आगुप्तायिक राजाओं, उनके संवत्, राष्ट्रकूटवंशी देठ महाराज, सेन्द्रककुल, विजयानन्द राजा, उसके पुत्र इन्द्रनन्द आधिराजा, कष्माण्डी देश, जलार ग्राम, पूर्विण
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org