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वर्ष ३ किरण १२]
इस तरहके सैंकड़ों ही अनावश्यक और निरर्थक ख़र्च हैं, जो दिन पर दिन हमारी शिक्षित बहनों में बढ़वानलकी तरह बढ़ रहे हैं। जिनको यदि रोका न गया तो वे सचमुच हमारे घरोंको जल्दी ही भस्मसात् कर देंगे । पुरुष रातदिन परिश्रम कर गर्मी, सर्दी, बरसात, धूप, भूख, प्यास, गुलामी आदि की कठिन वाधाएँ सह कर बड़ी मुश्किलसे रूपया पैदा करें और हम बहनें आसानी के साथ हमारे क्षणिक श्रानन्दके लिए उसको ख़र्च करदें । यह हमारे लिए कितने भारी कलंक और शर्मकी बात है। अफ़सोस तो यह है कि हमारे देश में जो कुछ था वह तो पहले ही विदेशियों ने निकाल लिया किन्तु जो थोड़ा बहुत तन और पेटकी लाज
शिक्षित महिलाधों में अपव्यय
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रखने लायक इधर उधर चौमासेमें चमकने वाले श्रगिये की तरह दिखाई दे रहा है वह भी हम इस तरह नष्ट भ्रष्ट कर हमारे देश की सम्पत्तिका क्या कतई दिवाला निकाल बैठें, जो एक दिन ज़रूरी भोजन-वस्त्र मिलना भी दुर्लभ हो जाय ? इस पर हमारी शिक्षित बहनोंको खूब गौरके साथ विचार करना चाहिये और शीघ्र ही अपने अपने अनावश्यक तथा फैशनकी पूर्ति के लिये किये जाने वाले खर्चेको घटाकर तथा बन्द करके अपनी अपने समाजकी और अपने देशकी उन्नत्ति में अग्रसर होना चाहिये । यही इस समय उनका मुख्य धर्म और ख़ास कर्तव्यकर्म है।
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