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________________ 445 अनेकान्त [ आश्विन, वीर निर्माण सं०२४६६ तो खर्च होता ही है, साथमें दरजीको दुगुनी तिगुनी बला हटी। कितना भाराम रहा ! बाजारू चाट, नमकीन सिलाई और देनी पड़ती है, वरना वे तत्काल ही ईजाद मिठाई श्रादिपे पुरानी पद्धति वाली माताओं को इतनी हुए फैशनसे रहित रह जायें । हाथमें कमसे कम १) ११) नफरत है कि वे उनका नाम तक नहीं लेती किन्तु रुपयेका एक रेशमी रुमाल चाहिए जो एक बार पसीने भाजकल वाली बहनोंमें इनका शौक ऐसा बढ़ा है कि पोछने पर डस्टरके काम लिया जाने लगे और कर वे इनको बहुत ही अज़ीज़ समझ कर खाती हैं और कमलों की शोभाके लिए तुरन्त ही ताजा रूमालके लिये धर्म तथा धन दोनों ही से हाथ धो बैठती हैं। बार्डर जारी हो जाय । कपड़ों में जी खोल कर तरह घरमें काम करनेको नौकर चाकर हैं और समाज तरहके बिलायती सेन्ट उंडेल दिए जाते हैं, जिनकी सेवा, देश सेवा तथा साहित्य सेवासे लगन · नहीं। कीमत भारी भारी होती है और उपयोग रंचमात्र नहीं आदमी सोये भी तो कितना सोये । ज्यादासे ज्यादा इसके अलावा सर्दी में काम आने वाले बढ़ियासे बढ़िया ७ घंटे रातमें और २ घंटे दिनमें समझ लीजिए । ३ घंटे स्वेटर, गुलबन्द, जुर्राव, दस्ताने श्रादिका ऐसा अनावश्यक भोजन करने आदिके और निकाल दीजिए । बचे हुए खर्च बढ़ा है कि हर जाड़ेमें प्रति घर १००) ५०) रु. १२ घंटों में अब करे तो क्या करें ? बस रेडियो और खर्च होता ही है। वास्तवमें देखा जाय तो महिलाओं ग्रामोफोन ! जो उन रसिक बहनोंको इश्क और ऐय्याशी ने जो इनका उपयोग करना शुरु किया वह सर्दीसे के गन्दे गाने सुनाते रहें और उनके दिल और दिमाग बचनेके लिए नहीं किन्तु केवल फैशनके लिए किया को दूषित करते रहें । फिर ग्रामोफोनके रेकार्ड नित है। हाँ, यह खुशीकी बात है कि अब अधिकांश बहनें नये नये चाहिएं । एक रेकार्ड एक बार सुना और वह इन चीज़ोंको हाथसे बुन कर काममें लेने लगी हैं। तबियतसे उतर गया । एक एक रेकार्ड होना भी इससे खर्च भी कम करना पड़ता है और चीज़ भी चलाऊ चाहिए कमसे कम २॥) ३) का । वरना वह स्पष्ट तैयार होती है। श्रावाज़ नहीं दे। अगर महिने में १० रेकार्ड भी नये हमारी नये युगकी बहनोंको खाने पीनेको वस्तुओं खरीद लिए जाते हो तो २५) ३०) रुपये माहवारका में भी अनावश्यक खर्च करना पड़ता है और साथ ही तो यही खर्च पल्ले बँध गया । दिन भर चक चक जरूरी संयमका भी ध्यान नहीं रक्खा जाता । सुबह करने वाले रेडियो में जो बिजली ख़र्च हुई वह तो उठे चायका एक कप जरूर चाहिए । नाश्ता करनेके शायद खयाल में पाती ही नहीं है। और फिर दिन भर लिए घरमें कौन चीज़ बना कर रक्खें । हाथसे बनाना रेडियो और रेकार्ड के निराकार गानोंको सुनकर भी तो सीखा ही कहाँ । फिर वही बाजारसे लिल्ली बिस्कुट तबियत ऊब उठी तो शामको सिनेमाकी सैर होती है। ब्रिटेनिया बिस्कुटके डिब्बे मंगाये जाते हैं, जिनमें शुद्धता हैसियतके अनुसार १) २) रु० का टिकट खरीदा जाता और संयमको तो लात मार दी ही जाती है किन्तु रुपया है। साथमें रसिक सखी-सहेलियोंका होना भी श्रावपैसा भी मिट्टीकी तरह बरतना पड़ता है। कोई मेहमान श्यक होता है वरना अकेलेमें कोई दिल आया बाजारसे मिठाई मंगाली गयी । पैसे खर्च हुए तो चस्पी नहीं। उनके टिकटोंका भार भी अपने ही पुरुषोंकी जेबसे और उनकी खुदकी रसोई में धुआंधोरीसे ऊपर लेना होता है।
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
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