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________________ ७१२ अनेकान्त [ आश्विन, वीर निर्वाण सं० २४६६ देवोंमें गोत्रोदय माननेसे, जैनागममें जो देवोंमें उच्चगोत्रोदय कहा है उससे विरोध नहीं सकता; क्योंकि वह सामान्यतया मनुष्यसमूहकी अपेक्षा से देवसमूहमें उच्च गोत्रका उदय है, इसी अपेक्षा से कहा हुआ, जान पड़ता... है । यहाँ अपेक्षा -भेदका स्पष्टीकरण न करके गुप्त रख लिया गया है | विचार करनेसे यहाँ उपर्युक्त प्रकार अपेक्षा ही ठीक बैठती है और वही युक्तिसंगत प्रतीत होती है ! राज 522 बतलाया है वह मनुष्यसमूहकी अपेक्षासे है, उसका यह भाव नहीं है कि उनमें नीच गोत्रका उदय है ही नहीं । जब क़िसी हीन शक्ति के मुकाबले में उनमें उच्च गोत्रका उदय है तो किसी महान् शक्ति के मुकाबिले में उनमें नीच गोत्रका उदय भी होना चाहिये । क्योंकि गोत्र धर्म सापेक्ष धर्म है। जिनागम में भी देवोंमें चार मूलभेद और इन्द्र सामाजिक, त्रामसत्रिशत् आदि उत्तर भेद माने गये है, जो उनमें परस्पर उच्चगोत्र व नीच गोत्रका होना सिद्ध करते हैं । इसके अतिरिक्त पंचमगुणस्थान से लेकर चौदहवें गुणस्थान वाले मनुयोंकी अपेक्षा उनमें नीचगोत्रका उदय है । मिथ्यादृष्टि मनुष्यों की अपेक्षा सम्यग्दृष्टि देवोंमें उच्च गोत्रका उदय है । चतुर्थ गुणस्थानी मनुष्यों की अपेक्षा मिथ्यादृष्ट असुर कुमारादि पापाचारी देवोंमें नीच गोत्रका उदय है । चतुर्थ व पंचम गुणस्थानी तिर्यंचोंकी अपेक्षा भी असुरकुमारादि पापी मिथ्यादृष्टि देवों में नीच गोत्रका उदय है । चतुर्थ गुणस्थानी सम्यग्दृष्टि, व तीर्थंकर प्रकृति खङ्घ सम्यक्त्वी नारकियोंकी अपेक्षा भी श्रसुर कुमारादि दुराचारी और मिथ्यादृष्टि देवोंमें नीच गोत्रका उदय है । पंचमगुणस्थानी तिर्थैचोंकी अपेक्षा चतुर्थगुणस्थानी देवोंमें नीच गोत्रका उदय है । चतुर्थ गुणस्थानी तिर्यंचों और चतुर्थगुणस्थानी व तीर्थंकरप्रकृतिबद्ध सम्यक्त्वी नारकियोंकी अपेक्षा सम्यग्दृष्टिदेवों में उच्च गोत्रका उदय है; क्योंकि सम्यग्दृष्टि तिर्येचों, व न्परकियोंके सम्यक्त्वसे सम्यग्दृष्टि देवोंका तद्रूप सम्य क्त्व विशेष निर्मल होता है । और सामान्यतया तिर्यंच समूह और नारकी समूहकी अपेक्षा देव समूहमें ऊँच गोत्रका उदय है ही । इस तरह पर विचार करनेसे देवों में नानादृष्टिकोण की अपेक्षा उच्च व नीच गोत्रोदय प्रत्यक्ष सिद्ध है | मेरेँ विचारसे उपर्युक्त रीति के अनुसार 1 मनुष्यों में ऊँच नीच गोत्रोदय जिनागम में, मनुष्यों में जो सामान्यतया ऊँच व नीच दोनों गोत्रोंका उदय बतलाया गया है वह अपने अपने सदाचरण दुराचरणके आधार पर परस्परकी अपेक्षा से है । भोग भूमिके मनुष्यों के जो केवल उच्च गोत्रका उदय बतलाया है वह उनकी मंदकषायरूप उच्च प्रवृत्ति की अपेक्षा से है ं। भोगभूमिके मनुष्यों की अपेक्षा यहाँ कर्मभूमि के अधिकांश मनुष्यों में नीच गोत्रका उदय है । भोगभूमिमें भी कई मनुष्य सम्यकः दृष्टि हैं तथा कई विशेष मंद कषाय वाले हैं तथा कई मनुष्य कम मंद कषाय वाले हैं और मिथ्यादृष्टि भी हैं. अतः वहाँ भी उनमें परस्परकी अपेक्षा ऊँच गोत्र व नीच गोत्रका उदय होना सिद्ध है । अर्थात् विशेषमंद कषायवाले और सम्यग्दृष्टि मनुष्यों की अपेक्षा कममन्द कषायवाले और मिथ्यादृष्टि जीव नीच गोत्रोदयवाले हैं और कममंद कषाय वाले तथा मिथ्यादृष्टि मनुष्यों की अपेक्षा सम्यकदृष्टि और विशेषमंद काय वाले मनुष् उच्च गोत्रोदय युक्त हैं । सामान्यतया देवोंकी अपेक्षा मनुष्यों में नीच गोत्रका उदय है तथा तिर्येचों व नारकियोंकी अपेक्षा मनुष्यों में उच्च गोत्रका उदय है । विशेषतया भोग भूमिके चतुर्थं गुणस्थानी मनुष्यों की
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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