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________________ अनेकान्त वन, वीर निर्वाण सं०२४६६ पक्षियोंमें हंस मयूर, तोता,मैना, कोकिला सारसादि का उदय है। इस तरह पर नाना दृष्टिकोणोंसे और ऊँचे और अच्छे समझे जाते है तथा काक, कुक्कुट, नाना अपेक्षाओंसे तिर्यचोंने भी उच्च व नीच रख, उलूक, चील, चिमगादड़ आदि नीचे और दोनों गोत्रोंका उदय दृष्टिगोचर होता है। बुरे समझे जाते हैं । पशु-पक्षियों में यह अच्छा व इस प्रकार ऊँच व नीच दोनों गात्रोदय, देव, बुरा तथा ऊँचा व नीचा समझा जाना क्या है ? मनुष्य, नरक, तियेच, इन चारों गतियों के प्राणियों यह ऊँच गोत्रोदय व नीच गोत्रोदय ही है । जैन में प्रत्यक्ष अनुभव गोचर होते हैं। आचार दृष्टि से मिथ्यादृष्टि असुरकुमारादि पापाचारी देवोंकी अपेक्षासम्यकदृष्टि तिर्यचोंमें व पंचम इसमें लेखकके मन्तव्य गुणस्थानी तिर्यचोंमें उच्च गोत्रका उदय है। (१) खंडेलवाल, अग्रवाल, परवार, पाटोदी चतुर्थ गुणस्थानी देवों की अपेक्षा चतुर्थ गुणस्थानी सेठी, सोनी, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, दिगम्बर तिर्यंचोंमें नीच गोत्रका उदय है क्योंकि तिर्यचके श्वेताम्बर, मूलसंघ सेनसंघ अर्धफालक संघ और सम्यक्त्वसे देवोंका सम्यक्त्व निर्मल होता है। गणगच्छादि गोत्र कम नहीं हैं । ये केवल भिन्न भिन्न चतुर्थ गुणस्थानी देवोंकी अपेक्षा पंचम गुणस्थानी प्रकारके मनुष्य समूहोंको बतलाने वाले संकेत तिर्यचों में उच्च गोत्रका उदय है मिथ्यादृष्टि मात्र है । . मनुष्यों की अपेक्षा चतुर्थ व पंचम गुणस्थानी (२) अपनी लौकिक व धार्मिक प्रत्येक विषयको तिय चोंमें ऊँच गोत्र का उदय है । सम्यक्त्वी उन्नति अवनतिको 'गौत्रकर्म' कहते हैं। मनुष्योंकी अपेक्षा सम्यक्त्वी तिर्य चोंमें नीच (३) लौकिक विद्याओं जैसे यंत्र विद्या, गोत्रका उदय है, क्योंकि तिय चोंके सम्यक्त्व गायन, वाह्य, युद्ध, वैद्यक, ज्योतिष आदि विद्याओं से मनुष्योंका सम्यक्त्व निर्मल होता है । की उन्नति अवनति भी गोत्र कर्म ( लौकिक ) के सम्यक्त्वी मनुष्योंकी अपेक्षा पंचम गुणस्थानी ही भेद हैं। तिर्यचोंमें उच्च गोत्रका उदय है । पंचम गुणस्थानी (४) जैन सिद्धान्तमें विवक्षित गोत्रकर्म मनुष्योंकी अपेक्षा पंचम गुणस्थानी तिर्य चोंमें संयमा-चरण असंयमाचरणकी उन्नति अवनति नीच गोत्रका उदय है, क्योंकि तिय चोंके व्रतसे रूप है। मनुष्योंका व्रत ऊँचे दर्जे का होता है । मिथ्या दृष्टि (५) गोम्मटमार-कर्मकाण्डकी १३ वीं गाथा नारकीकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि व चतुर्थ व पंचम का वह आशय नहीं है जो आमतौरसे लिया जाता गुणस्थानी तिर्यचोंमें उच्चगोत्रका उदय है । सम्यक्त्व है। उसमें पड़े हुए 'सन्तानक्रमेणागत' विशेषणम नारकीकी अपेक्षा सम्यक्त्वी तिर्यंचोंमें उच्च गोत्रका अपने ही, आचरणकी परम्परा विवक्षित है-पिता उदय है, क्योंकि नारकीके सम्यक्त्वसे तिर्यचका प्रपितादिके आचरणकी नहीं। तद्रूप सम्यक्त्व निर्मल होता है। सम्क्त्वो नारकी (६) जीवका अपना स्वयंका आचरण ही की अपेक्षा पंचम गुणस्थानी तियं चमें उच्च गोत्र अपना गोत्र कर्म है।
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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