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________________ मनकान्त एकनाकर्षन्ती श्लथयन्ती वस्तुतत्त्वमितरेण । अन्तेन जयति जैनी नीतिर्मन्धाननेत्रमिव गोपी॥ गुणमुख्य-कल्पा विधि-दृष्टि उभयानुभय-हाट अनकान्तात्मिका निपगडनुभय-हाष्ट स्याद्वादरुपिणी सापेक्षवादिनी विधेय उभयानुभयो तत्व उनका Pita निषेध्यानुभय/स्यात. अनेकान्तात्मक स्यात् LE,निषेध्य तत्त्व तत्त्व वस्तुतत्त्व पनुभयष्टि Pla Piket उभय-दृष्टि (क्रमार्थिता स्यात् अनुभय-दृष्टि (सहार्पिता) थातत्त्वप्ररुपिका उभयतत्त्व वावधनयापक्षा विधेयानुभय तत्त्व सत्तभगरुपा अनुभय तत्त्व Shukla सम्यग्वस्त-ग्राहिका वर्ष किरण २ विधेयं वार्य चाऽनुभयमुभयं मिश्रमपि तद्विशेषैः प्रत्येकं नियमविषयैश्वाऽपरिमितैः । सदाऽन्योऽन्यापेक्षैः सकलभुवनज्येष्ठगुरुणा त्वया गीतं तत्त्वं बहुनय-विवक्षेतरवशात् ॥ सम्पादक-जुगल किशोर मुरत्तार। १६४१
SR No.527171
Book TitleAnekant 1941 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1941
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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