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________________ २१० - अनेकान्त .. [वर्ष ८ . . द्रव्यस्त्रीकी तरह भावस्त्रीके भी अपर्याप्त अवस्थामें चौथा भावस्त्रीका प्रकरण सिद्ध नहीं हो सकता? गुणस्थान नहीं होता है, यह ऊपर बतला दिया गया है। परिहार-यह प्राक्षेप सर्वथा असंगत है । हम ऊपर और गोम्मटसार जीवकाण्डकी निम्न गाथासे भी स्पष्टत: कह पाये हैं कि सम्यग्दृष्टि भावस्त्रियों में भी पैदा नहीं होता, प्रकट है: तब वहां सूत्रमें 'असंजद ठाणे' पदके जोड़ने व होनेका प्रश्न हेट्टिमछप्पुढवीणं जोइसि-वण-भवण- सब इत्यीणं ही नहीं उठता । स्त्रीवेदकर्मको लेकर वर्णन होनेसे पुण्णदरे ण हि सम्मो ण साठणे गणारयापुरणे ॥ भावस्त्रीका प्रकरण तो सुतगं सिद्ध हो जाता है। ., गा० १२७ ॥ . आक्षेप - यदि ८६, ६०, ६१ सूत्रोंको भाववेदी अर्थात् 'द्वितीयादिक छह नरक, ज्योतिषी व्यन्तर पुरुषके मानोगे तो वैसी अवस्थामें ८६ वे सूत्रमें 'असंजद भवनवासी देव तथा सम्पूर्ण स्त्रियाँ । इनकी अपर्याप्त ___ सम्माइटि-टाणे' यह पद है उसे हटा देना होगा, क्योंकि अवस्थामें सम्यक्त्व नहीं होता। भावार्थ-सम्यक्त्व सहित- भाववेदी मनुष्य द्रव्यस्त्री भी हो सकता है उसके अपर्याप्त जीव मरण करके द्वितीयादिक छह नरक, ज्योतिषी, व्यन्तर, अवस्थामें चौथा गुणस्थान नहीं बन सकता है । इसी भवनवासी देवो और समग्र स्त्रियोंमें उत्पन्न नहीं होता।' प्रकार ६० वें सूत्रमें जो 'संजद-टाणे पद है उसे भी हटा आपने 'भावस्त्रीके असंगतसम्यग्दृष्टि चौथा गुणस्थान भी देना होगा। कारण, भाववेदी पुरुष और द्रव्यस्त्रीके संयत होता है और हो सकता है। इस अनिश्चित बातको सिद्ध गुणस्थान नहीं हो सकता है। इस लिये यह मानना होगा करने के लिये कोई भी श्रागम प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया। कि उक्त तीनों सूत्र द्रव्यमनुष्यके ही विधायक हैं, भावयदि हो, तो बतलाना चाहिये, परन्तु अपर्याप्त अवस्थामें मनुप्यके नहीं? भावस्त्रीके चौथा गुणस्थान बतलानेवाला कोई भी पागम , परिहार-पण्डितजीने इस श्राक्षेपद्वारा जो आपत्तियाँ प्रमाण उपलब्ध नहीं हो सकता, यह निश्चित है। ... बतनाई हैं वे यदि गम्भीर विचारके साथ प्रस्तुत आक्षेप-जब ६२ वाँ सूत्र द्रव्यस्त्रीके गुणस्थानोंका। .. की गई होती तो पण्डितजी उक्त परिणामपर न पहुँचते । मान लीजिये कि ६ वे सूत्र में जो 'असंजदसम्माइटि-ठाणे' निरूपक है तब उससे भागेका ६३ वां सूत्र भी द्रव्यस्त्रीका . निरूपक है। पहला ६२ वाँ सूत्र अपर्याप्त अवस्थाका पद निहित है वह उसमें नहीं है तो जो भाव और द्रव्य निरूपक है, दूसरा ६३ वाँ पर्याप्त अवस्थाका निरूपक है, दोनोंसे मनुष्य (पुरुष) है उसके अपर्याप्त अवस्थामें चौथा इतना ही भेद है। बाकी दोनों सूत्र द्रव्यस्त्रीके विधायक गुणस्थान कौनसे सूत्रसे प्रतिपादित होगा? इसीप्रकार मान हैं । ऐमा नहीं हो सकता कि अपर्याप्त अवस्थाका बिधायक लीजिये कि ६० वें सूत्रमें जो 'संजद-ट्ठाणे' पद है वह १२ वां सूत्र तो द्रव्यस्त्रीका विधायक हो और उससे लगा उसमें नहीं है तो जो भाववेद और द्रव्यवेद दोनोंसे ही हुश्रा ६३ वा सूत्र पर्याप्त अवस्थाका भावस्त्रीका मान पुरुष है उसके पर्याप्त अवस्थामें १४ गुणस्थानोंका उपपादन लिया जाय? कौनसे सूत्रसे करेंगे? अतएव यह मानना होगा कि ८६ वां सूत्र उत्कृष्टतासे जो भाव और द्रव्य दोनोंसे ही मनुष्य परिहार-ऊपर बताया जा चुका है कि ६२ वाँ (पम्प) है, उसके अपर्यात अवस्थामें चौथे गुणस्थानका सूत्र 'पारिशेष्य' न्यायसे स्त्रीवेदी भावस्त्रोकी अपेक्षासे हे प्रतिपादक है और ६.बाँ सूत्र, जो भाववेद और द्रव्यवेद और ६३ वां सूत्र भावस्त्रीकी अपेक्षासे है ही। अतएव दोनोंसे पुरुष है अथवा केवल द्रव्यवेदसे पुरुष है उसके उक्त आक्षेप पैदा नहीं हो सकता है। पर्याप्त अवस्था में १४ गुणस्थानोंका प्रतिपादक है । ये आक्षेप-जैसे ६३ = सूत्रको भाषस्त्रीका विधायक दोनों सूत्र विषयकी उत्कृष्ट मर्यादा अथवा प्रधानताके मानकर उसमें 'संजद' पद जोड़ते हो, उसी प्रकार ६२३ प्रतिपादक है, यह नहीं भूलना चाहिये और इस लिये सूत्रमें भी भावस्त्रीका प्रकरण मानकर उसमें भी असंयत प्रस्तुत सूत्रोंको भावप्रकरणके मानने में जो श्रापत्तियाँ प्रस्तुत (असंजद-ठाणे) यह पद जोड़ना पड़ेगा। बिना उसके जोड़े की हैं वे ठीक नहीं हैं । सर्वत्र 'इष्टसम्प्रत्यय' न्यायसे Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527238
Book TitleAnekant 1946 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1946
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size3 MB
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