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________________ ७१४ अनेकान्त आश्विन, वीर निर्वाण सं०२४६६ होने अथवा पूर्णांशरूपसे असंयमभाववाला होने रूप उच्चगोत्रोदय आदि गुणवाले क्षेत्रादि पाँचों और संयम भाव वाला न होने के कारण नीच गोत्र प्रकारके आर्यत्वकी पूर्णताको प्राप्त हुये श्रार्योंकी वाला है । उसके नीच गोत्रका उदय है । इसलिये अपेक्षा उनमें नीच गोत्रका उदय ही पाया जाता है। उसमें अधिकाँशरूपसे आर्यत्वकी न्यूनता होनेके कारण तथापि उनमें, म्लेच्छों म्लेच्छोंकी अपेक्षा परस्परमें, "उच्चाचरणरूप उच्चगोत्रोदय श्रादि गण वाला श्राय उच्च गोत्र और नीच गोत्र भी पाया जाता है । उदाहै" यह लक्षण नहीं घटता । और जो एकसे अधिक हरणके लिये जिन्हें हम म्लेच्छ समझते हैं उनमें सुना प्रकारसे श्राय है, जिसमें अल्याँशरूपसे आयत्वको जाता है कि एक बादशाह ऐसे त्यागी हुये हैं जो राज्य न्यनता है अथवा पर्णा शरूपसे आर्यत्वकी प्रादुर्भति है, कोषसे एक पैसा भी अपने भरण पोषण के लिए न ले वह अल्पाँशरूपसे असंयमभाव वाला न होने और कर किसी दूसरे प्रकारसे-अपने स्वयं शरीरसे परिश्रम अधिकांशरूपसे संयमभाव वाला होने व पूर्णाशरूपसे करके-आजीविका करते थे और अपना व अपनी संयम भाव वाला होने के कारण ऊँच गोत्र वाला है। रानीका भरण पोषण करते थे दूसरे एक अपने शरीरसे उसके ऊँच गोत्रका उदय है । इसलिये उसमें आर्यत्व भी अतिशय निस्पृह और दयालु महानुभाव उनमें की अल्पांशरूपसे न्यनता अथवा पूर्णा शरूपमें आर्यत्व हुये हैं, जो अपने शरीरके ब्रोंमें पड़े हुए क्रमियों की प्रादुर्भूति होने के कारण उपर्युक्त प्रायका लक्षण (कीड़ों) को ब्रणों से गिर जाने पर भी उठा उठा घट जाता है। जिसमें असंयम भाव अधिक और संयम कर पीछे उन ब्रोंमें ही रख लिया करते थे । और भाव कम है उसे असंयमकी अधिकताकी अपेक्षा नीच तीसरे एक ऐसे दानी बादशाह भी उनमें हो गये हैं गोत्री ही कहेंगे और जिसमें संयमभाव अधिक व पर्ण जो दीन दुखियोंकी पुकारको बहुत ही गौरसे सुना है और असंयमभाव कम अथवा नहीं है उसे संयमकी करते थे और उन्हें बहुत ही अधिक धन दानमें दिया अधिकता वा पूर्णताकी अपेक्षा ऊँच गोत्री ही कहेगे। करते थे। आज भी उनमें अनेक दानी, त्यागी, सत्य अर्थात् मनुष्य में जितने अंशोमं असंयम भाव है, उतने वादी, दयालु और अपनी इन्द्रियों पर काब रखने वाले अंशोंमें उसके नीच गोत्रका उदय है और जितने अशोंमें मौजूद हैं, जिनकी उदारता, सहायता और परोपकारता संयमभाव है उतने अंशोंमें उसके उच्च गोत्रका उदय आदिसे कितने ही लोग उपकृत हुए हैं और हो रहे हैं। है। इस तरह पर प्रत्येक मनष्य प्राणीमें दोनों गोत्रका अनेक गरीब तो उनकी कृपास लक्ष्मापति तक बन उदय समय समय पर पाया जाता है। गये हैं । इस प्रकार इन म्लेच्छोंकी उदारता,दानशीलता निस्पृहता' आदि उच्च गोत्ररूप उच्चाचरणके कई म्लेच्छोंमें ऊँच-नीच गोत्रोदय दृष्टान्त दिये जा सकते हैं नीच गोत्ररूप नीचाचरणोंके यद्यपि श्री विद्यानंदाचार्यने नीच आचरणरूप दृष्टान्तोंके लिखनेकी तो यहां कोई आवश्यकता ही नहीं नीचगोत्रोदय आदि लक्षण वालोंको म्लेच्छ कहा है क्यों कि असमर्थों पर इनके किये हुये हज़ारों जुल्म तथापि उनमें उच्च गोत्रोदय भी कहा जा सकता है । प्रसिद्ध ही हैं, और आज भी ये लोग नाना प्रकार के उच्च गोत्रोदय पाया भी जाता है। यद्यपि उच्चाचरण अगणित अमानुषिक, जुल्म गरीबों पर किया ही करते
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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