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वर्ष ३, किरण१२]
ऊच-नीच-गोत्र-विषयक चर्चा
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हैं । इस तरह पर इनके परस्परकी अपेक्षा और श्रात्व गुणस्थानी नारकीके नीच गोत्रका उदय है की न्यनताको प्राप्त हुये क्षेत्रादि अपूर्ण अार्योकी क्योंकि नारकीके सम्यक्त्वसे मनुष्यका तद्रूप अपेक्षा भी नीच गोत्र और उच्च गोत्र दोनों के उदय इन सम्यक्त्व निर्मल होता है । मिथ्यादृष्टि तिर्यचकी म्लेच्छोंमें सिद्ध हैं।
अपेक्षा सम्यक्त्वी नारकीके उच्च गोत्रका उदय है । म्लेच्छोंमें उपयुक्त प्रकारसे उच्च गोत्रोदय तथा इसी सम्यक्त्वी तिर्यचकी अपेक्षा सम्यक्त्वी नारकीके सरह पर अपर्ण अायोंमें भी नीच गोत्रोदय मानने पर नीच गोत्रका उदय है क्योंकि नारकीके सम्यक्त्वसे विद्यानन्द स्वामीके आर्य म्लेच्छ विषयक स्वरूप कथनसे तिर्यचका तद्रूप सम्यक्त्व अपेक्षाकृत अच्छा विरोध भी नहीं आ सकता, क्योंकि उन्होंने आर्योंमें, होता है । उच्च गोत्रोदय, आर्यत्वके क्षेत्रादि रूपोंकी, और उच्चा- इसके अतिरिक्त नारकियोंमें परस्परकी अपेक्षा चरणोंकी अधिकताको अपेक्षा कहा है तथा म्लेच्छोंमें मे भी उच्च व नीच गोत्रका उदय पाया जाता है। नीच गोत्रोदय, नीचाचरणोंकी अधिकताकी अपेक्षा सातवें नरकके नारकियोंसे ऊपरके नारकियोंके कहा है । ऐसा मेरा विचार है।
उत्तरोत्तर ऊँच गोत्रका है तथा ऊपरके नारकियोंसे
नीचे के नारकियों के नीचका उदय है। मिथ्यादृष्टि नारकियोंमें ऊँच-नीच गोत्रोदय
नारकीकी अपेक्षा सम्यग् दृष्टि नारकीके उच्च गोत्रका जैन सिद्धान्तमें नारकियोंमें जो नीच गोत्रका उदय उदय है । सम्यक्त्वी नारकीकी अपेक्षा मुनि हो कहा है वह उनके विशिष्ट पापोदयकी अपेक्षा और देव सकने वाले, केवली हो सकने वाले, और तीर्थकर मनुष्यादि के मुकाविलेमें हीन होनेकी अपेक्षासे कहा है, हो सकने वाले नारकियोंके उत्तरोत्तर उच्च गोत्रका परन्तु इसका यह प्रयोजन नहीं है कि उनमें ऊँच गोत्रका उदय है । इस तरह पर नारकियोंमें पच्च व नीच उदय है ही नहीं। विचार करने पर उनमें अपेक्षाकृत दोनोंका उदय पाया जाता है । इस ऊँचता-नीचता ऊंच व नीच दोनोंका उदय विद्यमान है, ऐसा प्रतीत से इनकार नहीं किया जा सकता। होता है । सामान्यतया देव-मनुष्य-तिर्यचौकी अपेक्षा तो उनमें नीच गोत्रका उदय है ही, परन्तु व्यक्तिगत
तिय चोंमें ऊँच-नीच गोत्रोदय रूपसे मिथ्यादृष्टि असुर कुमारादि पापाचारी देवोंकी जिनागममें तिर्यचोंके जो नीच गोत्रका उदय अपेक्षा चतुर्थ गुणस्थानी, तीर्थकर व प्रकृतिवद्ध बतलाया गया है उसे देव मनुष्योंकी अपेक्षा नारकीके उच्च गोत्रका उदय है । चतुर्थ गुणस्थानी समझना चाहिये, उसे उनमें स्थायी रूपसे मान देवकी अपेक्षा चतुर्थ गुणस्थानी नारकीके नीच लेना सत्यतासे इनकार करना है, उनमें परस्परमें गोत्रका उदय है, क्योंकि नारकीसे देवका तद्रुप ऊँच नीचता प्रत्यक्ष दृष्टि गोचर होती है । पशुओंमें सम्यक्त निर्मल होता है । मिथ्यादृष्टि मनुष्यको सिंह, शादूल, हाथी, अश्व, वृषभ आदि ऊँचे और अपेक्षा चतुर्थ गुणस्थानी नारकीके उच्च गोत्रका अच्छे समझे जाते हैं, तथा सर्प, वृश्चिक, शृगाल, उदय है । चतुर्थ गुणस्थानी मनुष्यकी अपेक्षा चतुर्थ बिडाल आदि नीचे और बुरे समझे जाते हैं।