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________________ १२४ १३८ १३९ १४१ १४४ १४५ १५३ विषय-सूची विषय लेखक पृष्ठ १ जिन-प्रतिमा-वन्दन-[सम्पादकीय १२१ २ जैनी नीति ( कविता )-[पं० पन्नालाल जैन, साहित्याचार्य १२२ ३ प्रभाचंद्रका समय-[ न्यायाचार्य पं० महेन्द्रकुमार जैन, ४ कवि राजमल्लका पिंगल और राजा भारमल्ल-[सम्पादकीय १३३ ५ अनेकान्त पर लोकमत- ... ६ समन्तभद्र-विचारमाला (२) वीतरागकी पूजा क्यों ?-[सम्पादकीय ७ कमेबंध और मोक्ष-[पं० परमानन्द जैन, शास्त्री ८ दुनिया का मेला (कविता)-[पं० काशीराम शर्मा 'प्रफुल्लित' । ९ जैन मुनियों के नामान्त पद-[ अगरचंद नाहटा, १० बाबा मनकी आंखें खोल (कहानी)-[श्री 'भगवत्' जैन १५१ ११ समन्तभद्र का मुनिजीवन और आपत्काल-[ सम्पादकीय १२ विचारपुष्पोद्यान - १६३, १७७ १३ पुण्य-पाप (कविता) १४ हल्दी घाटी (कविता)-[ श्री भगवत्' जैन १६४ १५ विवाह कब किया जाय? -[श्री ललिताकुमारी पाटणी ... १६५ १६ 'मुनिसुत्रनकाव्यके कुछ मनोहर पद्य-[पं० सुमेरचंद्र जैन, दिवाकर १७० १७ शैतानकी गुफामें साधु (कहानी)-[अनु० डा० भैय्यालाल जैन ... १८ संयमीका दिन और रात-[श्री 'विद्यार्थी' १८२ अनेकान्तकी सहायताके चार मार्ग की सामग्री जुटाना तथा उसमें प्रकाशित होने के लिये उप .. योगी चित्रोंकी योजना करना और कराना । (१) २५), ५०), १००) या इससे अधिक रकम देकर सम्पादक 'अनेकान्त' सहायकोंकी चार श्रेणियोमेसे किसीमें अपना नाम लिखाना । (२) अपनी अोरसे असमर्थीको तथा अजैन संस्थानों अनेकान्तके नियम को अनेकान्त फ्री (बिना मूल्य) या अर्धमूल्यमें भिजवाना १--इस पत्रका मूल्य वार्षिक ३), छह माइका २) और इस तरह दूसरोंको अनेकान्तके पढ़नेकी सविशेष प्रेरणा पेशगी है-वी. पी. से मंगाने पर वी. पी. खर्च के चार पाने करना । ( इस मद में सहायता देने वालोंकी अोरसे प्रत्येक अधिक होंगे। साधारण एक किरणका मूल्य ।। और दस रुपथेकी सहायताके पीछे अनेकान्त चारको फ्री अथवा विशेषांङ्कका 1) है। अाठको अर्धमूल्यमें भेजा जा सकेगा। २--ग्राहक प्रथम किरण और सातवीं किरणसे बनाये (३) उत्सव-विवाहादि दानके अवसरों पर अनेकान्तका जाते हैं-मध्यकी किरणोंसे नहीं । जो बीच में ग्राहक बनेगे बराबर खयाल रखना और उसे अच्छी सहायता भेजना उन्हें पिछली किरणें भी लेनी होंगी। तथा भिजवाना, जिससे अनेकान्त अपने अच्छे विशेषाङ्क अनेकान्त' के विज्ञापन-रेट निकाल सके, उपहार ग्रन्योंकी योजना कर सके और उत्तम वर्ष भरका छह मासका एक बारका लेखों पर पुरस्कार भी दे सके । स्वत: अपनी ओर से उपहार परे पेजका ग्रन्थोंकी योजना भी इस मदमें शामिल होगी। श्राधे पेजका ४२) (४) अनेकान्त के ग्राहक बनना, दूसरोंको बनाना और चौथाई पेजका अनेकान्तके लिये अच्छे अच्छे लेख लिखकर भेजना, लेखों __ व्यवस्थापक 'अनेकान्त'
SR No.527171
Book TitleAnekant 1941 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1941
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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