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अनेकान्त
[वर्ष
प्रार्थनामें 'उठ गई सभा म्लेच्छकी' श्रादि कहकर मुसलमानों दोपाये भेड़-बकरियोंसे बदतर होगये हैं। वर्ना क्या कारण है के प्रति घृणा प्रगट करता है-प्रतिबन्ध तो क्या विरोधमें कि जो स्त्री एक बार अपहृत करली गई, वह कभी वापिस एक शब्द भी न कह सकी। इसका कारण निम्न उदाहरण - न आई और वह आतताइयोंमें घुलमिल एकाकार हो गई। से समझ में आयेगा।
और उन्हींकी सन्तान अपनी माताओंके अपमानका बदला • एक बार एक देशभक्कने व्याख्यान देते हुए कहा था- आतताइयोंसे लेनेके बजाय निरन्तर हिन्दुओंकी जान-मालके
'चीनियों और जापानियोंकी शक्रोशबाहतमें यूं तो घातक बने रहते हैं। बकौल महात्मा गाँधी 'भारतीय मुसल. काफी फर्क होता है, पर हिन्दुस्तानियों के लिये यह मुश्किल मान 8 फीसदी ऐसी ही देवियोंकी सन्तान हैं।' . है। उनकी पहचानका सरल उपाय यह है कि किसी चीनी सन २४ में जब साम्प्रदायिक उत्पात हो रहे थे एक के पाँवमें पीछे से टकर मार दी जाये तो वह पलटकर ठोकर हिन्दू नेताके यह कहनेपर कि मुसलमानी सल्तनतके जमानेमें मारनेका कारण पूछेगा और जापानी ठोकरका जवाब ठोकरसे हिन्दुओंको बलात् मुसलमान बनाया गया।' हसन निज़ामी दे चुकनेपर वजह दर्याफ्त करेगा । असावधानीके लिये ने कहा था कि ऐसा कहना हिन्दुओंका अपमान करना है। क्षमा मांगनेपर तो क्षमा करेगा, जानबूझकर शरारत की गई जो हिन्दू मुसलमानको छुआ पानी पीनेसे मरना बेहतर समतो फिर दुबारा प्रहार करेगा । तभी मेरे मुँहसे निकला झते हैं वह जबरन मुससमान क्योंकर बनाये जा सकते हैं। कि कोई यूरोपियन हिन्दुस्तानमें हिन्दू-मुसलमानको भी और यह जबर्दस्ती बनियों, ब्राह्मणोंपर तो मानी भी जा इसी तरह बाबासानी पहचान सकता है। हिन्दू ठोकर लगने सकती है, पर बे राजपूत जो बात-बातमें तलवार निकाल पर पूछेगा 'आपके चोट तो नहीं लगी, क्षमा करना ।' लेते थे, जबस्न कैसे मुसलमान बनाये जा सकते थे। मुसलमान ठोकर लगानेवालेको कमजोर देखेगा तो हमला और नौ मुसलमानों में अधिकांश संख्या राजपूतों की ही है करेगा, बलवान देखेगा तो ऊपरसे हँसता हुश्रा और मनमें ये कयासके बाहर है कि वे कभी जबरन भी अपना धर्म खो गालियां देता हुआ बढ़ जायगा । सिक्ख इसी तरहके बल- सकते थे। वान लोगों में हैं।
बात चाहे हसन निजामी साहबने एक दम झूठ कही, . जिन बंगलियोंने कलकत्तेसे उठाकर अंग्रेजोंकी राजधानी पर हमारे पास इसका जवाब नहीं है। नेता कहते हैं-बंगदिल्ली फेंक दी। बंग भंगका नशा उतार कर जिन्होंने जूतेसे नारिको सीताका श्रादर्श उपस्थित करनेको । मै पूछता हूं नाक काटकी, चटगांवके शस्त्रागारको लूटकर अंग्रेजोंके धाक सीताका वह कौन-सा श्रादर्श था, जो हिन्दु-ललनाएँ अमल की बुनियाद ढा दी, समूचे भारतमें बमों और पिस्तौलोंका में नहीं ला रही हैं। हिन्दु-नारियां तो आज उसी आदर्शपर आतंक फैलाकर शक्तिशाली गवर्नमेण्टकी छाती दहला ही चल कर अपनी सन्तानका भक्षण कर रही हैं। और जिसके एक सपूत 'सुभाष' ने नाकों चने चबा दिये, सीताको हरण करनेके लिये रावण साधुका वेश बनाकर आज उन्हीं बंगवीरों की माताएँ, बहनें और पुत्रियाँ क्यों पाया तो वही सीता जो पर-पुरुषसे एकान्तमें बात करना प्रातताइयों के बरोंमें चुपचाप आंसू बहा रही हैं ? बलवान पार समझती थी और अनेक दास दासियोंके समीप रहनेपर मार तो सकता है, पर जबरन बाँधकर नहीं रख सकता। भी अशोक वाटिकामें तिनकेकी श्रोट देकर रावणको प्रत्युत्तर
.. मनुष्य तो मनुष्य, भेड़-बकी.भी जबरन बाँधकर नहीं देती है उसी सीताने निर्जन बनमें एक पर-पुरुषसे बात करने रखी जा सकतीं, उनके मनमें ही जब दासता समा जाती का श्रादर्श उपस्थित किया ! लक्ष्मणको शंकित दृष्टिसे देखने है, तभी वह बँधी रहती हैं, अन्यथा वह ऐसा शोर मचाती वाली सीता उसकी बनाई रेखाके बाहर आई । और रावण हैं कि बाँधनेवाल। तो क्या, उसके पड़ोसियोंकी भी नींद के हरण करनेपर मौन सत्याग्रहका आदर्श उपस्थित किया। हराम हो जाती है। मनुष्य तो आखिर मनुष्य है। बचपनसे यही आदर्श तो श्राज हिन्दू नारियां उपस्थित कर रही हैं सुनते आये हैं कि चौपाया तो बाँधकर रखा भीजा सकता है, फिर भी उन्हें उपदेश दिया जाता है ! दोपाया नहीं। मगर अब तो इसके विपरीत हो रहा है। सीता शरीरसे अवश्य निर्बल थी, परन्तु उसके पास
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