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कायरता घोर पाप है ! बङ्गाल और बिहारके वे नारकीय दिन !
(ले० श्री अयोध्याप्रसाद 'गोयलीय')
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उन्हीं दिनोंकी बात है जब पूर्वी बंगाल के हिन्दू भेड़ोंकी तरह मिमया और गायकी तरह उकराते हुए काटे जा रहे ये और वंगमहिलाएँ आतताइयोंके साथ चुपचाप उसी तरह जा रही थीं, जिस तरह बेगार में पकड़ी हुई गाय घास चरने सिपाही के साथ जाती हैं ।
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मेरा डेढ वर्षका बच्चा एकाएक जोरसे चीख उठा, और बदहवास होता हुआ मेरे पास आया तो उसकी अंगुलीमें चींटा चिपटा हुआ था 1 मेरे छुड़ानेपर चिउँटा मर कर ही उँगलीसे अलग हुआ और मरते-मरते भी खूनकी धार बहा
गया।
यथा तो काफी देर सुककर खेलने लगा, पर मैं अपने में खो गया । सोचा बंगालके हिन्दुओंसे तो यह चिउँटा ही छाल दर्जे श्रेष्ठ है, जिसमे बच्चों के हृदयपर यह अङ्कित कर दिया कि "बच्च ! हमको छेड़ना कुछ अर्थ रखता है ।" और अब भूलकर भी यह उन्हें नहीं ड़ता।
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एक चिउँडेने मरकर अपनी जातिकी सुरक्षाका बच्चन उस शरारती जबकेसे ले लिया। यदि वीरवकी दर मेरे पास होती तो ऐसे जाँनिसार चिउंटेका स्मारक मुझे बनवाना चाहिए था । परन्तु जो कौम, लोक-हित-युद्धमें सूझ मरनेवाले और परोपकारार्थ सर्वस्व न्योछावर करनेवाले अपने सपूतों की तालिका तक न रख सकी भला उस कौममें जन्म लेकर मैं ऐसा साहस कर सकता था ? कैसी मूर्खतापूर्ण बात बी, जो सुनता वही हँसता ।
टीपास आई गई। जब मैंने सुना कि महात्माजी हिन्दुधकी रक्षाको पूर्वी बंगाल दौड़े गये हैं, और उड़ीसा खोपडियों गिनने फलकसे पहुँचे हैं। तभी ख़याल आया कि बंगालमें सिक्ख भी तो रहते हैं, की रचार्थ सिक्ख लीडर नहीं पहुंचे । क्या सिक्ख लीडरों
को हवाई जहाज नहीं मिला था। उन्होंने बंगाल जाना ही सिक्ख जातिका अपमान समस्या ।
सब जानते हैं सिक्सके बालको हाथ लगाना, सिंहकी मूंहको घूमा है। बड़े बड़े सीसमारखाँ, बादशाहों, सेनापतियों और पेशेवर शिकारियोंके शिकार पड़े। मगर कहीं यह पहने में न काया कि सिंहकी मूँहका बाल तो क्या का दाल ही का किसीने साहस किया हो । सिंहकी मूँछ या सके बाल उखेबनेकी घटना पढ़ने में नहीं धाई, वहाँ यह भी कभी पढ़ने या सुननेजें नहीं आया कि किसी विधर्मी ने गुरुद्वारेपर आक्रमण किया हो, सिक्ख महिलाको ऐ हो या सिक्खको तंग किया हो !
इसका कारण यही है कि प्रत्येक भाई इसके परिहमसे परिचित है । इसलिये बंगालके प्रधानमन्त्रीको सुसलमानोंके जिये शायनी देवी पड़ी कि 'मुसलमान सिक्खों को न छेड़ें, वे हमारे हितैषी हैं।' क्यों नहीं, १८५७ के विद्रोहमें अंग्रेजोका पक्ष लेकर जो मुसलमानी सक्तनतका चिराग का मुस्लिम मिनिस्ट्रीके होते हुए शी गल्क मस्जिदर अधिकार जमायें, जिन्हा जैसे दराज को दान शिकन जवाब दें। वे तो भाई और हितैषी ? और वे हिन्दू जो मुसलमानी सल्तनतको समाप्त कर देने वाले अंकोंसे १५० वर्ष से लोहा लेते रहे, अपना सर्वस्व देशहित न्योछावर कर दें, जनसंख्याके अनुपातसे अधिक बगैर हाथ पाँव हिलाये अधिकार दें, दिनरात बीडियों में हाथ डालते रहें, चुपचाप से और पिटते रहें, वे शत्रु ! बेशक, कायरताका यही पुरस्कार हिन्दुओं को मिलना चाहिये था ।
सिन्धकी मिनिस्टरी सत्यार्थप्रकाशपर यो प्रतिबन्ध लगायेगी, पर सिक्खोंके उस प्रन्थसाहब जिसमें जहाँगीर भी परिवर्तन न करा सका और जिसका हर एक अनुयायी दैनिक
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