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________________ अजेकान्त - भगवान महावीरने जो सन्देश दिया है वह बुद्धिकी कसौटी रूप देखना चाहती है। ज्ञानकी प्यास इसी शर्बतसे बुझाना पर अच्छी तरह उतरता है। परन्तु खेद तो इस बातका चाहती है। इसलिये समाजके प्रकाण्ड पण्डितोंको चाहिए है कि आज कलकी हवा पूर्वाचार्यों कयनको, चाहे वह कैसा कि वह जैनसाहित्यको अाधुनिक दृष्टिकोणसे सुसम्पादित ही क्यों न हो, करोल-कल्पित बतलाती है। इनकी कोई करके उसका प्रचार करें । कई संस्थाएँ आजकल सुलेखकों अच्छी चीज समूचे साहित्यमें नजर नहीं आती। भिन्तु यही तथा विद्वानोंको जन्म देनेका छवा करती हैं किन्तु श्रामचीज यदि हॅकसले. रसेल, मॅक्समूलर, लास्की श्रादि तौरपर लकीरके फकीर ही इनके द्वारा पैदा ह.रहे हैं, अतएव पाश्चिमात्य विद्वानोंकी लेखनी द्वारा प्रतिपादित हो जाये तो समयका साथ देना जरूरी है। ग्रन्थमालाओं के संचालकोंको हम फौरन उसपर ईमान लाते हैं। इसका अर्थ है हमने चाहिए कि वे आजकलकी जरूरतोंको समझे । केवल अपनी बुद्धि या अक्लको इन जैसे अनेक विद्वानोंके हाथ बेच भाषांतरसे काम नहीं चलेगा। खोज तथा अन्वेषण करके दिया है। हम बुद्धिके गुलाम हैं। दूसरोंके नीबूमें हमें श्राम गवेषणापूर्ण लेखमालाएँ प्रारम्भ कर देनी चाहिए । तभी का स्वाद पाता है, किन्तु अपनी चीज खट्टी मालूम होती साहित्यकी सच्ची उपासना होगी। क्या हम आशा कर सकते है। यह हमारी बुद्धिकी बलिहारी है, हमारा अधःपात है। हैं कि समाजके विद्वान-साहित्यदेवताके चरणोंमें सुचारुहाँ, एक बात इससे यह निकलती है कि दुनिया अाधुनिक सुमनोंकी श्रद्धाञ्जलि समपित करेंगे? . .. ढंग और मौजूदा प्रणालीके श्राइनेमें अपना तथा धर्मका Namastiiiiiiiimamt वनस्पति घी उस वनस्पतिसे किसीको मंगड़ा नहीं हो सकता जिसका अर्थ फल-फूल और पत्तियां हैं, किन्तु जब यह नाम अन्य वस्तुको दिया जाय तो उसे विष समझना चाहिये । वनस्पतिको कभी धोका नाम नहीं दिया जा सकता। यदि उससे वास्तवमें घी बन सकता है तो यह घोषित करनेके लिये मैं प्रथम आदमी हूंगा कि अब असली घीकी कोई आवश्यकता नहीं है। घी या मक्खन पशुओंके दूधसे बनता है बनस्पतिको घी और मक्खनके नामसे बेचना भारतीय जनताको धोखा देना है, यह पूर्ण रूपसे बेइमानी है। - व्यापारियोंका यह सुसष्ट कर्तव्य है कि वे इस प्रकारके किसी उत्पादनको घीका नाम देकद न बेचें। किसी भी सरकारको इस प्रकारके मालकी बिक्री जारी नहीं रहने देना चाहिये। आज करोड़ों भारतीयोंको न तो दूध मिल रहा है और न घी, मक्खन या महा ही। अत: अगर यहांकी मृत्यु संख्या इतनी बढ़ गई है एवं यहाँके निवासी उत्साहहीन हैं तो कोई आश्चर्यकी बात नहीं। मनुष्य बिना दूध अथवा दूधके बने पदार्थसे जीवन नहीं धारण कर सकता। इस प्रकारसे धोका देनेवाला भारतका शत्र है। -महात्मा गांधी Jain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527238
Book TitleAnekant 1946 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1946
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size3 MB
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