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वर्ष ३ किरण १२
ऊँच-नीच-गोत्र-विषयक चर्चा
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(७ ) अपने पिता प्रपितादिकोंसे आया हुवा विद्वानों से विनम्र प्रार्थना आचरण अपना गोत्रकर्म नहीं है ।
इस लेखमें ऊँच-नीच गोत्रकर्मोदय पर जो (८) चारों गतिके जीवोंमें ऊँच व नीच दोनों कुछ भी लिखा गया है, वह अनेक विद्वानोंके गोत्र गोत्रकर्मों का उदय प्रत्यक्ष सिद्ध व अनुभव कर्म विषयक लेखादिकोंके अध्ययन-मनन परसे बना गोचर है।
हुआ केवल मेरा अपना विचार है । मैं जिनागमका (९) इस लेख में सिद्ध किये हये प्रत्येक अभ्यासी और जानकार स्वल्प भी नहीं हूँ, केवल प्राणीके ऊँच-नीच गोत्रकर्मोदयसे और जिनागममें नाम मात्रको स्वाध्याय कर लेता हूँ, इसलिये दया वर्णित देवोंमें उच्च मनष्यों में ऊँच व नीच. व करके विद्वान लोग वात्सल्य भाव पूर्वक बतलावें नारकी तिर्यचोंमें, नीच गोत्र कोदयसे विरोध कि यह लेख जिनागमसे कितना अनुकूल व कितना नहीं है।
प्रतिकूल है, ताकि मैं अपने विचारों में सुधार
कर सकू। - (१०) अपने अपने ऊँचव नीच आचरणानुसार समय समय प्रति ऊँच व नीच गोत्र विचार-स्वातन्त्र्यके कारण, इस लेखमें मुझसे कर्मका रसानुभव होता रहता है।
अत्युक्तियाँ अथवा अन्योक्तियाँ भी बहुत हुई
होंगी, अतः कृपा कर उन मेरी अत्युक्तियों और (११) गोत्रकर्म संसारस्थ आत्माका सापेक्ष
अन्योक्तियोंको बतलानेका जरूर कष्ट उठावें, इस धर्म है।
प्रकार समाजके सभी विद्वानोंसे मेरी विनम्र (१२ ) गोत्र कर्मोदय स्थायी नहीं है । आदि, प्रार्थना है ।