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________________ वर्ष ३, किरण १२] वीरसेवामन्दिरकी विज्ञप्ति वीरसेवामन्दिरकी विज्ञप्ति 'समंतभदभारती की प्रकाशन-योजना छपाईतथा जिल्द बँधाई भी अव्वल नम्बरकी होगी। इस तरह इस ग्रथराजकके सर्वांग सुन्दर; अत्यन्त स्वामी समन्तभद्र के जितने भी ग्रंथ इस समय उपयोगी और दर्शनीय बनानेका पूरा प्रयत्न किया उपलब्ध हैं उन सबका एक बहुत बढ़िया संस्करण जायगा। 'समन्तभद्रभारती' के नामसे निकालनेका विचार स्थिर किया गया है। इस प्रन्थमें स्वामीजीके सब ___ पाठकोंको यह जानकर बड़ी प्रसन्नता होगी ग्रथोंका मूलपाठ अनेक प्राचीन प्रतियोंपरसे खोजकर कि ग्रंथराजका कार्य प्रारम्भ हो गया है-कुछ रक्खा जायगा;साथमें हिन्दीअनुवाद भी अपनी स्नास हा विद्वानों ने बिल्कुल सेवाभावसे-स्वामी समन्तभद्र विशेषताको लिए हुए होगा । उसे पढ़ते हुए मूल के ऋणसे कुछ उऋण होनेके खयालसे इसके ग्रन्थकी स्थिरिट में कोई अन्तर नहीं पड़ेगा, उसकी एक एक ग्रंथक अनुवाद कार्यको बाँट लिया है। धारा भी नहीं टूटेगी; और जो अर्थ शब्दोंकी तहमें पंबंशोधरजो व्याकरथाचार्यने बृहत् स्वतम्भूछिपा हुआ है अथवा रहस्यके रूयमें पर्दे के भीतर स्तोत्र' का, पं० फूलचंदजो शास्त्रीने 'युक्तनुशासननिहित ह वह सब प्रकट तथा स्पष्ट होता चला का, पं० पन्नालाल जी साहित्याचार्यने 'जिनशतक, जायगा। और व्यर्थका विस्तार भी नहीं होने पाएगा नामकीस्तुति विद्याका और न्यायाचार्य पं० महेंद्र टीकाओं में उपलब्ध होने वाली कठिन पदोंकी संस्कृत कुमारजीने 'देवागम' नामक प्राप्तमीमांसाका टिप्पिणियाँ भी फुटनोटसके रूपमें रहेंगी । हिन्दीकी अनुवाद करना सहर्ष स्वीकार किया है--कई नई उपयोगी टिप्पणियाँ भी लगाई जायँगी । और विद्वानोंने अपना अनवाद- कार्य प्रारम्भ भी कर इन सबके अतिरिक्त साथमें ही बड़ी महत्वपूण- दिया है । अवशिष्ट 'रस्नकरण्डक' नामक उपासखोजपूर्ण प्रस्तावना होगी, जिसमें मूल ग्रथोंके विष- काध्ययनका अनुवाद मेरे हिस्से में रहा है, प्रस्तावना यादिक पर यथेष्ठ प्रकाश डाला जायगा--स्वामी तथा जोवन चरित्र लिखने का भारभी मेरे ही ऊपर समन्तभद्र का जीवन चरित्र होगा; पूरा शब्दकोश रहेगा, जिसमें मेरे लिये अनुवादकों तथा दूसरे होगा और पद्यानुक्रणिका आदिके अनेक उपयोगी विद्वानोंका सहयोग भी वांछनीय होगा। वीरसेवा परिशिष्ट भी रहेंगे । कागज बहुत पुष्ट तथा अधिक मन्दिरके कुछ विद्वान परिशिष्ट तैयार करेंगे, और समय तक स्थिर रहने वाला लगाया जायगा और यह दृढ़ आशा है कि प्रोफेसर ए.एन. उपाध्यायजी
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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