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. [ वर्ष ८
लिख देते हैं।'
कर दिये गये। बिहारके शहीदोंके लिये कहा जा रहा हैक्या खुब? .
'जुगे हर बरस मेले शहीदोंके मजारोपर जब कोई जुल्म नया करते हैं फर्माते हैं।
और पूर्वी बालके लिए:- अगले वनोंके हमें तर्जे सितम याद नहीं ।
'जन मरे परवाने शमापर कोई पुरसा न था।'
मैं भी इस बक्रव्यका कायल हूँ, जो लबते.हुए मरता बंगालकी प्रतिक्रिया स्वरूप जटायुका श्रादर्श सममने है सचमुच बह शहीद होकर वीर-गतिको प्राप्त होता है। वाले विहारमें उपद्रव हुए तो जिन्हा फौरन पैतरा बदल- एक ऐतिहासिक घटना है :कर बोले, 'नहीं, बाज़ दफा एक हाथ दूसरे हाथपर अपने औरंगजेबके हुक्मपर जब उसके भाई दाराको बधिक भाप प्रडकर वाली बजा देता है।' पूर्वी बङ्गालमें हिन्दुओंका लोग करल करने पहुंचे तो वारा उस समय चाकूसे सेव छील नाश कर दिया गया, तब भी जिन्हाकी नजरोंमें उस तबाहीमें रहा था। बधिकोंको देखकर वह चाक लेकर खड़ा हो गया स्वयं बाली हिन्दुचों ही का दोष था। और बिहारमें पड़ने, और बोला-'भाभो आलिमों ! तैमूरका वंशज कुत्तोंकी बिहार शरीफ वगैरहमें महीनों पहलेसे मुसलमानोंकी तैयारी तरह न मरकर अपने पूर्वजोंकी तरह लबते हुए मरेगा।' हो रही थी, तो भी वहाँ केवल हिन्दु का अपराध धा। दारा पाचज करता हुआ मर गया। हपारे शास्त्रों और मुसलमान तो चाहे बङ्गालके हों या बिहारके बिचारे सीधे इतिहासमें इस तरहके अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं। मगर साधे हैं। क्या खूब 'दूसरेके घरमें बगे तो पाग, अपने मनको इस तरहसे ढक या विकृत कर दिया गया है कि यहाँ हो तो बैसन्धर
कुछ भी तो स्पष्ट नहीं मालूम होता। और जो हमारे और जबानकी सफाई देखिये मुस्लिमलीगी 'पत्र डान' उपदेशक या दार्शनिक है न जाने कहाँ से देने कायरताके लिखता है-बिहारमें मुसलमान भायज्ञ बहुत कम हुए हैं, उदाहरण निकाल खाते है कि मानो इन्होंने अवतारही मरने वालोंकी तादाद कयाससे बाहर है। क्योंकि बिहारके हमारा नाश करनेको लिया है। मुसलमान जालिम हिन्दुओंका मुकाबला करते हुए हस्तामपर महात्मा गाँधीने पूर्वी बङ्गालके अपहरणकी घटनाओंशहीद हुए हैं। न मरने वाले मुसलमानोंने हमें बतला पर वक्रव्य दिया कि जबर्दस्ती परिवर्तनसे तो जहर खाकर दिया है कि इस्लामपर इस तरह जान कुर्बान किया करते मर जाला अच्छा है? क्यों जहर खा लेना अच्छा है? यही हैं। एक एक मुसलमान हजारों हिन्दुओंका मुकाबला करके तो आतताई चाहते हैं। काफिरोंसे पाक 'पाकिस्तान' और शहीद हुआ है।
सनकी धन दौलत । जहर खानेके बजाय उनके घरमें घुसअब देखिये मरनेवालोका भाग्य । विहारये जो हिन्दु. कर वह कृत्य क्यों नहीं करना चाहिए, जो रावणके घर भोको मारते पछाबते मरे वह तो सब शहीद हो गये। सीताको करना था। मगर बालके हिन्दु बगैर किसी मुसलमानको मारे उनके बिस्तीके भयसे कबूतर प्रांखें बन्द करते या आत्महाथसे मर गये वह जिबह हुप । मरे दोनों ही, मगर मृत्यु- हत्या बिल्जीका दोनों तरह लाभ है ! वह बाजकी तरह सन्युमें अन्तर है। वे युद्ध में मरकर बीरभातिको प्राप्त हुए, मपट कर उसकी ऑख्ने जबतक नहीं फोड़ देता खतरे में ये कसाइयोंके हाथसे जिबह होकर कीड़े-मकोड़ोंमें शामिल ही रहेगा।
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