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________________ २५४ अनेकान्त प्रयोग न करके 'स्त्रीषु' पदका प्रयोग किया है जो सर्वच सिद्धान्ताविय और संगत है। यह स्मरण रहे कि सिद्धान्त में भास्त्रीमुक्ति तो इष्ट है, द्रव्यस्त्रीमुक्ति इष्ट नहीं है। किंतु सम्पद-उत्पत्ति निषेध द्रव्य और भावस्त्र, दोनोंमें ही इष्ट है। अत: पंडितजी का यह लिखना कि ६ ३ वे सूत्र में पर्याप्त अवस्थायें दी जब द्रव्यस्त्रीके चौथा गुणस्थान सूत्रकारने बताया है तब टीकाकार यह शंका उठाई है कि द्रव्यस्त्री पर्याय में पष्टे क्या उत्पन्न नहीं होते हैं ? उत्तर में कहा है कि में सम्पष्टि जीव उत्पन्न नहीं होते है। क्यों नहीं उत्पन्न होते हैं ? इसके लिये आप प्रमा बतलाया है। अर्थात् श्रागममें ऐसा ही बताया है कि द्रव्य स्त्रीरमें सम्यग्दष्टि नहीं आता है"। "यदि ६३ व सूत्र भावीका विधायक होता तो फिर सम्यग्दर्शन क्यों नहीं होता, यह शंका उठाई ही नहीं जा सकती क्योंकि भाव स्त्री के तो सम्यग्दर्शन होता ही है परन्तु द्रव्यस्त्रीके लिये शंका उठाई है। अत: द्रव्यंस्त्रीका हो विधायक ६३ वां सूत्र है' । यह स्पष्ट हो जाती है।" बहुत ही स्खलित और भूलोंसे • भरा हुआ है । 'संजद' पदके विरोधी विद्वान् क्या उक्त विवेचनसे सहमत हैं ? यदि नहीं, तो उन्होंने अन्य लेखोंकी "तरह उक्त विवेचनका प्रतिबाद क्यों नहीं किया ? मुझे आश्चर्य है कि श्री वर्धमानी जैसे विचारक तटस्थ विद्वान् पं. "पक्षमें कैसे वद गये और उसका पोषण करने लगे १ पं० मक्खनलालजी की भूलोंका श्राधार भावस्त्री में सम्यग्दृष्टिकी उत्पत्तिको मानदा है जो सर्वसिद्धान्त विरुद्ध है। सम्यग्दृष्टि न द्रव्यस्त्रीमें पैदा होता है और न भावामें यह हम पहले विस्तार से सप्रमाण बतला श्राये हैं । श्राशा है पंडितजी अपनी भूलका संशोधन कर लेंगे । और तब वे 1 प्रस्तुत ३ सूत्रको विधायक ही समझोगे । दूसरी शंका यह उपस्थित की गई है कि यदि इसी श्रार्ष (प्रस्तुत श्रागमसूत्र) से यह जाना जाता है कि हुण्डा - 'वसर्पिणीयोंमें सम्यग्दृष्टि उत्पन्न नहीं होते जो इसी श्रार्ष (प्रस्तुत आगम सूत्र ) से व्यस्त्रियोंकी मुक्ति सिद्ध हो जाय, यह तो जाना जाता है? शंकाकारके सामने १२ व सूप 'संज़द' पदसे युक्त है और उसमें द्रव्य अथवा भावका स्पष्ट उल्लेखन होने से उसे प्रस्तुत शंका उत्पन्न हुई हैं । वह समझ रहा है कि ६३ वें सूत्रमें 'संजद' पदके होनेते सूत्र Jain Education International [वर्ष = द्रव्यस्त्रियों के मंच सिद्ध होता है। यदि सूषमें 'संजद' पद न हो, पाँच ही गुणस्थान प्रतिपादित हो तो यह पस्मीकि विषयक इस प्रकारकी शंका, जो इसी सूत्रपरसे हुई हैं, कदापि नींद सकती) इस शंकाका वीरमेन स्वामी उत्तर देते हैं कि यदि एसी शंका करो तो वह ठीक नहीं है क्योकि द्रयन्त्रिय सदस्य होनेसे पंचम प्रत्याख्यान (संयमासंयम) गुणस्थान में स्थित है और इसलिये उनके संयम नहीं बन सकता है । इस उत्तरसे भी रुष्ट जाना जाता है कि सूत्र में यदि पाँच ही गुणस्थानोंका विधान होता तो वीरसेनरवामी द्रव्यस्त्रमुक्तिका प्रस्तुत 'वस्त्र' हेतुद्वारा निराकरण न करते, उसी सूत्रको ही उपस्थित करते क्योंकि इसी श्रागमसूसे उसका निषेध है। अर्थात् प्रस्तुत तथा उत्तर देते कि 'द्रव्यस्त्रियोंके मोक्ष नहीं सिद्ध होता, ६२ सूत्र आदि पाँच ही गुणस्थान द्रव्यस्त्रियों के बतलाये है छठे आदि नहीं। वीरसेनस्वाभीकी यह विशेषता है कि जब तक किसी बातका साधक आगम प्रमाण रहता है तो पहले वे उसे ही उपस्थित करते हैं, हेतुको नहीं, अथवा उसे पीछे आगम समर्थन में करते हैं। For Personal & Private Use Only शंकाकार फिर कहता है कि द्रव्यथियोंके भले ही द्रव्यसंयम न बने भावसंयम तो उनके वस्त्र र नेपर भी द्रव्यसंमन बने भावसंयम तो उनके सदस्य रहनेपर भी बन सकता है उसका कोई विरोध नहीं है ? इसका वे पुनः उत्तर देते हैं कि नहीं, द्रव्यस्त्रियोंके भावासंयम हैभावसंयम नहीं, क्योंकि भावासंयमका श्रविनाभावी वस्त्रादि का ग्रहण भावासंयमके बिना नहीं हो सकता है। तात्पर्य यह कि द्रव्यस्त्रियोंके वस्त्रादिमण होनेसे ही यह प्रतीत होता है कि उनके भावसंयम भी नहीं है— भावासंयम ही है, क्योंकि वह उसका कारण है। वह फिर शंका करता है'फिर उनमें चउदह गुणस्थान कैसे प्रतिपादित किये हैं ? अर्थात् प्रस्तुत सूत्रमें 'संजद' शब्दका प्रयोग क्यों किया है ? इसका वीरसेनस्वामी समाधान करते हैं कि नहीं, भाव स्त्रीविशिष्ट मनुष्यगति में उक्त चउदद गुणस्थानोंका सबै प्रति पादित किया है। अर्थात् २ सूत्र में जो 'संजद' शब्द है वें वह भागस्त्री मनुष्यकी अपेक्षा है, द्रव्पस्त्री मनुष्यकी पेक्षा नहीं। (इस शंका-समाधान से तो बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि प्रस्तुत है सूत्रमे 'संजद' पद है और www.jainelibrary.org
SR No.527238
Book TitleAnekant 1946 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1946
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size3 MB
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