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किरण ६-७1
कायरता घोर पाप है
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मकार
दांत और नख दोनों थे, चाहती तो रावणकी आंख बचाकर, होती और तब आतताई उनके पास मानेमें उसी तरह नोचकर काटकर, छीना-झपटी करके देर अवश्य लगा सकती भय खाते जैसे छडून्दरके पास पानेमें सांप भय खाता है। थी। तनिक भी इस तरहका साहस दिखाया होता तो शायद एक बार बनारस गया तो विश्वनाथजीका मन्दिर इतनेमें राम ही आ जाते। वनोंसे भील वगैरह ही रक्षार्थ दिखाते हुए पण्डा वहां ले गया जहां औरंगजेब द्वारा हिन्दू श्रा जाते और कोई भी न आता तो एक आदर्श तो बन मन्दिर तोड़ कर बनवाई हुई मस्जिद आज भी जाता, ताकि गुडिरोंकी तरह हिन्द नारियोंको उठाकर कोई हिन्दु जातिके सीनोंपर मेखकी तरह जमी हुई मौजूद नहीं ले जा सकता । परन्तु सीता तो उस कायरताबहु- . है । पण्डेने एक कूत्रा दिखाकर कहा, 'धर्मावतार ! यह रूपिणीके चकमे में आगई जो हमेशा अहिंसाकासा रूप बना- वही कुत्रा है जिसमें बाबा विश्वनाथ मुसलमानोंके छुनेके कर लोगोंको बुद्धिभ्रष्ट करके आपदाओं में डालती रहती है। सयसे कूद गये थे और आज तक वहीं मौजूद हैं। मैंने यदि उसके घेरे में सीता न पाई होती तो सीता लंकामें कुढ़कर कहा 'और तुम लोग उनके साथ क्यों नहीं गये, क्या जाकर भी अवसर पाकर रावणका बध कर सकती थी, महलों तुम्हें मुसलमानों के छूजानेका भय नहीं था। भला जिस में आग लगाकर अपहरणका स्वाद चखा सकती थी। पर, जातिको यह पाठ पढ़ाया जाता हो कि उनके ईश्वर भी नहीं वह गायकी तरह बधिकके कब्जे में रहकर केवल आंसू आतताइयोंसे भागते रहते हैं वह उनका डटकर कैसा बहाती रही।
मुकाबिला करेंगे, सोचनेकी जरूरत नहीं। एक हिन्दु हैं मगर सीताका यह आदर्श जटायुको पसन्द न आया जो हजारों मन्दिरोंकी बनी मस्जिदोंको बड़े चावसे अपने शायद इसीलिए समझादार लोगोंने इसे पक्षीतक कह दिया है। महमानोंको दिखाते हैं और एक सिक्ख हैं जो मुस्लिम जो भी हो, यह अन्याय उसके पुरुषत्वके लिये चुनौतीथा।यू मिनिस्ट्रीके होते हुए भी मस्जिदको गुरुद्वारा बना बैठे। सीतारामसे कोई राग और रावणसे उसे द्वेष न था । उसके । जब हम चलें तो साया भी अपना न साथ दे। सामने वो प्रश्न था किधर्म क्या है और अधर्म क्या है ? चुप- जब वह चलें तो जमीन चले आस्मां चले ॥-जलील चाप आतताईके अन्यायको सहन करना उसने अधर्म. और सीताका दूसरा आदर्श ये था कि वे साध्वी रहीं। आतताईको दण्ड देना, अत्याचारके विरोधमें उठना, नारीकी आज भी हिन्दू नारियाँ उसी आदर्शपर चल रही हैं। परन्तु रक्षा करना धर्म समझ कर वह रावणसे भिड़ गया! सीता और आजकी नारियोंके युगमें बहुत बड़ा अन्तर ये भिड़नेसे पूर्व जटायु भी यह जानता था कि हाथी और है कि रावण बलात्कारी नहीं था। श्राजके आतताई बलामच्छरकी लड़ाई है ? सीताको छुड़ाना तो दर किनार अपना कारी हैं। रावण बलात्कारी होता तब इस श्रादर्शकी भी सफाया हो जायगा । फिर भी वह जाँबाज रावणपर रूपरेखा क्या हुई होती, कुछ कहा नहीं जा सकता। टूट पड़ा। मरा तो, पर रावणको क्षत विक्षत करके। बंगालके उपद्रवोंपर जिन्होंने कहा था कि हिन्दु-मुस्लिम : पुरुषोंको यह पाठ पढ़ा गया कि खबरदार ! आततायी झगड़े ठीक नहीं। ताली दोनों हाथसे बजती हैं, अत: दोनों
कितना ही बलवान हो उसके अत्याचारका विरोध अवश्य सम्प्रदायोंके लोगोंको शांत रहना चाहिये । इस शरारत भरे - करना । आज शायद जटायुके उस पाठका ही परिणाम है वक्तव्यसे बदनमें प्राग-सी लग गई। घरको डाकू लूटते • कि लोग शांति शान्ति क्षमा-क्षमाके शोरमें भी अत्याचारका रहैं और रोते बिलखते घरवालोंको यह कहकर सान्त्वना विरोध करके अपना रक्त बहाकर जटायुका तर्पण करते दी जाय कि 'भाई आपसमें मत लड़ो, मेल मिलापसे रहो।' रहते हैं।
पूछता हूँ डाकुओंका क्या बिगड़ा जो हाथ लगा ले भागे, ___ यदि सीताने भी हरण होते हुए समय बल-प्रयोग मकान मालिक लुट गया और झगड़ालू भी करार दिया किया होता या लंकामें जाकर रावणको सोते हुए बध कर गया सो मुफ्तमें। दिया होता या महलोंमें आग लगा दी होती तो निश्चय यह तो वही बात हुई जैसे कई मुर्ख पत्रकार बैलगाड़ीही बाज हिन्दु-नारियोंके सामने एक निश्चित रूप रेखा हुई को ट्रेनसे किरचा-किरचा होती देख रेल-बैलगादी भिदना
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