SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 16
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६८६ अनेकान्त पानीकी तरह बहाना पड़ता हैं इससे व्यक्तियोंका भी पतन होता है और उनसे बनने वाले समाजको भी क्षति पहुँचती है। यदि मनुष्य अपने पैसे को अपने ही निरर्थक और क्षुद्र स्वार्थों में न खर्च करके समाज व देश के हितों की रक्षा के लिए उसका उपयोग करे तो फिर किसीकी धन-सम्पत्तिले श्रापसमें जलन या ईष्यके भाव पैदा होनेका अवसर ही न आवे । अपव्ययसे समाज में पाप और अन्यायका प्रसार होता है तथा दुर्गुणोंकी वृद्धि होती है । जो पैसा उपयोगी और उत्तम कार्यों में लगना चाहिए था वह वाहियात और व्यर्थ की शानशौकत में खर्च किया जाता है। इससे समाज कमज़ोर और 'क्षुद्र बना रहता है। जिस समाज में वाहियात फिजूलखर्ची की जाती है वह दूसरे समाजोंके सामने मुकाबले में खड़ा नहीं रह सकता और हर बातमें उसको नीचा देखना पड़ता है । उसका अपमान और तिरस्कार करना दूसरेके लिए एक खेलसा हो जाता है । क्योंकि समाजकी उन्नतिके बहुतसे उपायों में एक मुख्य उपाय उसमें रहने वाले व्यक्तियोंकी धन-सम्पत्ति और उसका समुचित उपयोग भी है । एक अर्थ शास्त्रविद्या विशारद पंडितने किसी जगह लिखा था कि किसी समाज या देशकी शक्ति और बलको मापने का यन्त्र उसमें रहने वाले व्यक्तियोंकी सम्पत्तिका उपयोग है । अगर उनकी सम्पत्तिका उपयोग उत्तम और समयोपयोगी कार्यों में होता है तो वह समाज भी उन्नत एवं व्यवस्थित है और यदि उसका उपयोग अनुचित रूपसे होता है तो उस समाजकी भींत भी बालू रेत पर खड़ी है जो जब कभी धक्का देकर गिराई जा सकती है । [आश्विन, वीर निर्वाण सं० २४६६ होता जारहा है, शिक्षित महिला समाजमें फिजूलखर्ची के नये नये तरीके ईजाद होते जा रहे हैं। यह तो सच है ही कि पुरानी चाल वाली माताओं व बहनों में कुछ ऐसे संस्कार पड़े हुए हैं कि वे पुरानी चालोंको चाहे वे कितनी ही खर्चीली क्यों न हों और चाहे उनमें होने वाले खर्चे से उनके घर कितने ही तबाह क्यों न हो जाएँ पर वह उन्हें छोड़नेके लिए किसी भी तरह तैयार नहीं हैं; पर हमारी श्राज कलकी बहनों में उनकी अपनी ही चर्या में ऐसे छोटे छोटे सैंकड़ों ही निरर्थक अपव्यय के मार्ग पैदा हो गये हैं जिनसे भली भली और सम्पन्न से | सम्पन्न गृहस्थीका भी चकनाचूर हुए बिना नहीं रह सकता । इन वाहियात खर्चोंसे पुरुषोंके गाढ़े पसीने से कमाये हुए धनका ही नाश नहीं होता है बल्कि हमारी गृह देवियोंका सुन्दर जीवन भी भोग विलास और फैशन के साँचे में इस तरह ढाल दिया जाता है कि वह न तो उनके अपने मतलबका ही रहता है और न समाज व देश के अर्थका ही । इसी अपव्यय के अवगुणसे हमारी धाधुनिक शिक्षित बहनें भी रहित नहीं हैं। यह देखने में धाता है कि ज्यों ज्यों आधुनिक सभ्यता और शिक्षाका प्रसार आज कलकी बहनों में यदि पुरानी चांलके गहनों का शौक कुछ कम हुआ तो नयी चालके गहनों का शौक उससे भी अधिक बढ़ गया । गोखरू बँगड़ीके स्थान पर सोने की चूड़ियां पहनी जाने लगीं । बाली और कानके छल्लोंकी जगह नये नये इयरिंग काम में लिये जाने लगे । सरमें पात व वौरकी जगह विविध रंगरंजित क्लिपें दिखाई देने लगीं, जो रोज रोज या तो टूटती रहें और यदि बदकिस्मती से साबुत रह जायें तो फैशन बदल जानेसे बेकार जायँ । गले में सोनेकी कंठीके बिना तो गलेकी शोभा ही नहीं। रिस्टवाच और जीरोपावरके चश्मेका शौक तो ऐसा बढ़ा है कि उसकी कोई हद्द नहीं । और अफ़सोस तो यह है कि घड़ीसे समयका सदुपयोग रत्तीभर नहीं किया जाता और
SR No.527166
Book TitleAnekant 1940 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1940
Total Pages96
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy