SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ६-७] भगवान महावीर और उनका संदेश [२४१ तब तब समय ऐसे ही नररत्नों या तीथंकरों को पै। करता ग़ाफिलों की इमदाद नहीं करता"। "श्रात्मनः प्रतिकूलानि और इनके कारण ही जगत्में ज्ञानसूर्यकी सुनहरी किरणें परेषा न समाचरत्" । "हर प्राणीको खुदकी हिफाजत अज्ञानको मिटाती तथा लोक-मयंदा स्थापित हो जाती। करनेका हक है" । श्रादि कानुनी तवोंसे उपर.क्र बालोंका यह बात भी विचारणीय है कि धार्मिक सिद्धान्तोंका ही समर्थन होता है। र हमशा क्षात्रय राजाओं द्वारा ही हुआ है। क्योंकि धर्मके किन्तु दोनों समय के इन प्रयोगों में फर्क है । प्राचीन सिद्धान्तोंका प्रचार राजाश्रित रहा है। देश और समाज समयमें काननका पालन करना कराना उनका धार्मिक और हितके लिए अप्राकृतिक तथा अनैसर्गिक और लौकिकाचार नैतिक कर्तव्य समझा जाता था। विरोधका रूप व्यावहारिक तथा रुलियों के विरुद्ध बातें दण्डनीय समझी गई। इन था किन्तु आजकल बल-योग द्वार! कानुनको कामयाब चीजोंको काननका रूप प्राप्त हुआ। यों तो समयकी पुकारके बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है, अर्थात अब पाशनिक बल अनुसार धार्मिक नियमोंका पालन अच्छी दृष्टिसे देखा जाता ही इसका आधार है और उन दिनों इसका अाधार कामरहा और यदा कदाचित् चन्द व्यक्ति या उनका समूह इन कर्तव्य. नैतिक आवश्यकता, अनुशासन तथा संयम रहा है। नियमोंकी अवहेलनाद्वारा समाज या राष्ट्र तथा देशकी जभी तो यत्र तत्र जैन शास्त्रों में - व्यवस्थामें बाधा उपस्थित करता तो न सिर्फ राजदण्ड ही "तृणतुल्य परद्रव्यं परं च स्वशरीरवत् । उसे भुगतना पड़ता बल्कि समाजकी दृष्टिसे भी वह गिर परदारां समां मातुः पश्यन् याति परं पदम्" । जाता । राजनीतिज्ञ पुरुषों,या राजाका यह कर्तव्य था कि ऐसे वाक्य मिलते हैं । दसरोंकी वस्तुओंको घासके तिनके नियमाको श्रमली जामा की तरह, परस्त्रीको माताके समान और दूसरे जीवोंको पहिनाने में दिवश करे तथा आवश्यकतानुसार सैनिकबलको अपने समान जानो। क्या यह शिक्षा व्यावहारिक शिक्षा नहीं भी काममें लावे । यही कारण है कि भारतवर्ष में उस समय है? क्या इसपर अमल करनेसे मनुष्य-प्राणी शान्तिको शान्ति व सुव्यवस्थाका मधुर सङ्गीत सुनाई देता रहा है। नहीं पा सकता? गत महासमरके अन्त में विश्वशान्तिको सदाके लिए धर्म और राजनीति स्थापित करनेके खयालसे अमेरिकाके स्वनाम धन्य प्रेसिडेन्ट वैसे तो धर्म और राजनीति विपरीत विचारधाराएँ विल्सनने अन्तर्राष्ट्रीय परिषद्को जन्म दिया और एक लंबी प्रतीत होती हैं किन्तु वास्तवमें ऐसा नहीं है। प्राचीन काल चौदी नियमावली बना दी, किन्तु उसे कार्यरूपमें, सैनिक में राजनीतिका प्रवेश मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्रमें पाया बलका प्रभाव होने के कारण, वह परिणत न कर सका और जाता है। धर्मके प्रचारक तथा संस्थापक च र राजनीतिज्ञ परिणाम यह निकला कि युद्धकी ज्वाला पुनः भी तथा मानसश स्त्रवेत्ता थे । मानवप्राणीके स्वभावों, उनकी धधक उठी । किन्तु भारतवर्षके प्राचीन राजनीतिज्ञोंको प्रवृत्तियों आदिका उन्होंने सूक्ष्म निरीक्षण अवश्य किा यह बात भलीभाँति परिचित थी कि अपनी प्रजाके हित था । जैन ग्रन्थों में सभ्यर्शन व उसके अंगोंका साधनके लिए सैनिक-शनिद्वारा राष्ट, देश, समाजके नियमों वर्णन मिलता है। उदाहरणार्थ सहधर्मीके दोषोको ढाँकना; व धार्मिक सिद्धान्तोंका प्रचार प्रासानीसे कराया जा सकता है। जुलूस रथयात्रा, पूजापाठ, संघ निकालना, धार्मिक उत्सव जैनसाहित्य और कानून । कराना श्रादिके द्वारा धर्म प्रभावना करना; सहधर्मियोंसे ___ भारतवर्ष की अनेक धार्मिक तथा सामाजिक प्रवृत्तिपर प्रेम करना, भाड़े समम्में उनकी सहायता करना, समाज ही मौजूदा काननका आधार है । धर्मके नियमोंको तथा संगठनका बीज बोना आदि चीजें सम्यग्दृष्टिका प्रण हैं। प्रचलित रिवाजोंको लक्ष्यमें रखकर ही ( Juris इन्हीं चीजोंको जैन धर्ममें सभ्यग्दर्शनके अंगों अर्थात् Prudence) कानूनके मूलभूत तत्व बनाये गए हैं ऐसा स्थितिकरण, प्रभावना, वात्सल्य श्रादि नामोसे याद किया खुद कानदानोंका खयाल है। "अन्दर की आवाज जो कुछ है। इनके मूलभूत तत्वोंपर दृष्टि डालनेसे मालूम पड़ता है कि कहती है उसपर अमल करना जुर्म नहीं"। "कानन उन्होंने मानसविज्ञान (Psychology) के गढ तत्त्वों तथा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.527238
Book TitleAnekant 1946 11 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJugalkishor Mukhtar
Publication Year1946
Total Pages80
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy